श्री मंगलवार व्रत कथा
मंगलवार व्रत का महत्व - mangalavaar vrat ka mahatv
यह व्रत मंगल देव हनुमानजी को प्रसन्न करने हेतु किया जाता है। वैसे तो हमारे प्रत्येक देवी देवता का अपना-अपना महत्व है। लेकिन अतुलित बलधाम पवन पुत्र हनुमान जी की व्रत कथा सभी कथाओं में अपना प्रमुख स्थान रखती है। इस कथा के आराध्य देव अंजनी पुत्र हनुमान जी हैं। इनके व्रत की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह विद्युत गति से अपने भक्तों के कष्टों को समूल नष्ट कर देते हैं एवं सुखों की वृद्धि करते हैं। इनका व्रत करना नारी के लिए पूर्णतः वर्जित है। इतनी छूट अवश्य है कि रजस्वला होने से पहले कन्याएं इस व्रत को कर सकती है।
Mangalwaar vrat katha |
मंगलवार व्रत की आवश्यक पूजन सामग्री - mangalavaar vrat kee aavashyak poojan saamagree
1.देशी घी 2.कपूर 3.लाल पुष्प 4.लाल वस्त्र 5.भुने हुए गेहूँ 6.बूंदी का मिष्ठान 7.हनुमान जी की प्रतिमा 8.धूपबत्ती 9.अगरबत्ती 10.घी का दीपक।
मंगलवार व्रत की पूजन विधि - mangalavaar vrat kee poojan vidhi
प्रात: काल उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर लाल रंग के स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अपने घर में चावल के आटे से चौक पूरना चाहिए। एक बड़ा सा त्रिकोण बनाएं, उसके बराबर भाग करें। तीसरे में रेखा व चित्र से समभाग चिह्न के समभाग चिह्न कर लें। पहले तो रेखाओं को तीसरे चिह्न में मिला दें, चौथी रेखा को दो चिह्नों तथा पांचवी रेखा की दो रेखाओं को चौथी रेखा के अगले भाग में योजित कीजिए। उसके बाद प्रमाण में दो के बीच स्थित चिह्न में मूल में पूजन करें। प्रस्तुत यंत्र बहुधा दुर्गा माता के चित्रों के नीचे अंकित पाया जाता है। अगहन, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष के मंगलवार में सूर्योदय के वक्त लटजीरे से दातौन करके नदी में स्नान करके लाल रंग के वस्त्र धारण करके मंत्र उच्चारण करना चाहिए। इस अवसर पर भौम गायत्री अथवा अग्नि वृद्धि मंत्र जपना आवश्यक होता है। मन उच्चारण के बाद संकल्प करें, तत्पश्चात देहन्यास करने का नियम है।
देहन्यास - dehanyaas
यहाँ किसी योग्य एवं विद्वान पंडित से ध्यान कराना अति आवश्यक है। संस्कृत के मूल ध्यान व करन्याय कराने चाहिए। यदि किसी कारणवश पंडित न आ सके तो महोदधि ग्रंथ के मुताबिक ध्यान कराना चाहिए जो निम्नवत है।
शिखा (चोटी) में मंगल रक्षा करें।
ललाट में ऋण हर्ता रक्षा करें।
नेत्र में धनप्रद रक्षा करें।
मूंछों में भूमि पुत्र रक्षा करें।
नासिका व कानों में महाकाय सुख रक्षा करें।
ओष्ठ, दन्त, जिह्वा में सत्कर्माव रोधक रक्षा करें।
कष्ट में एयोहिताक्ष रक्षा करें।
दाढ़ी में लोहित रक्षा करें।
दोनों हाथों में कुज रक्षा करें।
ह्रदय में मोन रक्षा करें।
नाभि में अंगारक रक्षा करें।
उदर में मलिंद रक्षा करें।
जानुओं में रोगा पहरक रक्षा करें।
उरुओं में यम रक्षा करें।
जंघा में वृष्टि कर्त्ता रक्षा करें।
