विजया एकादशी व्रत एवं कथा
ekadasi vrat |
व्रत का महत्व-
इस विजया एकादशी व्रत को करने से दु:ख दरिद्रता का विनाश होता है। समस्त कार्यों में विजय प्राप्त होती है। इस दिन विष्णु भगवान की पूजा करने से अनन्त पुण्य प्राप्त होता है।
विजया एकादशी का व्रत कब करें-
विजया एकादशी का उत्तम व्रत फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है।जानिये व्रत की विधि-
इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। पूजन में धूप-दीप नैवेद्य, नारियल आदि विष्णु भगवान को अर्पित किया जाता है। सात अन्न से युक्त एक छोटा सा घड़ा स्थापित किया जाता है। जिसके ऊपर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखी जाती है। इस तिथि को दिन-रात्रि 24 घंटे कीर्तन करना चाहिए और अगले दिन द्वादशी को अन्न से भरा घड़ा किसी दान लेने योग्य ब्राह्मण को दान मे देना चाहिए।
विजया एकादशी व्रत की कथा-
यह कथा श्री राम जी की लंका विजय से भी सम्बन्धित है । जब त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्रजी को चौदह वर्ष का वनवास हुआ तो वह सीताजी और लक्ष्मण के साथ पंचवटी में रहने लगे । उसी समय रावण ने माता सीता जी का अपहरण किया । यह दुखभरा संदेश सुनकर भगवान राम और लक्ष्मण माता सीता जी की खोज में निकल पड़े । सीताजी को ढूंढते- ढूंढते वह मरणासन्न जटायु के पास आए जोकि उन्हें माता सीता के बारे में जानकारी देकर स्वर्ग सिधार गया ।
थोड़ा आगे जाने पर उनकी दोस्ती सुग्रीव से हुई तथा उन्होंने राजा बलि का वध किया । श्री हनुमान जी ने लंका पहुंचकर माता सीता जी को श्री राम और सुग्रीव की मित्रता के बारे में बताया । लंका से हनुमानजी सीताजी का समाचार लेकर भगवान रामजी के पास आए । श्री रामचन्द्रजी ने सुग्रीव की सहायता से वानरों की सेना तैयार कर लंका को प्रस्थान किया।
समुद्र तट पर पहुंच कर भगवान श्री रामचन्द्रजी ने लक्ष्मण से पूछा कि हम इस समुद्र को पार कैसे करेंगे । यह सुनकर लक्ष्मण जी बोले हे! प्रभु आप आदि पुरुष पुराण मर्यादा पुरुषोत्तम हो । यहाँ से केवल आधा योजन की दूरी पर कुमारी द्वीप है जिस द्वीप पर बकदालभ्य नामक मुनि रहते हैं। उन्होंने अनेक नाम के ब्रह्मा देखे हैं। आप वहाँ जाकर इसका उपाय पूछिये। लक्ष्मण जी के वचनों को सुनकर रामचन्द्रजी बकदालभ्य के पास गए तथा उन्हें प्रणाम करके बैठ गए। ऋषि ने उन्हे मानव रूप धारण किए हुए पुरूषोत्तम समझा तथा उनसे पूछा हे! राम आप कहां से पधारे हैं?
इस पर भगवान राम ने कहा हे! श्रेष्ठ मैं अपनी वानर सेना सहित थोड़ी सी दूरी पर ठहरा हुआ हूँ तथा लंकापति रावण को जीतने जा रहा हूँ । इस पर ऋषि ने उन्हें विजया एकादशी व्रत करने को कहा । श्री रामचन्द्रजी ने व्रत करके समुद्र पर पुल बाँधा तथा विजय प्राप्त की ।
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