रक्षाबंधन

जय माता दी। दोस्तों ......

शुभ मुहूर्त

राखी बांधने के समय भद्रा नहीं होनी चाहिए। कहते हैं कि रावण की बहन ने उसे भद्रा काल में ही राखी बांध दी थी इसलिए रावण का विनाश हो गया। 3 अगस्त को भद्रा सुबह 9 बजकर 29 मिनट तक है। राखी का त्यौहार सुबह 9 बजकर 30 मिनट से शुरू हो जाएगा। दोपहर को 1 बजकर 35 मिनट से लेकर शाम 4 बजकर 35 मिनट तक बहुत ही अच्छा समय है। इसके बाद शाम को 7 बजकर 30 मिनट से लेकर रात  9 बजकर 30 मिनट के बीच बहुत अच्छा मुहूर्त है।

रक्षाबंधन एवं शुभ मुहूर्त 3 अगस्त, 2020
Rakshabandhan

रक्षाबंधन के दिन महासंयोग

रक्षाबंधन के दिन बहुत ही अच्छे ग्रह नक्षत्रों का संयोग बन रहा है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। इस संयोग में सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। इसके अलावा इस दिन आयुष्मान दीर्घायु योग है यानि भाई-बहन दोनों की आयु लम्बी हो जाएगी। 3 अगस्त को चन्द्रमा का ही श्रवण नक्षत्र है। मकर राशि का स्वामी शनि और सूर्य आपस में समसप्तक योग बना रहे हैं। शनि और सूर्य दोनों आयु बढ़ाते हैं। ऐसा संयोग 29 साल बाद आया है।

रक्षाबंधन का महत्व 

भारतीय संस्कृति में त्यौहारों का विशेष महत्व है। ऐसा शायद ही कोई मास अथवा सप्ताह होगा जिसमें त्यौहार अथवा व्रत न होते हैं। त्यौहार हमारी संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। रक्षाबंधन भी ऐसी हमारी संस्कृति की अनुपम देन है।

रक्षाबंधन का अर्थ

रक्षाबंधन का अर्थ है रक्षा का बंधन यानी किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना, रक्षाबंधन हिंदू जाति का पावन पर्व है। इसमें हमारी भावनाओं को भली भांति पिरोया गया है। यह त्यौहार बताता है कि हमारी संस्कृति किस प्रकार आदर्शों की पुंज रही है। इन्हीं राखी के कोमल तारों ने बहादुर भाइयों को ब्रिज बनाकर दुष्टों, पापियों एवं शत्रुओ के दमन करने की सदैव प्रेरणा दी है। इस प्रकार के पर्व के आधार पर ही भारतीय आज भी चारित्रिक रूप से श्रेष्ठ कहलाने के हकदार हैं। यह पर्व अपने परिवार के प्रति और अपने राष्ट्र के प्रति कर्तव्य की याद दिला कर हमें समाज की ओर प्रेरित करता है।

पर्व को मनाने का समय 

यह पावन पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा को बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। श्रावण मास में मनाए जाने के कारण कुछ लोग इसे श्रावणी के नाम से जानते है

पर्व को मनाने की विधि 

इस दिन सभी भाई-बहन प्रातः काल स्नान कर नए-नए वस्त्र धारण करते हैं। बहने भाइयों की कलाई पर अपनी रक्षा के लिए रक्षा सूत्र के रूप में राखी बांधती है। बहनें अपने भाई के मस्तक पर मंगल टीका लगाती हैं। राखी बांधते वक्त बहन कहती है, "हे भैया ! मैं तुम्हारी शरण में हूं, मेरी सब प्रकार से रक्षा करना|" भाई बहनों से राखी बंधवा कर उनकी रक्षा का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेते हैं। वे उन्हें राखी बंधवाकर, यथाशक्ति, धन, वस्त्र, आभूषण आदि देते हैं अथवा बहन कहीं भी रहे रक्षाबंधन का पावन दिवस उनके हृदय में अपूर्व उल्लास व उमंग भर देता है। बहन की स्मृति भाइयों के प्रति जाग उठती है। यदि किसी कारणवश वह अपने भाई के यहां राखी बांधने न आ सके तो अपने भाइयों के लिए डाक द्वारा राखी भिजवा कर अपने प्रति भाइयों को कर्तव्य की याद  दिलाती है।
राखी की प्राचीन परंपरा काफी बदल चुकी है। हमारे देश के विभिन्न प्रांतों में इसे प्रथक-प्रथक ढंगो से मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश में राखी बांधने का कार्य अक्सर ब्राह्मण लोग ही करते हैं। अपने यजमान के हाथ में रक्षा-सूत्र बांधकर उनकी उन्नति के लिए प्रार्थना करते हैं।
गुजरात निवासी नदी अथवा समुद्र के किनारे एकत्रित हो अपनी बंधुता भावना को प्रकट करने हेतु तथा पारस्परिक संबंधों को मजबूत करने हेतु अपने यज्ञोपवित्र बदलते हैं। वह नारियल लेकर समुंद्र पूजन करते हैं। गुजरातवासी इसे बलेव नाम से मानते हैं। राजस्थान में राखी के पर्व का आज भी विशेष महत्व है। वहां बहने ही अपने भाइयों के हाथ में राखी बांधती हैं। जिस बहन का भाई नहीं होता, वह किसी सगे संबंधी के हाथ में राखी बांधकर अपनी रक्षा हेतु कामना करती् है।