गुल्फों में वृष्टि यपहर्त्ता रक्षा करें।
पाद अंगुष्ठ में सर्व काम फलप्रद रक्षा करें।
पूर्व दिशा में शक्ति रक्षा करें।
पश्चिम दिशा में धन्वा रक्षा करें।
उत्तर दिशा में शर रक्षा करें।
दक्षिण में शूल रक्षा करें।
नीचे धरती और ऊपर षड़ासन रक्षा करें।
इस व्रत में एक ही समय गेहूं व गुड़ का भोजन करना श्रेष्ठ होता है। इस व्रत को लगातार 21 सप्ताह करने से शीघ्र ही कार्य की सिद्धि होती है। राज्यसभा में सम्मान प्राप्त होता है।
व्रत कथा - vrat katha
एक समय की बात है कि किसी नगर में वेद प्राग नामक ब्राह्मण निवास करता था। उसकी एक पत्नी थी जिसका नाम सुलोचना था। दोनों पति-पत्नी सुख पूर्वक रहते थे। उनके जीवन में एकमात्र चिन्ता यही थी कि उनके कोई सन्तान न थी।
जब ब्राह्मण वृद्ध हो गया तो उसने एक कन्या को गोद लिया। बड़ी होकर यह कन्या अत्यन्त रूपवती हो गई। ब्राह्मण ने बड़े लाड चाव से अपनी कन्या का पालन पोषण किया। ब्राह्मण कन्या होने के कारण उसके चेहरे पर अपूर्व लावण्य झलकता था। पूर्वजन्म में इस कन्या ने मंगलदेव श्री हनुमान जी की पूजा की थी।
इसी कारण इस कन्या का रंग बिल्कुल सोने जैसा था। उसके सुनहरे शरीर के अंगों से प्रतिदिन सोना निकलता था। इस प्रकार उसे जो भी सोना उपलब्ध होता था, वह बाजार में सुनार को ले जाकर बेच दिया करता था। इस प्रकार कुछ ही रोज में वह ब्राह्मण काफी धनवान बन गया था। चारों दिशाओं में ब्राह्मण का नाम व यश फैलने लगा जब ब्राह्मण की कन्या विवाह के योग्य हो गई तो उसने सोमेश्वर नाम के एक सुयोग्य ब्राह्मण युवक से अपनी सुपुत्री का विवाह विधि विधान पूर्वक संपन्न करा दिया।
एक दिन रात के समय सोमेश्वर व उसकी पत्नी नगर जाने के लिए किसी घने जंगल से गुजर रहे थे। तभी कुछ लुटेरों ने उन्हें घेर लिया। लुटेरों ने उनका सारा धन लूटकर सोमेश्वर को जान से मार डाला। सोमेश्वर की पत्नी ने अपने पति को बचाने के लिए लुटेरों से काफी विनती की, लेकिन उन्होंने उसकी बेरहमी से हत्या कर दी। सोमेश्वर की पत्नी लुटेरों के जाने के बाद लाश के पास बैठकर जोर-जोर से विलाप करने लगी। काफी देर विलाप करने के बाद उसने जंगल से लकड़ियां एकत्रित करके अपने पति की चिता सजाई और उसके साथ ही सती होने का निश्चय किया।
जैसे ही चिता की परिक्रमा कर वह जलने के लिए तैयार हुई, तो उसी वक्त मंगल देव श्री हनुमान जी प्रकट हो गए और कहने लगे, "बेटी ! यह क्या कर रही हो? तेरी पति भक्ति से मैं बहुत प्रसन्न हूं, तेरी जो भी इच्छा हो वही वरदान माँग सकती है।"
मंगल देव के मुख से ऐसे वचनों को सुनकर सोमेश्वर की पत्नी ने कहा, "मंगलदेव ! यदि आप मुझ पर सचमुच प्रसन्न हैं, तो मुझे मेरे पति का जीवन दान दीजिए।"
मंगलदेव ने आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ ऊपर उठाकर कहा, पुत्री एवमस्तु ! तेरा पति देवताओं की भाँति अजर अमर हो जाएगा। अब कोई अन्य श्रेष्ठ वरदान मांगो।"
