चन्द्रमा से बनने वाले योग

जय माता दी। दोस्तों .......
चन्द्रमा की स्थिति से जन्मकुण्डली में अनफा, सुनफा, दुरूधरा और केमद्रुम योग बनते हैं।

chandrama se banne wale yog
chandrama se banne wale yog


अनफा योग का अर्थ -

  • सूर्य को छोड़कर चन्द्रमा से द्वादश भाव में ग्रह हों तो अनफा योग होता है। 
  • अनफा योग में चन्द्रमा से बारहवें स्थान में मंगल हो तो जातक चोरों का अधिपति, घमण्डी, स्वतंत्र, मानी, युद्ध में कुशल, क्रोधी, सम्पत्ति बढ़ाने वाला तथा सुन्दर शरीर वाला ढ़ीठ पुरुष होता है। 
  • अनफा योग में यदि चन्द्रमा से बारहवें स्थान में बुध हो तो जातक, गान्धर्व विद्या में निपुण, लेखन कार्य में चतुर, काव्यकर्ता, प्रवचन करने वाला, राजा से सत्कार पाने वाला, कांतिमान, दर्शनीय स्वरूप एवं प्रसिद्ध कर्म करने वाला होता है। 
  • अनफा योग में यदि चन्द्रमा से बारहवें स्थान में बृहस्पति हो तो जातक मेधावी, बुद्धिमान, राजा द्वारा मान्य, कीर्तिमान और अच्छा कवि होता है। 
  • अनफा योग में यदि चन्द्रमा से बारहवें स्थान में शुक्र हो तो जातक युवतियों का अत्यन्त प्यारा,  राजा का प्रेमी, बुद्धिमान, सुन्दर और स्वर्ण  रत्नादि से सम्पन्न होता है। 
  • यदि चन्द्रमा से बारहवें स्थान में शनि स्वगृही,  उच्च या योग कारक हो तो जातक आजानुलम्बबाहु वाला, सुन्दर स्वरूप,  वचन का पालक, पशु धन से धनी, कुस्त्री के साथ सम्भोग करने वाला, गुणवान तथा पुत्रवान होता है। 
  • यदि चन्द्रमा से बारहवें भाव में समस्त ग्रह इकट्ठे हो तो जातक एम.पी., एम.एल.ए. या राजनेता होता है। ऐसा जातक चुनाव कार्य में सफलता प्राप्त कर, अपने भुजबल से धन, यश और प्रभुत्व का अर्जन करता है।

सुनफा योग का अर्थ -

  • यदि सूर्य को छोड़कर चन्द्रमा से द्वितीय स्थान पर कोई शुभ ग्रह हो तो सुनफा योग होता है। 
  • सुनफा योग में यदि चन्द्रमा से द्वितीय स्थान पर मंगल हो तो जातक अपने पराक्रम से धनोपार्जन करने वाला, कठोर वचन भाषी, राजा, हिंसक और बहुतों का विरोधी होता है। 
  • सुनफा योग में यदि बुध द्वितीय स्थान पर हो तो जातक वेद शास्त्र में निपुण, संगीतज्ञ, धर्मात्मा, कवि, मनस्वी, सबों का हित चाहने वाला तथा सुन्दर शरीर वाला होता है। 
  • सुनफा योग में यदि बृहस्पति द्वितीय स्थान पर हो तो जातक नाना प्रकार की विद्याओं में आचार्य,  विख्यात, राजा अथवा  राजा का प्रिय तथा जन-धन से संपन्न होता है। 
  • सुनफा योग में यदि शुक्र हो तो स्त्री-खेत-भूमि और घर का अधिपति, पशुओं से धनी, पराक्रमी, राजा से सम्मानित और सब कार्यों में समर्थ पुरुष होता है। 
  • यदि सुनफा योग में शनि द्वितीय स्थान पर हो तो जातक विवेकशील, ग्राम और  नगर के जनों से  पूजित, अत्यन्त धनवान, कार्य को गुप्त रखने वाला, किन्तु मलिन हृदय वाला होता है। 
  • यदि सूर्य को छोड़कर चन्द्रमा से द्वितीय स्थान पर कोई शुभ ग्रह इकट्ठे हों तो प्रबल सुनफा योग होता है। इस योग में होने वाला जातक सुखी होता है तथा उसे धन-धान्य व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

