वास्तु शास्त्र में दिशाएं और उनका महत्व
संपूर्ण ब्रह्माण्ड अनंत ऊर्जाओं से भरा पड़ा है। मनुष्य के पास कमी है तो उसे पहचानने की। जहां तक पंचभूत ऊर्जाओं की बात आती है तो वह हम सभी को मालूम है कि आकाश, अग्नि, जल, वायु तथा पृथ्वी के चुम्बकीय ध्रुवों से निसृत होने वाली ऊर्जा हमारे शरीर पर पूरी तरह से प्रभाव डालती है। इन ऊर्जाओं के स्रोत भिन्न है, रूप भिन्न है और मजे की बात यह है कि सूर्य की परिक्रमा करती पृथ्वी एवं अन्य ग्रहों का अन्य आकाश पिण्डों की गति के कारण इन ऊर्जाओं में सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव भी होता हैं और उनमें इस प्रभावों से हमारा समस्त चराचर जगत प्रभावित होता है।
Vaastu shastra dishaen |
वास्तु
शास्त्र हमें इन्हीं ऊर्जाओं के सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभावों का ज्ञान ही नहीं कराता अपितु
उनके सकारात्मक प्रभावों से लाभ उठाने के उपाय भी प्रदान कराता है। वास्तुशास्त्र द्वारा प्रदान किया जाने वाला ज्ञान मनुष्य के लिए कितना उपयोगी है यह तो उसको अपनाने वाला ही बेहतर समझ सकते है। मेरी नजर में वास्तु वह है जो हमें अच्छा लगता
है अर्थात हम अपने घर में देखें तो जो चीजें देखने में पहली नजर में बुरी लगे समझो वहां वास्तुदोष है। आपने देखा होगा या महसूस किया होगा कि फलां व्यक्ति जब से इस
मकान में आया है तभी से उसके जीवन में तरक्की शुरू हुई या उसका पतन शुरू हुआ यह सब
उस आवास की सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जाओं का असर है जो कि उसके जीवन पर प्रत्यक्ष असर डालती दिखती हैं।
आज समय आ गया है कि सभी व्यक्ति अपने घर को सुरक्षित वास्तु के घेरे में रखें। तथा सुख शांति एवं आनंदपूर्ण जीवन व्यतीत करें। ऐसा एक कवच सबको दिया जाए जिसमें नकारात्मक उर्जाओं के लिए कोई स्थान ही न हो केवल सकारात्मक उर्जा का ही स्रोतों हो। आइए जाने कौन सी दिशा सें हम कौन-सी सकारात्मक ऊर्जा या नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता रहता है? कौन सी दिशा का हमें फायदा कैसे उठाना है? वास्तुशास्त्र में सूर्य से प्राप्त प्रकाश और गर्मी का पृथ्वी पर जीवन रक्षक रूप में महत्वपूर्ण योगदान है। सूर्य के प्रकाश से मनुष्य ही नही बल्कि वनस्पति जगत सभी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करते हैं। यदि किसी भूखंड या मकान पर प्रातः 8 से दोपहर 2 बजे तक सूर्य की किरणें न पड़े तो इसे वास्तुदोष माना जाता है।
वास्तु शुभता की कमी घर में रहने वाली महिलाओं व पुरुषों व अन्य निवासीगणों को रोग व पीड़ा अथवा चिड़चिड़ापन दे सकती है। यदि उस घर या भूमि
पर चंद्रमा की किरणें भी न पड़ती हों तो स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्यायें व दीर्घकाल रोग की संभावनायें बढ़ती देखी गई हैं। आजकल के आधुनिक व भागदौड़ भरी जीवन शैली में
सभी व्यक्ति अपने मनपसंद माहौल में मकान या फ्लैट नहीं खरीद पाते। लेकिन कुछ उपाय
वास्तु में बहुत अच्छे देखे गए हैं। जिनका प्रयोग मामूली परिवर्तन द्वारा ही हमारी जीवन शैली को प्रभावित कर कर लाभांवित करता है।
वास्तुशास्त्र में आठ दिशाएं महत्वपूर्ण मानी गई है जो कि आप एक
साधारण कंपास के द्वारा जान सकते हैं अगर कंपास के बिना भी जानना चाहें तो पूर्व
यानी की जिस दिशा सें सूर्य उदय होता है उस तरफ मुख करके खड़े हो जायें और
अपने दोनों हाथ कंधों के सामने विपरीत दिशाओं में रखें। आपकी बायी तरफ बाया हाथ उत्तर
