बुधवार व्रत कथा - budhavaar vrat katha
बुधवार व्रत का महत्व - budhavaar vrat ka mahatv
यह व्रत सद्बुद्धि की प्राप्ति एवं बुध ग्रह की शान्ति हेतु रखा जाता है। इस व्रत को करने के लिए सात बुधवार व्रत का उल्लेख है। बुधवार को विशाखा नक्षत्र का योग व्रत रखने के लिए विशेष रूप से फलदायक कहा गया है।इस व्रत का वृतांत सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण ने पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर को बताया था इसलिए इसमें इष्ट देव श्री कृष्ण जी को प्रधानता मिली है। भगवान श्री कृष्ण की ही आरती एवं चालीसा करने का विधान है। जो भी मनुष्य बुधवार की कथा को पढ़ता अथवा सुनता है उसको बुध के दिन गमन करने का कोई दोष नहीं लगता है। इस व्रत में केवल एक ही बार भोजन करने का विधान है। इस व्रत की सबसे बड़ी खूबी यह है कि जो कुछ भोजन किया जाए, उसी प्रकार की वस्तु भी दान में दी जानी चाहिए। खेत पुष्प, वस्त्र एवं चंदन आदि से बुध देव की पूजा करनी चाहिए।
budhvaar vrat katha |
बुधवार व्रत की पूजन विधि - budhavaar vrat kee poojan vidhi
जब कभी भी बुधवार शुक्ल पक्ष की अष्टमी को आकर पड़े, तभी यह व्रत करना चाहिए। प्रातः काल ही नदी में स्नान करें। जल एवं रत्न पूरित कमण्डल को घर में ले जाकर निम्नांकित क्रम से बुध की पूर्ण कीजिए।अपनी सामर्थ्यानुसार बुध की स्वर्ण प्रतिमा बनवाएं। यह प्रतिमा आपके अंगूठे की मोटाई से अधिक नहीं होनी चाहिए। प्रतिमा के चरणों के निकट चावलों से पूरित एक छोटा कलश रख लें। कलश में कोई भी छिद्र नहीं होना चाहिए। स्वर्ण निर्मित पात्रों को दो पीले कपड़ों में ढककर चावलों से पूजे। पंचामृत से स्नान कराकर क्रमशः मन्त्रों से नैवेद्य, गुगल,धूप, दशांग, सुगंध, घी, कपूर, लड्डू, अशोक पत्र, पाल, शर्करा, गुड, पीले पुष्प, पीले चावल आदि से निम्नवत् पूजा करें।
बुधवार व्रत अंग पूजन - budhavaar vrat ang poojan
आप किसी विद्वान पंडित से पूजन के लिए जो संस्कृत के वाक्य हैं, उन्हें पूछ सकते हैं। इन जगहों पर पूजा करें तथा सोना चांदी या तांबे का सुन्दर पात्र लेकर गंध, अक्षत, जल, तिल, गुड़ से युक्त हो पृथ्वी पर घुटने टेककर अर्ध्य प्रदान करें।
निम्नांकित मंत्र से अर्ध्य देकर इसी मंत्र को जपना चाहिए।
मन्त्र -
"उर्वशी के गुरु पुरूखा के पिता और ग्रहों के पति प्रसन्न आपको विष्णु ने वर दिया है।"
पहले में लड्डू दें, दूसरे में फल, तीसरे में घी, चौथे बट पत्रिका, पांचवे में शुमकार, छठे में सोहाल, सांतवे में अशोक वर्तिका, आठवें में शर्करा मिश्रित खाण्डेय का लायना ब्रह्मण को देकर व्रत का भोजन करें।
बुध की कथा को कहने व सुनने वाला नरक से मुक्ति प्राप्त करता है। सम्पूर्ण सुखदाई चंद्र पुत्र बुध को जल से पूरित कलश, पकवान, पात्र, हिरण्यवस्त्र धारण करने वाला कदापि नरक का पात्र नहीं बनेगा।
बुधवार व्रत का उद्यापन - budhavaar vrat ka udyaapan
व्रतों की समाप्ति अथवा मनोकामना पूरी होने पर धारक को व्रत का विधि विधानपूर्वक उद्यापन कराना चाहिए। मनुष्य को चाहिए कि सप्तमी में दातौन व स्नान करके आचमन करें।दस ब्राह्मणों को संकल्प करके भोजन कराएं। अष्टमी के दिन प्रातःकाल उठकर गंगा में स्नान करके, पवित्र होकर शुद्ध लीपे पुते घर में पुण्याह वाचन एवं रक्षा बन्धन करवाएं।
इसके बाद प्राणायाम करके तिथिवार के उच्चारणोपरांत कहें, "सामफल की प्राप्ति हेतु मैंने बुधाष्टमी का व्रत किया था। अब उद्यापन करूंगा।"
ऐसा उच्चारण करके थोड़ा जल छोड़े तथा वस्त्रादि द्वारा आचार्य और वस्त्र ताम्बूल भूषनादि से ब्राह्मण का वरण करें। शेष विधि-विधान ब्राह्मण से पूछकर भली-भांति करायें। ऐसा करने पर ही फल की प्राप्ति सम्भव है।
बुधवार व्रत में क्या ना करें - budhavaar vrat mein kya na karen
