पूजा कक्ष वास्तु

जय माता दी। दोस्तों ...

यदि ध्यान कक्ष या पूजा कक्ष उचित स्थान पर बनाया जाए तो यह वास्तविक दुनिया में समय के साथ व्यक्ति के मनोभावों को मूर्तरूप देने में गति प्रदान करता है। अतः घर में साधना कक्ष उचित स्थान पर बनाया जाना चाहिए ताकि भविष्य में व्यक्ति पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न आए।

पूजा कक्ष वास्तु।
Pooja room vastu

पूजा स्थल और ईशान कोण -

पूजा कक्ष की स्थापना ईशान में होनी चाहिए यदि किसी कारणवश ईशान में पूजा कक्ष नहीं बना पा रहे हैं तो दक्षिण पूर्वी (आग्नेय) या उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र (वायव्य) इन दो स्थानों को छोड़कर पूजा कक्ष स्थापित की जा सकती है। ऐसी स्थिति में ईशान क्षेत्र की पूर्वी दीवार पर एक भगवान की फोटो अवश्य लगानी चाहिए।

पृथक पूजा स्थल -

जिन घरों में पृथक पूजा कक्ष नहीं होता व खड़े होकर पूजा की जाती है, ऐसी स्थिति में पूजा स्थान जमीन से साढ़े चार फीट ऊपर स्थापित किया जाना चाहिए। पूजा स्थल एक ऐसा स्थान है जहां व्यक्ति प्रार्थना करते हैं और आध्यात्मिक दुनिया के संपर्क में आते हैं। यह ऐसा स्थान है जहां भवन के निवासियों द्वारा आकांक्षाएँ, मनोकामनाएँ और लयबद्ध उच्चारण नित्य दोहराए जाते हैं।

पूजा स्थल और शयन कक्ष -

अनेक स्थानों पर देखने में आता है कि बेडरूम के नीचे के कमरे को पूजा का कमरा बना दिया जाता है जो कि उचित स्थान नहीं है। सोते समय व्यक्ति में भू-ऊर्जा बढ़ जाती है व काॅस्मिक ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती है। हमारे शास्त्र बताते हैं कि कभी भी भगवान के स्थान के ऊपर बैठना अथवा सोना नहीं चाहिए। इसी प्रकार शयन कक्ष के अन्दर भी पूजा स्थान निर्धारित करना उचित नहीं होता है। कई बार पूजा कक्ष शयन कक्ष के दरवाजे के ठीक सामने बना दिया जाता है जिससे उस शयन कक्ष में रहने वाले के स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव डालता है।

पूजा स्थल और सीढ़ियां -

ध्यान अथवा पूजा मनुष्य के जीवन में मुख्य भूमिका निभाती है। कई बार पूजा कक्ष सीढ़ियों की लेंडिग पर रख देते हैं व कभी सीढ़ियों के नीचे बना दी जाती हैं। यह दोनों ही स्थान पूजा के लिए उपयुक्त नहीं है। भारतीय स्थापत्य कला में यह भी बताया गया है कि मूर्ति की स्थापना ठोस धरातल पर की जानी चाहिए अर्थात् पूजा घर का निर्धारण कभी भी बालकनी या केन्टीलीवर हिस्से में नहीं किया जाना चाहिए।

पूजा स्थल और शौचालय -

घर में पूजा का निर्धारण करते समय शौचालय का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। कभी भी पूजा घर शौचालय के ऊपर, नीचे अथवा शौचालय की दीवार से लगाकर नहीं बनाना चाहिए। शौचालय एक ऐसा स्थान है जहाँ से घर की ऊर्जा बहकर बाहर निकल जाती है। शौचालय के दरवाजे के सामने भी पूजा स्थान ठीक नहीं है।

पूजा स्थल और रसोई घर -

कई बार पूजा स्थल रसोईघर में बना दिया जाता है। रसोईघर अग्नि प्रधान क्षेत्र है। अतः यह स्थान भी पूजा के लिए उपयुक्त नहीं है। इसी प्रकार रसोईघर के ऊपर के कमरे में, नीचे के कमरे में एवं चूल्हे वाली दीवार के पीछे पूजा का स्थान नहीं बनाया जाना चाहिए।

पूजा स्थल और देव मूर्ति  -

गृहस्थ के घर अगर देव मन्दिर बनाया जाता है तो उस पर कभी भी ध्वज दंड नहीं लगाया जाना चाहिए किन्तु कलश लगाया जा सकता है। पूजा स्थान बनाते समय पूजा में दो शिवलिंग, तीन गणपति, तीन देवी मूर्तियां, तनी आँख, दो मुख वाले शालिग्राम, सूर्य की दो मूर्तियां नहीं रखनी चाहिए। पूजा के लिए अचल प्रतिमा ही रखनी चाहिए। एक हाथ, एक पांव या अंगहीन व खण्डित प्रतिमा घर का नाश करती हैं अर्थात् इनका उपयोग नहीं करना चाहिए। नासिकाहीन प्रतिमा धन का नाश करती है। बैठे हुए गाल वाली प्रतिमा दुखदाई होती हैं। देव पुरुषों या उनके सानिध्य में स्थापित की गई मूर्तियों को कभी त्यागना नहीं चाहिए।

पूजा स्थल और दरवाजे -

ध्यान रखें कि पूजा कक्ष के दक्षिण कोने में दरवाजा नहीं होना चाहिए और न ही पूजा करने वाले की स्थिति दरवाजे के ठीक सामने होनी चाहिए। पूजा कक्ष में दर्पण नहीं लगाना चाहिए।

अन्य ध्यान देने योग्य बातें -

घर में सुख और समृद्धि रहे इस हेतु सुबह-शाम घर में गायत्री मंत्र, णमोकार मंत्र या जो भी मंत्र व आरती आप सुनना पसन्द करते हैं उसे सुनिये या उसका जाप कीजिए।  पूजा-पाठ करते समय धूप व अगरबत्ती का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। इनकी सुगन्ध से सारा वातावरण सुगन्धित एवं स्वच्छ हो जाता है। धूप जलाने से ऊर्जा का सृजन होता है जिससे नकारात्मक उर्जा वाली वायु शुद्ध और पवित्र हो जाती है जिससे वह स्थान पवित्र हो जाता है और मन को शान्ति मिलती है। मुख्य द्वार के ऊपर सिंदूर से स्वास्तिक का नौ अंगुल लम्बा तथा नौ अंगुल चौड़ा चिह्न बनाए। घर में जहां-जहां वास्तु दोष है, वहाँ यह चिह्न बनाया जा सकता है।
इस प्रकार पूजा कक्ष जनित वास्तुदोष का निवारण कर शारीरिक व मानसिक रूप से उर्जा युक्त होकर उन्नति की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
धन्यवाद 



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