वास्तु शास्त्र के अनुसार कैसा हो आपके घर और कमरों का रंग (vaastu shaastr ke anusaar kaisa ho aapake ghar aur kamaron ka rang )
रंग जीवंतता के प्रतीक हैं। विभिन्न रंगों से हम हमारी अलग-अलग मनोभावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं और यही कारण है कि प्रकृति ने भी खुद को भिन्न-भिन्न रंगों से अभिव्यक्त किया हुआ है। प्रकृति की इस अभिव्यक्ति को इंद्रधनुष के रूप में सहज ही देखा जा सकता है। वसंत ऋतु में तो प्रकृति की छटा देखते ही बनती है।
Vaastu shastra aur rang |
वास्तुशास्त्र में रंग का महत्व
इन दिनों में शुष्क से शुष्क भावनाओं से युक्त अंतर्मन में भी ऐसा आह्नाद फूट पड़ता है, जैसा ठूंठ वृक्षों में नई कौपलों के आने पर होता है। सच पूछें तो रंग प्रकृति की अनमोल देन है। रंगों के अभाव में यह कल्पना करना कठिन है कि संसार में कितनी नीरसता हो सकती है। अब सवाल यह उठता है कि जब व्यक्ति के जीवन में रंगों का इतना महत्व है, तो उसके वास्तु पर इसका क्या असर होता है।
दरअसल मानव जीवन पर उसके भवन की उर्जा का गहरा प्रभाव पड़ता है और इस उर्जा को संतुलित करने का विज्ञान है वास्तु शास्त्र।वास्तु शास्त्र की मदद से कोई भी जातक अपनी जीवनशैली में परिवर्तन कर सुखी जीवन जी सकता है।
वास्तु शास्त्र और हल्का गुलाबी रंग
वास्तु शास्त्र के अनुसार किसी भी भवन में गृहस्वामी का शयनकक्ष तथा तमाम कारखानों, कार्यालयों या अन्य भवनों में दक्षिण-पश्चिम भाग में जो भी कक्ष हो, वहां की दीवारों व फर्नीचर आदि का रंग हल्का गुलाबी अथवा नींबू जैसा पीला हो, तो श्रेयस्कर रहता है। गुलाबी रंग को प्रेतम का प्रतीक माना जाता है। यह आपसी सामंजस्य तथा सौहार्द में वृद्धि करता है। इस रंग के क्षेत्र में वास करने वाले जातकों की मनोभावनाओं पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। यही वजह है कि होली जैसे पवित्र त्यौहार पर गुलाबी रंग का प्रयोग सबसे ज्यादा किया जाता है। इस भाग में गहरे लाल तथा गहरे हरे रंग का प्रयोग करने से जातक की मनोवृत्तियों पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
वास्तु शास्त्र और हल्का स्लेटी रंग
इसी प्रकार उत्तर-पश्चिम के भवन में हल्के स्लेटी रंग का प्रयोग करना उचित रहता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार यह भाग घर की अविवाहित कन्याओं के रहने या अतिथियों के ठहरने हेतु उचित माना जाता है। इस स्थान का प्रयोग मनोरंजन कक्ष के रूप में भी किया जा सकता है। किसी कार्यालय के उत्तर-पश्चिम भाग में भी स्लेटी रंग का उपयोग करने की सलाह दी जाती है। इस स्थान का उपयोग कर्मचारियों के मनोरंजन कक्ष के रूप में किया जा सकता है।
वास्तु शास्त्र और नारंगी रंग
वास्तु या भवन के दक्षिण में बना हुआ कक्ष छोटे बच्चों के लिए उपयुक्त माना जाता है। चूंकि चंचलता बच्चों का स्वभाव है, इसलिए इस भाग में नारंगी रंग का प्रयोग करना उचित माना जाता है। इस रंग के प्रयोग से बच्चों के मन में स्फूर्ति एवं उत्साह का संचार होता है। इसके ठीक विपरीत इस भाग में यदि हल्के रंगों का प्रयोग किया जाता है, तो बच्चों में सुस्ती एवं आलस्य की वृद्धि होती है।
वास्तु शास्त्र और सफेद रंग
वास्तु या भवन में पूर्व की ओर बने हुए कक्ष का उपयोग यदि अध्ययन कक्ष के रूप में किया जाए, तो उत्तम परिणाम पाया जा सकता है।इस कक्ष में सफेद रंग का प्रयोग किया जाना अच्छा रहता है, क्योंकि सफेद रंग सादगी एवं शांति का प्रतीक होता है। इसे सभी रंगों का मूल माना जाता है। चूंकि दृढ़ता, सादगी तथा लक्ष्य के प्रति सचेत एवं मननशील रहना विद्यार्थियों के लिए आवश्यक होता है, अतः सफेद रंग के प्रयोग से उसमें इन गुणों की वृद्धि होती है। इस स्थान पर चटक रंगों का प्रयोग करने से विद्यार्थी का मन चंचल होगा और उसका मन पढ़ने में नहीं लगेगा।
वास्तुशास्त्र और नीला रंग
वास्तु या भवन में पश्चिम दिशा के कक्ष का प्रयोग गृह स्वामी को अपने अधीनस्थों या संतान के रहने के लिए करना चाहिए और इसकी साज-सज्जा में नीले रंग का प्रयोग किया जाना चाहिए। ऐसा करने से वहां रहने वाले आज्ञाकारी और आदर देने वाले बने रहेंगे तथा उनके मन में गृहस्वामी के प्रति अच्छी भावना बनी रहेगी। वैसे भी नीला रंग नीलाकाश की विशालता, त्याग और अनंतता का प्रतीक है, इसलिए वहां रहने वाले के मन में संकुचित या ओछे भाव नहीं उत्पन्न होंगे। इसी प्रकार किसी वस्तु या भवन के उत्तर-पूर्वी भाग को हरे व नीले रंग के मिश्रण से रंगना अच्छा रहता है। क्योंकि यह स्थान जल तत्व का माना जाता है, इसलिए इसका उपयोग, पूजा-अर्चना, ध्यान आदि के लिए किया जाना उचित है। इस स्थान पर साधना करने से आध्यात्मिकता में वृद्धि होती है तथा सात्विक प्रवृत्तियों का विकास होता है। इस स्थान पर चटक रंगों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
वास्तुशास्त्र और पीला रंग
वास्तु या भवन में दक्षिण पश्चिम का भाग अग्नि तत्व का माना जाता है। इसलिए इस स्थान का प्रयोग रसोई के रूप में किया जाना श्रेष्ठ होता है। इस स्थान की साज-सज्जा में पीले रंग का प्रयोग उचित होता है।
वास्तु शास्त्र और हरा रंग
इसी प्रकार वास्तु या भवन में उत्तर का भाग जल तत्व का माना जाता है। इसे धन यानी लक्ष्मी का स्थान भी कहा जाता है। अतः इस स्थान को अत्यंत पवित्र और स्वच्छ रखना चाहिए और इसकी साज-सज्जा में हरे रंग का प्रयोग किया जाना चाहिए। कहा जाता है कि रंग नेत्रों के माध्यम से हमारे मानस में प्रविष्ट होते हैं एवं हमारे स्वास्थ्य, चिंतन, आचार-विचार आदि पर इनका गहरा प्रभाव पड़ता है। अतः उचित रंगों का प्रयोग कर हम वांछित लाभ पा सकते हैं।
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