बुधवार के व्रत में निम्नलिखित बातों का विशेष रूप से निषेध माना गया है -
- किसी दूसरे के हाथ का फल न खाएं।
- किसी से भूलकर भी झगड़ा न करें।
- पर नारी को बुरी नजर से न देखें, पूर्ण ब्रह्मचार्य निभायें।
- किसी पर क्रोध न करें। पुराने बिस्तर पर न बैठे।
- धूम्रपान से दूर रहें।
- किसी से रुपए उधार नहीं लेना चाहिए।
- पर निन्दा से बचें।
- अपने शरीर पर सुगन्धित साबुन न मलें।
- असत्य न बोलें।
बुधवार व्रत कथा - budhavaar vrat katha
बहुत समय पहले की बात है। एक आदमी ससुराल गया। वह कुछ दिन वहाँ रुका। सुसराल में उसकी खूब खातिरदारी हुई। कुछ दिन बाद जब उसने अपने घर की याद आई तो उसने अपनी सास से अपनी पत्नी को विदा करने का निवेदन किया।
यह सुनकर उसकी सास ने कहा, "बेटे ! मैं कल प्रातः ही अपनी बेटी के साथ विदा कर दूंगी। आज और यहीं पर आराम करो।"
इस पर दामाद ने अपनी सास से कहा, "नहीं माता जी ! मैं आज ही और इसी समय अपने घर जाना चाहता हूं, मेरी मां मेरी राह देख रही होगी, आप शीघ्र ही हमें विदा करा दें।"
सास ने कहा, "देखो बेटा ! आज बुधवार का दिन है, हमारे कुल की रीति है कि बुधवार के दिन कोई भी माता-पिता अपने दामाद को पुत्री के साथ विदा नहीं करता। ऐसा करने से श्री बुद्धदेव रुष्ट हो जाते हैं तथा हमें उनका कोप भाजन बनना पड़ता है।"
सास ने बात को न बढ़ाने के उद्देश्य से अपनी पुत्री को दामाद के साथ विदा करा दिया। जैसे ही वह अपनी पत्नी को विदा कराकर चला। मार्ग में एक जगह इसकी पत्नी को बहुत जोर की प्यास लगी। गर्मी के कारण उसे चक्कर आने लगे।
यह सुनते ही युवक ने अपना रथ रोक दिया और अपनी पत्नी को रथ पर छोड़कर कुएं से पानी लेने चला गया। वह जैसे ही कुछ देर बाद पानी लेकर रथ की ओर मुड़ा उसने रथ पर अपनी पत्नी के पास अपनी ही शक्ल सूरत वाला व वैसे ही वस्त्र धारण किए दूसरा कोई आदमी देखा।
पास पहुंचकर युवक ने दूसरे युवक से कहा, "तूने मेरी पत्नी के पास बैठने का दुस्साहस कैसे किया।
इस पर नकली युवक ने कहा, "लगता है धूप व गर्मी के कारण तुम्हारी अक्ल खराब हो गई है, मैं तो अपनी पत्नी के पास बैठा हूँ, आज ही इसे ससुराल से विदा कराकर लिए आ रहा हूँ। तुझे दूसरे की पत्नी पर बुरी नजर डालते हुए शर्म नहीं आती।"
यह सुनते ही दोनों में कहासुनी होने लगी। बात बढ़ने पर वहाँ काफी भीड़ इकट्ठी हो गई। जब दूसरे लोगों ने स्त्री से पूछा, तो वह भी कोई संतोषजनक उत्तर न दे सकी। क्योंकि उन दोनों की पोशाक, आवाज, शक्ल व रंग-ढंग भी एक दूसरे से शत-प्रतिशत मिलते थे। वह अपने मन में सही निर्णय नहीं ले पा रही थी कि किसको अपनाये और किसको छोड़े?
इसी बीच उधर से राजा के सैनिक आ निकले। वे असली युवक को जो कि अपनी पत्नी के लिए पानी लेकर आया था, पकड़ने के लिए तैयार हो गए। इस पर असली पति घबराया और ईश्वर से मन ही मन प्रार्थना करने लगा, "हे भगवान ! मुझ निर्दोष के साथ यह घोर अन्याय क्यों हो रहा है ? जो सच्चा है वह झूठ माना जा रहा है और जो वास्तव में झूठा है उसे लोग बिल्कुल सच्चा मान रहे हैं।"
उसकी सच्ची प्रार्थना से प्रसन्न होकर बुद्धदेव ने आकाशवाणी की, हे युवक ! यह सब बुद्धदेव की माया से ही हो रहा है। तूने दूराग्रह पूर्वक बुधवार के दिन सबके मना करने पर भी अपनी पत्नी को ससुराल से विदा कराया था, इसी कारण तुझे यह दारुण दुख भोगना पड़ा।"
यह कहकर बुद्धदेव अन्तर्ध्यान हो गए। उस युवक के रथ पर बैठा हुआ उसका हमशक्ल दूसरा युवक भी अन्तर्ध्यान हो गया। असली पति अपनी पत्नी को लेकर खुशी-खुशी अपने घर को चला गया।
जो कोई भी बुधवार के दिन व्रत करके इस कथा को पढ़ता अथवा सुनता है, उसको बुधवार के दिन गमन करने का कोई भी दोष न लगेगा। इस लोक में सब प्रकार के सुखों को भोगता हुआ अन्त में मोक्ष को प्राप्त होता है।
धन्यवाद।
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