यह सुनकर सोमेश्वर की पत्नी ने कहा, "हे ग्रहों के स्वामी !यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे यह वरदान दीजिए कि जो कोई भी मंगल के दिन आपका व्रत प्रभात वेला में लाल पुष्पों से पूजन करे, उसे रोग व्याधि कभी भी न हो।"
"तथास्तु !" मंगल देव ने प्रसन्न होकर कहा।
"और उसको अग्नि, शत्रु व सर्प का कहीं भी तनक भी भय न रहे। इस व्रत को करने वाला आजीवन सुखी रहे।" सोमेश्वर की पत्नी ने हाथ जोड़कर पूर्ण श्रद्धा के साथ कहा।
मंगल देव ने प्रसन्न होकर कहा, "मेरा जो भी भक्त सब प्रकार से भोजन का परित्याग करके एक समय अन्न को खाकर 21 मंगलवार के व्रत करेगा। मंगल के पौराणिक वैदिक मंत्रों से अर्ध्य देकर सर्व सामग्री से युक्त युवा बैल का दान देगा एवं अपनी सामर्थ्यानुसार ब्राह्मण को भोजन कराएगा और सोने का दान करेगा, उसके घर में दुख क्लेश कभी नहीं होगा। भूत प्रेत की बाधाओं से सदैव मुक्त रहेगा। अकाल मृत्यु का भय उसको नहीं रहेगा। अग्नि, शत्रु व सर्प से उसे कोई कष्ट नहीं होगा।"
इस प्रकार सोमेश्वर की पत्नी को वरदान देकर मंगलदेव, देवलोक चले गए। उसी दिन से मंगलवार की व्रत कथा का प्रचलन आरम्भ हुआ।
बोलो मंगलदेव श्री हनुमान जी की जय!
मंगलवार व्रत में सावधानियां (वर्जनास)-mangalavaar vrat mein saavadhaaniyaan
इस व्रत को करते समय निम्नलिखित बातों से सावधान रहना चाहिए-
- नारी शरीर को भूलकर भी स्पर्श नहीं करना चाहिए।
- व्रत वाले दिन चारपाई पर बैठना व सोना नहीं चाहिए।
- मंगलवार को रात बारह बजे के पश्चात ही सोना चाहिए।
- इससे पहले मन ही मन हनुमान चालीसा का पाठ भी करते रहें।
- किसी पर गुस्सा न करें।
- धूम्रपान नहीं करना चाहिए।
- पर निन्दा से बचना चाहिए।
- प्याज व लहसुन को छूना भी नहीं चाहिए।
- जहाँ चार नारियां बैठी हों, उनके बीच से भूलकर भी न निकलें।
- किसी अन्य आदमी के शरीर को कदापि स्पर्श न करें।
मंगलवार व्रत का उद्यापन - mangalavaar vrat ka udyaapan
इच्छा पूरी होने पर भी 21 मंगलवार के व्रत सम्पूर्ण हो जाने के उपरान्त ही उद्यापन करने का नियम है। उद्यापन में स्वर्ण से मंगल बनवाकर, लाल चंदन, लाल वस्त्र, लाल पुष्पों से विधि-विधान से पूजन अर्चन करके आठ वर्ग, आठ पुष्प एवं नारियल आदि फलों से अर्क देकर इक्कीस ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
लाल चंदन से 21 घड़े, लाल गाय दान देकर सामग्री सहित शैया एवं मूर्ति आचार्य को देनी चाहिए। यथाशक्ति दक्षिणा भी देने का नियम है। व्रत को समाप्त कर दें।
आजीवन प्रत्येक मंगलवार को व्रत करने से पुत्र, पौत्र एवं धन की प्राप्ति होती है एवं पापों का नाश होता है। इस व्रत को करने वाले प्राणी इस लोक में प्रत्येक प्रकार के सुखों को भोगकर अन्त में मोक्ष प्राप्त होता है।
जो प्राणी मौन रहकर इस व्रत की कथा का श्रवण करते हैं उनके सभी मानसिक पाप नष्ट हो जाते हैं। व्रत के हवन के पश्चात श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें और मंगलदेव की आरती करनी चाहिए।
धन्यवाद।
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