रत्न  एवं रोग चिकित्सा

जय माता दी, दोस्तों.....
कुण्डली में उपस्थित अनेक दोषों के कारण व्यक्ति के शरीर में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। जिनके शमन हेतु रत्न धारण करना एक सर्वोपरि उपचार है। रत्न धारण करने के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि व्यक्ति के शरीर से रत्न का स्पर्श आवश्यक है। स्पर्श के माध्यम से ही किरणें प्रभावित होकर शरीर में प्रवेश करती हैं। इससे सम्बन्धित ग्रह की पीड़ा और रोग का उपचार होता है। तो आइये आज जानते हैं कि किस रोग में कौन सा रत्न पहनना व्यक्ति के लिए लाभकारी होगा।
koun si vimari mai pahne kaun sa ratn

त्वचा रोग एवं रत्न -

 शुक्र ग्रह त्वचा का स्वामी ग्रह है। आजकल सभी को त्वचा से संबंधित समस्या रहती है। बृहस्पति अथवा मंगल के पीड़ित होने पर शुक्र ग्रह त्वचा संबंधी रोग जैसे मुहांसे, दाद , खाज-खुजली, एक्जीमा देता है। कुंडली में सूर्य- मंगल की युति होने पर भी इन रोगों की संभावना रहती है। जन्मपत्री में इस प्रकार के रोग होने पर हीरा, स्फटिक, मूंगा अथवा ओपल धारण करने पर शीघ्र ही लाभ दिखना शुरू हो जाता है।

पैरों में रोग एवं रत्न -

शरीर के अंगों में पैरों का स्वामी शनि ग्रह होता है। पैरों से संबंधित पीड़ा की वजह शनि का पीड़ित या पाप प्रभाव में होना है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्मपत्री के छठे भाव में सूर्य अथवा शनि होने पर पैरों में समस्या रहती है। जल राशि मकर, मीन और कुंभ राशि में जब राहु, केतु, शनि या सूर्य ग्रह होता है, तब पैरों में चर्म रोग की स्थिति बनती है। कभी-कभी इसका परिणाम पैरों को खराब तक कर सकता है। इन रोगों में लाजवर्त, पुखराज या नीलम धारण करने से यथाशीघ्र लाभ मिलता है।

उच्च रक्तचाप एवं रत्न -

चंद्रमा हृदय का स्वामी ग्रह है। चंद्रमा ग्रह के पीड़ित होने पर इस रोग की संभावना अधिक बन जाती है। जिन जातक की जन्म पत्री में सूर्य, शनि, चंद्रमा, राहु और साथ में मंगल की युति कर्क राशि में हो, उन्हें भी यह रोग सताता है। इसके साथ-साथ अगर जातक की कुंडली में पाप ग्रह राहु एवं केतु चंद्रमा के साथ विष योग बनाते हैं, इस स्थिति में जातक को उच्च रक्तचाप की समस्या अधिक होती है। इस रोग की स्थिति में जातक को घर में अग्नि कोण में नहीं सोना चाहिए एवं चंद्रमा ग्रह का रत्न मोती, मंगल ग्रह का रत्न मूंगा के साथ धारण करने से विशेष लाभ होता है।

बवासीर रोग एवं रत्न -

बवासीर अत्यंत पीड़ा देने वाला रोग होता है। जिस जातक की जन्मपत्री में सप्तम भाव पाप ग्रहों से युक्त हो, उसको इस रोग की संभावना अधिक रहती है। साथ में मंगल ग्रह की दृष्टि इस संभावना को और भी प्रबल बना देती है। कुण्डली में अष्टम भाव में शनि व राहु अथवा द्वादश भाव में चंद्र और सूर्य का योग भी बवासीर का कारण बनता है। इस रोग में मोती, मूनस्टोन एवं मूंगा धारण करने से काफी लाभ मिलता है।

गंजापन रोग एवं रत्न -

जिनकी कुंडली में लग्न स्थान में अथवा मेष राशि में स्थित होकर सूर्य शनि पर दृष्टि डालता है, उन्हें गंजेपन की समस्या से पीड़ित होने की संभावना अधिक रहती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नीलम और पन्ना धारण करके इस समस्या पर काफी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है।

मधुमेह रोग एवं रत्न -

जब कर्क, वृश्चिक अथवा मीन राशि में पाप ग्रहों की संख्या दो अथवा उससे अधिक हो, तो इस रोग की संभावना बनती है। अष्टमेश और षष्ठेश कुंडली में एक दूसरे के घर में होते हैं, तब भी मधुमेह रोग का भय बना रहता है। रत्न चिकित्सा के अंतर्गत इस रोग में मूंगा और पुखराज धारण करना लाभप्रद होता है।

दन्त रोग एवं रत्न -

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बृहस्पति जब नीच राशि में होता है अथवा द्वितीय,  नवम एवं द्वादश भाव में होता है, तब दांत से  संबंधी तकलीफ का सामना करना होता है। मूंगा और पुखराज  को पहनना इस रोग में लाभदायक होता है। लोहे का कड़ा धारण करना भी इस रोग में अनुकूल लाभ देता है।

भूलने की बीमारी एवं रत्न -

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में जब लग्न और लग्नेश पाप पीड़ित होते हैं अथवा सूर्य और बुध जब  मेष राशि में होते हैं और शुक्र अथवा शनि उसे पीड़ित करते हैं, तो इस दोष की संभावना बनती है। साढ़े साती के समय जब शनि की महादशा चलती है, उस समय भी भूलने की बीमारी की संभावना प्रबल रहती है। रत्न चिकित्सा पद्धति के अनुसार मोती और माणिक्य धारण करना इस रोग में लाभदायक होता है

 धन्यवाद।
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