मृत्यु को जीतने वाला महामृत्युंजय मंत्र
जय माता दी। दोस्तों......
यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में भगवान शिव की स्तुति हेतु की गई एक वंदना है। इस मंत्र में शिव को मृत्यु को जीतने वाला बताया गया है।
lord shiva |
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
उपयुक्त मूल मंत्र में "भूः भुवः स्वः" इन तीन व्याहतियों में तथा (ॐ) "हौं जूं सः" इन तीन बीज मंत्रों में "ॐ" इस प्रणव को लगाकर महामृत्युंजय मंत्र के तीन प्रकार बताए गए हैं।
- (48)- वर्णनात्मक पहला मंत्र आठ प्रणव युक्त (महामृत्युंजय मंत्र)
- (52)- वर्णनात्मक दूसरा छः प्रणव वाला (मृतसंजीवनी महामृत्युंजय मंत्र)
- (62)- वर्णनात्मक तीसरा चौदह प्रणव वाला (महामृत्युंजय मंत्र)
प्रथम महामृत्युंजय जप मंत्र
ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। ॐ स्वः ॐ भुवः ॐ भूः ॐ।
द्वितीय मृत संजीवनी मंत्र महामृत्युंजय मंत्र
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ।
तृतीय महामृत्युंजय मंत्र के उद्धारक मंत्र
ॐ हौं ॐ जूं ॐ सः ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। ॐ स्वः ॐ भुुुवः ॐ भूः ॐ सः ॐ जूं ॐ हौं ॐ।
उपयुक्त मृत्युंजय के मंत्र में महामृत्युंजय मंत्र, मृतसंजीवनी मृत्युंजय मंत्र तथा महामृत्युंजय मंत्र इन तीनों प्रकारों में प्रायः द्वितीय मृतसंजीवनी मृत्युंजय मंत्र अधिक प्रचलित है।
सूर्यादि नवग्रहों की दशा, महादशा, अंतर्दशा तथा प्रत्यन्तर्दशा यदि किसी व्यक्ति के लिए अरिष्ट उत्पन्न करने वाली होती है, तो उन- उन अरिष्टकारक ग्रहों की शांति के लिए "मृत्युंजय" देवता की शरण में जाना ही पड़ता है। मृत्युंजय देवता की प्रार्थना में यह स्पष्ट है कि शरण में आए पीड़ित व्यक्ति को वे जन्म, मृत्यु, जरा (वृद्धावस्था) रोग एवं कर्म के बंधनों से मुक्त कर देते हैं। इस आशय भाव से निम्नांकित प्रार्थना है-
मृत्युंजय महारूद्र त्राहि मां शरणागतम्। जन्ममृत्यु जरारोगैः पीड़ितं कर्म बन्धनै।।
मृत्युंजय मंत्र का भावार्थ
हम त्रिनेत्रधारी भगवान् शंकर की पूजा करते हैं, जो मत्यधर्म (मरणशील मानव धर्म मृत्यु) से रहित दिव्य सुगन्धि से युक्त उपासकों के लिए धन-धान्य आदि पुष्टि को बढ़ाने वाले हैं। वे त्रिनेत्रधारी उर्वारूक (खरबूजा जो पकने पर वृत्त अथवा बंधन स्थान से स्वतः अलग हो जाता है) फल की तरह हम सबको अपमृत्यु या सांसारिक मृत्यु से मुक्त करें, और स्वर्ग रुप या मुक्ति रूप अमृत से हमको न छुड़ावें। अर्थात्- अमृत तत्त्व से हम उपासकों को वंचित न करें।
विशेष जानकारी के लिए अपने गुरु, कुलगुरु, तीर्थगुरु या विद्वान ब्राह्मण से पूर्ण मृत्युंजय जप विधि ज्ञात करें। विस्तार भय से इतना ही दिया गया है। मृत्युंजय के तीनों ही मंत्र जप आरंभ करने के कुछ समय बाद ही अपना प्रत्यक्ष प्रभाव दिखाने लगते हैं। कलयुग में ये मंत्र स्वयं सिद्ध होते हैं।
स्वाहा का अर्थ
स्वा- आत्मा, हा- परमात्मा
स्वाहा अग्निदेव की पत्नी का नाम भी है।
धन्यवाद ।
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