विक्रम संवत कैलेंडर 2077
"चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमे अहनि,
शुक्ल पक्षे समग्रेतु तदा सूर्योदये सति।"
ब्रह्म पुराण में वर्णित इस श्लोक के मुताबिक चैत्र मास के प्रथम दिन प्रथम सूर्योदय पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इसी दिन से विक्रम संवत की शुरुआत होती है। आज भले ही ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार 1 जनवरी को मनाया जाने वाला नववर्ष ज्यादा चर्चित हो, लेकिन इससे कहीं पहले अस्तित्व में आया हिंदू विक्रम संवत आज भी धार्मिक अनुष्ठानों और मांगलिक कार्यों में तिथि और काल की गणना का आधार बना हुआ है। आइये आज जानते हैं अपनी सांस्कृतिक एवं धार्मिक विरासत विक्रम संवत के बारे में-
vikram samvat |
विक्रम संवत-
ग्रेगेरियन कैलेंडर से अलग देश में कई संवत प्रचलित हैं। फिलहाल विक्रम संवत, शक संवत, बौद्ध संवत, जैन संवत और तेलुगु संवत प्रचलित हैं। इनमें हर एक का अपना नया साल होता है। देश में सर्वाधिक प्रचलित विक्रम और शक संवत हैं।
विक्रम संवत की शुरुआत-
विक्रम संवत को सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित करने की खुशी में 57 ईसा पूर्व में शुरू किया था। विक्रम संवत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है। भारतीय पंचांग और काल निर्धारण का आधार विक्रम संवत ही है।
विक्रम संवत की विशेषता-
विक्रम संवत का संबंध विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत और ब्रह्मांड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना और राष्ट्र की गौरवशाली परंपराओं को दर्शाती है। यही नहीं, ब्रह्मांड के सबसे पुरातन ग्रंथों में भी इसका वर्णन है। नव संवत यानि संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के 27वें और 30वें अध्याय के मंत्र क्रमांक क्रमशः 45 और 15 में विस्तार से दिया गया है। विश्व में सौरमंडल के ग्रहों और नक्षत्रों की चाल और निरंतर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग आधारित होते हैं।
राष्ट्रीय कैलेंडर-
देश आजाद होने के बाद नवंबर 1952 में वैज्ञानिक और औद्योगिक परिषद के द्वारा पंचांग सुधार समिति की स्थापना की गई। समिति ने 1955 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में विक्रमी संवत को भी स्वीकार करने की सिफारिश की थी। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के आग्रह पर ग्रेगेरियन कैलेंडर को ही सरकारी कामकाज हेतु उपयुक्त मानकर 22 मार्च 1957 को इसे राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप में स्वीकार किया गया।
पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व-
- आज से एक अरब 97 करोड़, 39 लाख 49 हजार 109 वर्ष पहले इसी दिन ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि का सृजन किया गया था।सम्राट विक्रमादित्य ने 2077 साल पहले इसी दिन राज्य स्थापित कर विक्रम संवत की शुरुआत की थी
- लंका में राक्षसों का मर्दन कर अयोध्या लौटे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का राज्याभिषेक इसी दिन किया गया।
- शक्ति और भक्ति के 9 दिन अर्थात नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व 9 दिन उत्सव मनाने का प्रथम दिन यही है।
- समाज को अच्छे मार्ग पर ले जाने हेतु स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को आर्य समाज के स्थापना दिवस के रूप में चुना।
- सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगद देव का जन्म दिवस यही है।सिंध प्रांत के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रकट हुए।
- शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ दिवस विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।
- युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन, 5112 वर्ष पूर्व युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था।
- इसी दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ केशव राव बलीराम हेडगेवार जन्म दिवस है।
प्राकृतिक महत्व -
वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंध से भरी होती है। फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है। नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिए शुभ मुहूर्त यही होता है।
धन्यवाद ।