पुखराज रत्न

जय माता दी। दोस्तों ....
पुखराज को संस्कृत में पुष्पराग कहते हैं,  अंग्रेजी में  White Sapphire  कहा जाता है। रत्नों में पुखराज सबसे लोकप्रिय रत्न है। इसका उपयोग लॉकि,ट अंगूठी आदि जेवर बनाने में किया जाता है।
पुखराज सदैव उपयोगी होता है और इसे सभी राशि वाले पहन सकते हैं सदैव मान-सम्मान, धन प्राप्ति, एक-दूसरे के अन्दर प्रेम-प्यार व एक-दूसरे से सम्बन्ध बढ़ाता है। शादी-विवाह, परिवार में सुख-शान्ति व ऐश्वर्यशाली रत्न है। इसको जितना अधिक से अधिक पहना जाएगा उसे उतना ही उसके गुण बांध पाते हैं।

Pukhraaj Stone
Pukhraaj Stone 

पुखराज का प्राप्ति स्थान -

नीलम, पुखराज एक ही रासायनिक संगठन के हैं, यह रत्न अपनी प्राकृतिक अवस्था में कुरून्दय वर्ग में आते हैं। इनके रंगों की भिन्नता उसमें मिले भिन्न-भिन्न द्रव्य पदार्थों के कारण हो जाती है। हल्के पीले रंग में पुखराज अधिक पाया जाता है।पीले रंग का पुखराज ही सर्वश्रेष्ठ और प्रसिद्ध है परन्तु कुछ समय के उपरान्त आजकल के पुखराज का रंग उतर जाता है। बहुत कम मात्रा में ही टिकाऊ रंग मिल पाते हैं। पुखराज पर्वतीय बर्फीली शिलाओं के नीचे पाया जाता है। इसके साथ और भी कई उपरत्न पैदा हो जाते हैं परन्तु पुखराज अन्य रत्नों से भारी टिकाऊ होने के कारण इन शिलाओं से बहकर कंकड़ों की शक्ल में नदी-तलों पर भी मिल जाता है। यह ठोस चिकनापन लिए भारी होता है। यह बर्फ पिघलने पर पानी में बाढ़ के कारण शिलाओं से बहकर कंकड़ों के रूप में प्राप्त होते हैं जिसको कारीगर तराशकर खूबसूरत बना देता है। यह चिकनाहट लिए हुए अपनी खूबसूरती को अपने आप ही प्रकट करता है। यह एक नरम पत्थर है जिसको अधिक चोट लगने पर टूटने का डर रहता है। इसके अन्दर जितने चीर, चपाड़, दाग, धब्बे पाए जाते हैं। यह उतना ही कीमती होता है। अधिक से अधिक मूल्यवान रत्नों के अन्दर भी चीर चपाड़ दिखाई देगा। यही उसकी असली पहचान है पुखराज,  हीरा आदि कुरून्दय वर्ग के पत्थरों से कुछ कोमल है। पुखराज को रगड़ कर इसमें बिजली पैदा की जा सकती है विद्युत शक्ति प्राप्ति के लिए यह एक विशेष रत्न है।

पुखराज रत्न धारण करने से लाभ -

पुखराज रत्न एक बहुमूल्य रत्नों में माना जाता है। इसके धारण करने से व्यापार तथा एक अच्छा कैरियर बनता है। यह रत्न शुभ गुरु बृहस्पति का रत्न है और गुरु बृहस्पति देव ग्रहों के स्वामी माने जाते हैं। मीन एवं धनु राशि का स्वामी बृहस्पति है। इसलिए उन व्यक्तियों के लिए अत्यन्त लाभकारी होता है। यदि किसी कन्या की शादी में विलम्ब हो रहा हो या होते-होते रह जाता हो तो उस कन्या को यह रत्न धारण करने से शीघ्र शादी होने का योग मिलता है। पुखराज रत्न कुष्ठ, चर्मरोग, पीलिया, अनावश्यक बुखार एवं लीवर समस्या को भी ठीक रखता है। यह रत्न आँखों की रोशनी को भी बढ़ाता है।

आयुर्वेद में पुखराज -

पुखराज को गुलाब जल या केवड़े के जल में पच्चीस दिन तक घोटना चाहिए। जब काजल की भाँति घुट जाए तब उसे छाया में सुखाकर रख लें। यह पुखराज की पिस्टी तैयार हो गयी। पुखराज की भस्म भी बनाई जाती है पुखराज की भस्म या पिस्टी पीलिया, आंवधात, कफ, खाँसी, श्वांस, नक्सीर आदि अनेक रोगों में दी जाती है।

धारण विधि -

पुखराज आठ से ग्यारह रत्ती का सोने या अष्टधातु की अंगूठी में जड़वा लेना चाहिए। गुरुवार के दिन केले के वृक्ष का पूजन करें। पूजन करते समय अंगूठी को वृक्ष की जड़ में रख देना चाहिए। पूजा समाप्ति पर अंगूठी को केले के वृक्ष से स्पर्श कर तर्जनी अंगुली में धारण कर लेनी चाहिए। पुखराज को स्त्री या पुरुष कोई भी धारण कर सकता है। वैसे तो पुखराज धनु और मीन राशि के लिए है परन्तु इसे कोई भी धारण कर सकता है।

धन्यवाद।

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