परमा एकादशी
Parma Ekadasi |
व्रत का महत्व -
इस व्रत को हरिवल्लभा एकादशी भी कहते हैं। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है। इस सर्वश्रेष्ठ व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। प्राणी इस लोक में सभी प्रकार के सुखों को भोगकर अन्त में विष्णु लोक को चला जाता है।
व्रत का समय -
यह व्रत पुरुषोत्तम (मलमास) या अधिक मास के शुक्ल पक्ष को मनाया जाता है।
व्रत की विधि -
इस व्रत में स्नान आदि द्वारा विधि विधान पूर्वक विष्णु जी की पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस व्रत में विष्णु पुराण या सहस्त्रनाम का पाठ किया जा सकता है तो अति उत्तम माना जाता है।
व्रत सम्बन्धी कथा -
अत्यन्त प्राचीन काल की बात है कि किसी राज्य में वभु वाहन नामक एक दानी और प्रतापी राजा राज्य करता था। वह हर रोज पण्डितों को सौ गायों का दान करता था। उसी राज्य में प्रभावती नामक एक बाल विधवा ब्राह्मणी रहती थी। वह बेचारी विष्णु भगवान की परम भक्त थी। वह पुरुषोत्तम मास में नित्य प्रतिदिन स्नान करके भगवान विष्णु और शंकर जी की पूजा किया करती थी। इसी तरह वह सदैव हरिवल्लभा (परमा) एकादशी का व्रत भी करती थी।
दैवयोग से राजा वभुवाहन और बाल विधवा ब्राह्मणी की एक ही दिन मृत्यु हुई और दोनों एक साथ ही धर्मराज के दरबार में पहुँचे। धर्मराज ने उठकर जितना स्वागत ब्राह्मणी प्रभावती का किया, उतना राजा का नहीं किया। राजा को अपने दान-पुण्य पर जो भरोसा था, उसके प्रतिकूल अपमान और ब्राह्मणी का सम्मान देखकर आश्चर्यचकित रह गए।
इसी समय चित्रगुप्त ने आकर प्रभावती व राजा के कर्म के अनुसार विष्णु लोक व स्वर्ग लोक की बात सुनाई। राजा को इस पर और भी आश्चर्य हुआ जब उसने धर्मराज से इसका कारण पूछा। धर्मराज ने प्रभावती द्वारा हरिवल्लभा एकादशी के व्रत को पूर्ण करने का कारण बताया।
धन्यवाद।
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