पद्मिनी एकादशी
Padmini Ekadasi |
व्रत का महत्व -
इस उत्तम व्रत के आराध्य देव श्री राधा-कृष्ण तथा श्री शिव-पार्वतीजी हैं। इस व्रत को विधि विधान पूर्वक करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं सिद्ध होती हैं तथा वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है। मनुष्य इस लोक में धन-धान्यों, पुत्र-पौत्रादि के सौभाग्य को प्राप्त कर अन्त में विष्णु लोक को चला जाता है। इस व्रत के प्रभाव से प्रत्येक क्षेत्र में विजय श्री की प्राप्ति होती है।
व्रत का समय -
यह प्रभावकारी व्रत मल मास या पुरुषोत्तम मास (लौंद) मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है।
व्रत की विधि-
इस व्रत में राधा-कृष्ण एवं शिव-पार्वती के पूजन का विधान है। इस दिन व्रत करने वाले को चाहिए कि वह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानागार से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। विधि विधान पूर्वक पूजन करके विष्णु भगवान की उपासना करें। इस व्रत में विष्णु पुराण अथवा विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना अति उत्तम माना गया है।
व्रत सम्बन्धी कथा -
जब रावण दिग्विजय करने निकला, तो वह कीर्तिवीर्य सहसार्जुन से पराजित हो गया। इस प्रकार वह बहुत दिनों तक उसकी कैद में पड़ा रहा। अन्त में वह अगस्त्य मुनि की अनुशंसा से जेल मुक्त हुआ। देवर्षि नारद को इस पराजय से बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने पुलस्त्य मुनि से ही रावण की हार का कारण पूछा।
मुनि ने बताया कि कीर्तिवीर्य अर्जुन को पराजित करने की शक्ति भगवान विष्णु के सिवाय अन्य किसी में नहीं है। कारण यह है कि इसकी माता पद्मिनी तथा पिता कीर्तिवीर्य ने पुत्र कामना से गंधमादन पर्वत पर अनेक वर्षों तक कठोर तपस्या की थी, तथा महासती अनुसुइया देवी के कहने पर उन लोगों ने इसी पद्मिनी नामक एकादशी का व्रत किया। उनके व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने स्वयं दर्शन किया था और उन्हें अर्जुन जैसे धरमवीर पुत्र तथा अजेय होने का वरदान दिया था। यही कारण है कि उससे रावण को भी पराजित होना पड़ा।
धन्यवाद।
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