दुरूधरा योग का अर्थ -

  • यदि चन्द्रमा से द्वितीय और द्वादश भाव में सूर्य को छोड़कर अन्य ग्रह हो तो दुरूधरा योग होता है। 
  • यदि दुरूधरा योग कारक में मंगल और बुध हो तो जातक मिथ्याभाषी, अत्यंत धनवान, कार्यकुशल, महाधूर्तराज, अधिक गुण युक्त, लोभी, वृद्धा स्त्री में आसक्त और कुल में श्रेष्ठ होता है। 
  • यदि दुरूधरा योग कारक में मंगल और गुरु हो तो जातक सत्कार्यों में विख्यात, कपटी, बहुतों से वैर रखने वाला, दरवाजे पर प्रहरी रखने वाला, ढ़ीठ जनों की रक्षा करने वाला तथा धन का संचय करने वाला होता है। 
  • यदि दुरूधरा योग कारक मंगल और शुक्र हो तो जातक सुशीला और पतिव्रता पत्नी वाला, सुन्दर स्वरूप,  विवादी, अस्त्र विद्या का ज्ञाता, शूरवीर, कसरत करने वाला और युद्ध में उत्साह दिखाने वाला होता है। 
  • यदि दुरूधरा योग कारक में मंगल और शनि हों तो जातक उत्तम सुरत क्रिया करने वाला, बहुत धन संग्रह करने वाला, व्यसनशील, क्रोधी, चुगलखोर और अधिक शत्रु वाला होता है।
  • यदि दुरूधरा योग कारक में बुध और बृहस्पति हो तो जातक धर्मात्मा, शास्त्रज्ञाता, बोलने में चतुर, धन सम्पत्ति को बढ़ाने वाला, दानी तथा लोक विख्यात पुरुष होता है। 
  • यदि दुरूधरा योग कारक में बुध और शुक्र हों तो जातक प्रियवक्ता, मनोहर कांति वाला, प्रगति मार्ग रत, पुण्यवान, राजा, सुखयुक्त, शूरवीर और राजमंत्री होता है। 
  • यदि बुध और शनि के बीच में चन्द्रमा हो तो जातक अनेक देश विदेशों में घूमने वाला,  धन को तुच्छ मानने वाला, विद्वान, अन्य जनों में सम्मानित किन्तु  स्वजनों से हताहत होता है। 
  • यदि बृहस्पति और शुक्र के बीच में चन्द्रमा हो तो जातक मेधाशक्ति और स्थिरता से युक्त, धैर्यवान, नीतिवान, स्वर्ण रत्नादि धन-धान्य से परिपूर्ण, लोक में विख्यात तथा राज कर्मचारी होता है। 
  • यदि बृहस्पति और शनि के मध्य में चन्द्रमा हो तो जातक सब प्रकार से सुखी, नीतिज्ञ, वैज्ञानिक, प्रियवक्ता, विद्वान एवं सब कार्यों में समर्थ, पुत्रवान, धनवान और सुन्दर स्वरूप वाला होता है। 
  • यदि शुक्र और शनि के बीच में चन्द्रमा हो तो जातक अपने से अधिक उम्र वाली स्त्री का पति, कुलीन, कार्यों में चतुर, स्त्रियों का प्रिय, धनवान, राजा से सत्कार पाने वाला और अनेक विषयों का ज्ञाता होता है।
  • यदि चन्द्रमा से द्वितीय व द्वादश भाव में सभी शुभ ग्रह हों तो प्रबल दुरूधरा योग होता है। इसमें उत्पन्न जातक दानी, धन व वाहन युक्त, नौकर-चाकर से विभूषित, राजमान्य एवं प्रतिष्ठित होता है।

केमद्रुम योग का अर्थ -

  • यदि चन्द्रमा के साथ में या उससे द्वितीय एवं द्वादश स्थान में तथा लग्न से केंद्र में सूर्य को छोड़कर अन्य कोई ग्रह नहीं हो तो केमद्रुम योग होता है। 
  • केमद्रुम योग में जन्म लेने वाला जातक स्त्री-पुत्र से हीन, विदेशवासी, दुखी, अपने गोत्र वालों के सुख से हीन, व्यर्थ बकवाद करने वाला, मलिन वस्त्रधारी, नीच, निकृष्ट आचार करने वाला, डरपोक, दीर्घायु, दरिद्र और निन्दित होता है। वह दूतकर्म करता है, चाहे राजा के घर जन्म क्यों न ले।

केमद्रुम भंग योग -

  • यदि चन्द्रमा केंद्र में हो अथवा चन्द्रमा किसी ग्रह से युक्त हो तो केमद्रुम योग का भंग हो जाता है। 
  • यदि चन्द्रमा समस्त ग्रहों से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग जनित अशुभ फल का नाश हो जाता है, और जातक चिरंजीवी, सार्वभौम राजा और शत्रुओं को जीतने वाला होता है। 
  • यदि केमद्रुम योग में चन्द्रमा पूर्ण बिम्ब होकर शुभ ग्रह की राशि में हो या बुध, बृहस्पति और शुक्र से दृष्ट हो तो जातक धन, पुत्रादि सुख से युक्त,  यशस्वी होकर लोक में प्रसिद्ध होता है।
धन्यवाद।

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