वरूथिनी एकादशी व्रत एवं कथा 7 मई 2021
वरूथिनी एकादशी व्रत सुख सौभाग्य का प्रतीक है। इस व्रत को वरूथिनी ग्यारस भी कहा जाता है। इस व्रत को करने से पूर्व जन्म के पाप भी क्षमा हो जाते हैं। वरूथिनी एकादशी के व्रत का फल करोड़ों वर्ष की साधना तथा कन्यादान के फल से भी बढ़कर है। इसका महात्म्य सुनने से सौ गौओं की हत्या का दोष भी नष्ट हो जाता है। इस प्रकार यह बहुत ही मंगलकारी व्रत है।
varuthini ekadasi vart katha |
व्रत को रखने का समय-
यह उत्तम व्रत वैशाख कृष्ण पक्ष में एकादशी के दिन मनाया जाता है।
व्रत रखने की विधि -
इस दिन व्रत करके नींद, पान, जुआ खेलना, चोरी, दन्त- धावन, क्षुद्रता, परनिंदा, रति, हिंसा, झूठ बोलना एवं क्रोध इन ग्यारह चीजों को त्यागने का महात्म्य है। ऐसा करने से मानसिक शांति मिलती है। इस व्रत में अलोना रहकर तेल युक्त भोजन नहीं करना चाहिए। इसका महात्म्य सुनने से व्यक्ति के मन के सारे विकार दूर हो जाते हैं। व्रत करने वालों को चाहिए कि वह हविष्यान्न ही खाएं। परिवार के सदस्यों सहित रात्रि को भगवद् भजन करके जागरण करना चाहिए। सर्वप्रथम स्नानादि से निवृत्त होकर धूप दीप जलाकर भगवान की पूजा अर्चना करनी चाहिए तथा प्रसाद वितरण करना चाहिए।
व्रत संबंधी कथा-
प्राचीन समय में नर्मदा तट पर मांधाता नामक राजा राज्य सुख भोग रहा था। वह राजकाज करते हुए भी अत्यंत दान शील एवं तपस्वी था। एक रोज जब वह तपस्या में लीन था, उसी वक्त एक जंगली भालू आकर उसका पैर जबाने लगा। थोड़ी देर बाद वह राजा को घसीटते हुए वन में ले गया।
इस पर राजा ने घबराकर तापस धर्म के अनुकूल क्रोध ना करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे उसे शीघ्र ही भालू से आकर बचाएं। विष्णु भगवान को तो उस पर दया आ गई तथा उन्होंने भालू का सुदर्शन चक्र से वध कर दिया। लेकिन भालू तब तक उसका पेर खा चुका था। अतः राजा अपंग हो चुका था।
राजा को अत्यंत दुखी देखकर भगवान ने उससे कहा, हे राजन! तुम मथुरा जाकर मेरी वाराह मूर्ति की आराधना वरुधिनी ग्यारस का व्रत रखकर करो। इसके प्रभाव से तुम्हें अपने खोए हुए अंग पुनः मिल जाएंगे।
राजा ने कहा, ठीक है भगवन् मैं वैसा ही करूंगा जैसे कि आपकी आज्ञा होगी। भालू ने जो तुम्हारा पैर जबाया है यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध है और यह तुम्हें अवश्य भुगतना था, भगवान ने राजा को सांत्वना देते हुए कहा। इस प्रकार राजा ने इस व्रत को अपार श्रद्धा एवं भक्ति के साथ किया और वह पुनः सुंदर अंगों से युक्त हो गए ।
इस व्रत को विधि विधान पूर्वक करने वाला इस जन्म में संपूर्ण सुखों को भोग कर अंत में बैकुंठ को चला जाता है।
आरती
शरण में आए हैं हम तुम्हारी,
दया करो हे दयालु भगवन्।
संभालो बिगड़ी दशा हमारी,
दया करो हे कृपालु भगवन्।
न हम में बल है, न हम में शक्ति,
न हम में साधन, न हम में भक्ति।
तुम्हारे दर के हैं हम भिखारी,
दया करो हे दयालु भगवन्।
जो तुम हो स्वामी, तो हम हैं सेवक,
जो तुम पिता हो, तो हम हैं बालक।
जो तुम हो ठाकुर, तो हम हैं पुजारी,
दया करो हे दयालु भगवन्।
प्रदान करो दो महान शक्ति,
भरो हमारे ज्ञान भक्ति।
तभी कहलाओगे पाप हारी,
दया करो हे दयालु भगवन्।
न होगी जब तक दया की दृष्टि,
न होगी जब तक कृपा की तृष्टि।
यह दास कैसे रहें सुखारी,
दया करो हे दयालु भगवन्।
धन्यवाद ।