दिशा दर्शाता है व दांया हाथ दक्षिण दिशा आपकी पीठ वाली दिशा पश्चिम
दिशा कहलायेगी। उसके बाद चारों कोनों वाली विधायें, पूर्व से उत्तर की तरफ जाते हुये क्रमश: उत्तर-पूर्व, उत्तर-पश्चिम, पश्चिम-दक्षिण व दक्षिण-पूर्व कहलाती है।
पूर्व दिशा
पूर्व दिशा का स्वामी इंद्र है। हिंदू देवताओं का राजा
है। पूर्व दिशा की शुभता व्यक्तित्व को अधिंक सुंदर आकर्षण तथा प्रभावशाली बनाती
है। भवन निर्माण के समय पूर्व दिशा में खुला स्थान छोड़ना श्रेष्ठ होता है। उनके
विद्वानों ने पूर्व दिशा में पितरों का वास माना है। पूर्व दिशा का वास्तु दोष
पितर दोष माना जाता है जिससे घर में रहने वालों को विघ्न बाधा, विपदा व मृत्युभय
रहता है।
दक्षिण पूर्व या अग्निकोण
इस दिशा का स्वामी शुक्र है। इस दिशा की शुभता स्वास्थ्य, ऊर्जा व जीवन शक्ति की वृद्धि कर घर में रहने वालों को स्वस्थ व बली बनाती है। आग्नेय (दक्षिण पूर्व) दिशा का वास्तु दोष मित्रों के कारण हानि, क्लेश, चिंता तथा अपयश दिया करता है एवं घर की स्त्री कष्ट पाती है।
दक्षिण दिशा
इस दिशा के स्वामी यम है। यम को मृत्यु का देवता माना गया है। दक्षिण दिशा का वास्तु दोष मान भंग कलंक, अपमान, आजीविका नाश व वरिष्ठजन की सुरक्षा से वंचित करता है।
दक्षिण पश्चिम या नैऋत्य कोण
इस दिशा का स्वामी राक्षस है। दक्षिण पश्चिम या नैऋत्य दिशा की शुभता मनुष्य के विचार व आचरण को उत्कृष्टता देती है।
वह उत्तम विचार और आचरण से धन वैभव व प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। इस दिशा का
वास्तु दोष अवांछित दुर्घटना तथा रोगजन्य क्लेश देता है।
पश्चिम दिशा
इस दिशा के स्वामी शनि देव हैं। पश्चिम दिशा की शुभता सुख सुविधा, मान प्रतिष्ठा व सभी कार्यों में सफलता प्रदान करती है। पश्चिम दिशा का
वास्तु दोष पति-पत्नी व साझेदारों के बीच मनमुटाव, मतभेद व वैमनस्य पैदा करता है।
कभी माता की स्नेहिल व ममतामयी सुरक्षा से वंचित होना पड़ता है।
उत्तर पश्चिम या वायव्य कोण
इस दिशा के स्वामी वायु देव जी हैं। वायु को पवन देव या हनुमान जी का पिता भी कहा जाता है। वायव्य (उत्तर पश्चिम) दिशा की शुभता
मैत्री संबंधों को प्रगाढ़ बनाती है। मित्रों के स्नेह व सहयोग से सफलता व प्रतिष्ठा
मिलती है। इस दिशा का वास्तु दोष कानूनी विवाद, मुकद्दमें बाजी व मिथ्या कलंक देता
है।
उत्तर दिशा
इस दिशा के स्वामी कुबेर जी हैं। कुबेर को देवताओं का कोषाध्यक्ष व धन वैभव देने वाला माना जाता है। इस दिशा की शुभता धन वैभव, संपदा, संपन्नता व सभी
सुख-सुविधाओं की वृद्धि करती है। उत्तर दिशा का वास्तु दोष आर्थिक संकट, अभाव व दरिद्रता जन्य क्लेश देता है। कभी पिता समान स्नेही वरिष्ठ जन का साथ छूटने से मन
को क्लेश होता है।
उत्तर पूर्व कोण (ईशान कोण)
इस दिशा के स्वामी भगवान शिव हैं। समस्त जन
का पालन कर्ता ईश्वर उत्तर पूर्व, ईशान दिशा का स्वामी है। इस दिशा की शुभता यश, मान व संपदा की वृद्धि करने वाली उत्तम सुख देती है। उत्तर पूर्व दिशा का वास्तु
दोष संतान जन्य क्लेश, गर्भपात या बांझपन की पीड़ा देता है। इस प्रकार आठों दिशाओं
को जानने वाला मनुष्य वास्तु शास्त्र की सहायता से वास्तु के अनुरूप अपने भवन या
फ्लैट में मामूली परिवर्तन करके अपनी जीवनशैली को प्रभावित करने वाली बाधाओं को
दूर कर सकता है और यदि वास्तु शास्त्र की जानकारी न हो तो किसी वास्तु विशेषज्ञ
की सलाह अवश्य ले लेनी चाहिए।
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