कैसे बनता है काल सर्प योग


जय माता दी।
दोस्तों.........

राहु केतु मध्ये ग्रहासर्वे विघ्नदा काल सर्प संज्ञकः। 
सुतत्रासादि सकल दोषः रोगेन प्रकाशे मरणं ध्रुवम।।

यदि राहु व केतु के बीच में सभी ग्रह आ जाते हैं, तो वह कालसर्प योग होता है। यह योग पुत्र को हानिकारक सभी दोष, रोग भय तथा मरण फल देने वाला होता है। कुछ विद्वानों का कहना है कि जब कुंडली में राहु और केतु के मध्य में समस्त ग्रह हों अथवा समस्त पाप क्रय केंद्र स्थान में स्थित हों, तो कालसर्प योग बनता है।

kaise banta hai kaalsarp yog
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इस योग में उत्पन्न जातक दरिद्र होता है। यदि यह योग गोचर में राशि से या जन्म लग्न से बनता हो, तो उस समय जातक को महान हानियां उठानी पड़ती है, परंतु यदि जन्म के समय पाप ग्रह उच्च या बली हों तथा गोचर में कालसर्प योग बनता हो तो उस जातक को इस योग में नाना प्रकार के लाभ भी होते हैं। परंतु यदि जन्म का कालसर्प योग हो अथवा जन्मकाल में पाप ग्रह निर्बल, नीच या अस्तंगत हो तो गोचर का कालसर्प योग महान हानिकारक होता है।

अनन्त कालसर्प योग -

  • यदि जन्म कुंडली के प्रथम भाव (तन) स्थान में राहु और सप्तम भाव में केतु हो तथा समस्त ग्रह राहु व केतु के मध्य  स्थित हो, तो अनन्त कालसर्प योग बनता है।

कर्कोटक कालसर्प योग -

  • कुंडली के दूसरे स्थान में राहु और अष्टम स्थान में केतु के मध्य समस्त ग्रह हो तो कर्कोटक नामक कालसर्प योग होता है।

वासुकी कालसर्प योग -

  • कुंडली के तृतीय स्थान में राहु तथा नवम में केतु के मध्य समस्त ग्रह हो तो वासुकी नामक कालसर्प योग होता है।

शंखपाल कालसर्प योग -

  • कुंडली के चतुर्थ स्थान में राहु और दशम कर्म क्षेत्र में केतु के मध्य में समस्त ग्रह होने से शंखपाल नामक कालसर्प योग होता है।

पदम कालसर्प योग -

  • कुंडली के पंचम स्थान में राहु तथा ग्यारहवें घर में केतु के मध्य समस्त ग्रह होने से पदम नामक कालसर्प योग बनता है

महापदम कालसर्प योग -

  • कुंडली के छठे घर में राहु और बारहवें में केतु के मध्य समस्त ग्रह स्थित हो तो महापदम नामक कालसर्प योग होता है।

तक्षक कालसर्प योग -

  • कुंडली के सातवें घर में राहु और लग्न में केतु के मध्य समस्त ग्रह आने से तक्षक नामक कालसर्प योग होता है।

कुलिक कालसर्प योग -

  • कुंडली के अष्टम घर में राहु तथा दूसरे घर में केतु के मध्य समस्त ग्रह आने पर कुलिक नामक कालसर्प योग बनता है। 

शंखनाद कालसर्प योग -

  • कुंडली के नवम भाव में राहु और तीसरे स्थान में केतु के मध्य समस्त ग्रह हो तो शंखनाद नामक कालसर्प योग होता है।

पातक कालसर्प योग -

  • कुंडली के दसवें घर में राहु चौथे स्थान में केतु के मध्य में समस्त ग्रह हो तो पातक नामक कालसर्प योग होता है।

विषाक्त कालसर्प योग -

  • कुंडली के ग्यारहवें भाव में राहु तथा पंचम भाव में केतु के मध्य समस्त ग्रह हो तो विषाक्त नामक कालसर्प योग होता है।

शेषनाग कालसर्प योग -

  • कुंडली के बारहवें घर में राहु और छठे घर में केतु के मध्य समस्त ग्रह हो तो इससे शेषनाग नामक कालसर्प योग बनता है।

नोट- 

  • कहीं-कहीं द्वादश नागों के नामों में कुंडली के स्थानों से बनने वाले कालसर्प योगों में अंतर पाया जाता है। जैसे- कुछ विद्वान दूसरे भाव से बनने वाले कर्कोटक योग को कुलिक मानते हैं, और कर्कोटक आठवें भाव से बनता है, ऐसा मानते हैं। 
  • नवें को शंखनाद के स्थान पर शंखचूड़ नाग तथा दसवें को पातक भी मानते हैं।
  • परंतु ध्यान वन्दना में केवल नवनाग अनन्त, वासुकी, शेषनाग, पद्मनाभ, कम्बल, शंखपाल, कर्कोटक, कालिया और तक्षक का ही जिक्र किया गया है।
  • कालसर्प योग की अशुभता तब और बढ़ जाती है जब जातक का जन्म पीपल वृक्ष के नीचे, देव मंदिर में, श्मशान या उसके निकट चौराहे पर, सर्प बाबी वाले स्थान में, संध्या के समय हुआ हो। 
  • यदि जन्म के समय भरणी, मघा, आर्द्रा, अश्लेषा, मूल अथवा कृत्तिका नक्षत्र हो तथा पंचमी, दशमी, अमावस्या तिथि में कालसर्प योग हो तो महादेव ही रक्षक होते हैं।

 कालसर्प योग का शांति विधान अगले भाग में लिखा जाएगा।

धन्यवाद।

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