गायत्री मंत्र

जय माता दी दोस्तों.........
कल 25 मार्च से हिन्दू नव वर्ष प्रारम्भ हो रहा है।*
आप सभी से अनुरोध है कि अपने-अपने घर में परिवार के साथ नवरात्री(गायत्री मंत्र/महामृत्युंजय मंत्र) के साथ *हवन* करें। जिससे घर में अच्छा *वातावरण बनेगा |
आपको व आपके परिवार को
 *नव वर्ष मंगलमय हो।* 

परमात्मा तु लोके या ब्रह्म शक्तिर्विराजते।
सूक्ष्मा च सात्विका चैव गायत्री साभिधीयते।।
समस्त लोकों में परमात्म स्वरूपिणी जो ब्रह्मशक्ति विराज रही है, वही सूक्ष्म-सत्-प्रकृति के रूप में गायत्री के नाम से ही अभिहित होती है।

gayatri mantra
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गायत्री मंत्र का अर्थ एवं ध्यान।

मुक्ताविद्रुमहेमनीलधवलच्छायैर्मुखैस्त्रीक्षणैर्युक्तामिन्दुनिबद्धधरत्न मुकुटां तत्त्वात्मवर्णात्मिकाम्। गायत्रीं वरदाभयांकुशकशाः शुभ्रं कपालं गुणं, शंखं चक्रमथारविन्दयुगलं हस्तैर्वहन्तीं भजे।।

गायत्री के पांच मुख (पांच प्राण -प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान तथा पंचतत्व -पृथ्वी, जल, वायु, तेज, आकाश के धारक प्रेरक हैं। ये कमल पर विराजमान होकर रत्न, हार व आभूषण आदि धारण करती है। इनके दस हाथ हैं, जिनमें क्रमशः दस आयुध-  शंख, चक्र कमलयुग्म, वरद अभय, कशा, अंकुश, उज्जवल पात्र एवं रुद्राक्ष की माला सुशोभित होते हैं। ब्राह्मण को प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जाप विधान से करना चाहिए, तत्पश्चात अन्य देवता की उपासना करें।

ओंकार पूर्विकास्तिस्त्रो महाव्याहृतयोऽव्ययाः। त्रिपदा चैव सावित्री विज्ञेया ब्रह्मणो मुखम्।।

तीन मात्रा वाले ओंकार पूर्वक तीन महाव्याहरति और त्रिपदा सावित्री को ब्रह्म का मुख (द्वार) जानना चाहिए।

एकाक्षरं परं ब्रह्म, प्राणायामः परं तपः।
सावित्र्यास्तु परं नास्ति मौनात् सत्यं विशिष्यते।।

एकाक्षर प्रणव ही परम ब्रह्म है। प्राणायाम ही परम तप है। मौन से सत्य ही विशिष्टतर है। अतः गायत्री से उत्तम कोई मंत्र नहीं है।

गायत्री मंत्र की व्याख्या

ओउम् भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।।

नंबर 1 ओंकार की तीन मात्राएं -

अकार, उकार, मकार और चौथा अमात्र विराम।

अकार- एक मात्रा वाले विराट् जो स्थूल जगत के सम्बन्ध से परमात्मा का नाम है।

फल- पांचों स्थूल भूतों और उनसे बने हुए पदार्थों को आत्मोन्नति में बाधक होने से हटाकर साधक बनाने वाला अपने विराट रूप के साथ स्थूल जगत् के ऐश्वर्य का उपभोग करने वाला।

उकार- दो मात्रा वाले हिरण्यगर्भ, जो सूक्ष्म जगत् के सम्बन्ध से परमात्मा का नाम है।

फल- पांचों स्थूल- सूक्ष्म भूतों और अहंकार आदि को आत्मोन्नति में बाधक होने से हटाकर साधक बनाने वाला, अपने हिरण्गयगर्भ रूप के साथ सूक्ष्म जगत् में ऐश्वर्य का भोग कराने वाला।

मकार- तीनों मात्रा वाले ईश्वर जो करण जगत् के सम्बन्ध से परमात्मा का नाम है।

फल- कारण जगत् को आत्मोन्नति में बाधक बनने से हटाकर साधक बनाने वाला, अपने ऊपर स्वरूप के साथ कारण जगत् के ऐश्वर्य का उपभोग कराने वाला।

अमात्रा विराम - पर ब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति अर्थात् स्वरूपावस्थिति जो प्राणिमात्र का अन्तिम ध्येय है।

नंबर 2 तीन महाव्याहतियाँ- भूः भुवः स्वः-

भूः - सारे ब्रह्मांड का प्राण रूप (जीवन देने वाला) ईश्वर, सब प्राणधारियों का प्राण सदृश आधार और प्यारा पृथ्वी लोक का नियन्ता।

भुवः - सारे ब्रह्मांड का अपान रूप (पालन- पोषण करने वाला) ईश्वर, सब प्राणियों को तीनों प्रकार के दुःखों से छुड़ाने  वाला, अन्तरिक्ष लोक का नियन्ता।

स्वः - सारे ब्रह्मांड का व्यान रूप (व्यापक) ईश्वर, सब प्राणधारियों को सुख और ज्ञान देने वाला द्यौलोक का नियन्ता।

नंबर 3 गायत्री के तीन पाद-

तत्सवितुर्वरेण्यम्। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।।

सवितुः - सब जगत् को उत्पन्न करने वाले अर्थात् सब प्राणधारियों के परम माता पिता।

देवस्य - ज्ञान रूप प्रकाश को देने वाले देवों के देव।

तत्-  उस।

वरेण्यम् - ग्रहण करने योग्य अर्थात् उपासना करने योग्य।

भर्गो - शुद्ध स्वरूप का (तेज का )

धीमहि - हम ध्यान करते हैं।

यः -जो (पूर्वोक्त सविता देव)

नः - हमारी

धियः - बुद्धियों को।

प्रचोदयात् - ठीक मार्ग में प्रवृत करें।

सब प्राणियों के परम पिता -माता, ज्ञान रूप प्रकाश को देने वाले देव के उस उपासना करने योग्य शुद्ध स्वरूप का हम ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धियों को ठीक मार्ग में प्रवृत करें। तीनों गुणों का प्रथम विषम परिणाम महतत्त्व है। इसको व्यष्टि रूप में बुद्धि तथा चित्त कहते हैं। इसी से सत्- असत्, कर्त्तव्या- कर्त्तव्य, धर्म -अधर्म आदि का निर्णय किया जाता है।इसी में जन्म, आयु और भोग देने वाले संस्कार रहते हैं। इसके पवित्र होने से सन्मार्ग की प्राप्ति, संस्कारों की निवृत्ति और जन्म, आयु और भोग से मुक्ति हो सकती है। इस गायत्री मंत्र में विशेष रूप से बुद्धि अथवा चित्त को पवित्र करने की सर्वोपरिय शक्ति है। इतनी प्रबल शक्ति अन्य दूसरे किसी भी मंत्र में नहीं है।

गायत्र्यास्तु परं नास्ति शोधनं पापकर्मणाम्। महाव्याहतिसंयुक्तां प्रणवेन च संजपेत्।।

गायत्री से बढ़कर पापकर्मों का शोधक ( प्रायश्चित्) हेतु दूसरा कोई भी मंत्र नहीं है। प्रणव (ओंकार) सहित तीन महाव्याहरतियों से युक्त गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए।
धन्यवाद ।

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