रक्षाबंधन से संबंधित कथाएं 

  • इस पावन पर्व के साथ अनेक पौराणिक व ऐतिहासिक कथाएं जुड़ी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि इसी दिन वेदों का अवतार हुआ था। ब्राह्मण लोग रक्षाबंधन के दिन अपने यजमानो के हाथों में राखी बांधते थे। यजमान ब्राह्मणों को दक्षिणा में अनाज एवं रुपया पैसा देते थे। 
  • बहुत प्राचीन काल से ही यह त्यौहार हमारी संस्कृति का एक अभिन्न अंग बना हुआ है। आदि काल से ही शुभ कार्य में रक्षा सूत्र बांधने का प्रचलन रहा है। वास्तव में यह कार्य रक्षाबंधन का ही एक रूप है। निम्नांकित कथा से इस पर्व का महत्व अपने आप प्रकट हो जाता है।
  • एक बार की बात है कि राक्षसों एवं देवताओं के मध्य घमासान युद्ध छिड़ गया। देवताओं ने अपने पूरे दलबल से राक्षसों का मुकाबला किया, लेकिन वह राक्षसों के सम्मुख अधिक देर तक ठहर न सके। अंत में देवता लोग पराजित होने लगे। अपनी होती हुई पराजय को देखकर देवराज इंद्र को चिंता सताने लगी कि कहीं स्वर्ग में राक्षसों का आधिपत्य न हो जाए तथा स्वर्ग का सिंहासन न छिन जाए। अंत में चारों ओर से हताश होकर वे अपने गुरु बृहस्पति जी से परामर्श हेतु मिले |  गुरुदेव ने उन्हें एक यज्ञ का आयोजन करने हेतु कहा |  यज्ञ की समाप्ति पर देवराज इंद्र की कलाई पर गुरुदेव ने रक्षा सूत्र बांधा यह उनकी विजय के प्रतीक के रूप में था। इस सूत्र के बंधते ही देवराज अपूर्व शौर्य एवं उल्लास से भर उठे जिसके कारण राक्षस पराजित हो गए। उसी दिन से विजय कामना के प्रतीक स्वरूप ही राखी बांधने की परंपरा बन गई।
  • रक्षाबंधन राजपूत जाति का विशेष पर्व रहा है। राजपूत जाति सदा से ही संघर्षरत रही  है। युद्ध को वह बच्चों का खेल समझते थे। जब कभी ये लोग युद्ध के लिए घर से निकलते तो उनकी बहने एवं स्त्रियां उनकी कलाइयों में रक्षा सूत्र बांधकर उनकी विजय हेतु प्रभु से प्रार्थना किया करती थी। राजपूत वीर भी अपने इस उत्तरदायित्व को  बखूबी निभाते जब कभी किसी राजपूत नारी का अस्तित्व खतरे में रहता तो वे अपनी जाति के किसी पुरुष को राखी बांधकर अपनी रक्षा का उत्तरदायित्व उसे सौंपकर निश्चित हो जाती थी। रक्षा की भावना से ओतप्रोत भाई भी उन्हें अपनी सगी बहन मानकर उनकी रक्षार्थ अपना सब कुछ लुटा देता था। 
  • एक बार राणा सांगा की पत्नी करमवती ने दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूँ  के पास राखी भेज कर उसके हृदय में भाई-बहन के प्रेम को जागृत किया। करमवती के द्वारा भेजे गए पवित्र राखी के धागों ने मुस्लिम बादशाह को मुस्लिम सम्राट से युद्ध करने पर विवश कर दिया।
  • एक बार भगवान कृष्ण के हाथ में चोट लग गई तथा खून गिरने लगा। द्रौपदी ने जब यह देखा तो अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर भगवान कृष्ण के हाथ में बांध दिया। इसी बंधन के ऋणी श्री कृष्ण ने दुशासन द्वारा चीर खींचते समय द्रौपदी की लाज बचाई थी।
धन्यवाद।

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