इंदिरा एकादशी 

व्रत का महत्व -

जो मनुष्य इस उत्तम व्रत को करते हैं, वे अपने असंख्य पितरों का उद्धार करके स्वयं भी स्वर्ग लोक को प्राप्त करते हैं। यह एकादशी भटकते हुए पितरों को सद्गति प्रदान करने वाली है। इसे पुरुष अधिक मात्रा में अपनाते हैं।
indira ekaadashee 2 October 2021 vrat katha
Indira Ekadasi 


व्रत को धारण करने का समय -

यह प्रभावकारी व्रत अश्विन मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है।

व्रत की विधि -

व्रत रखने वाले को चाहिए कि ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मन, वाणी तथा कर्म से पवित्र होकर व्रत करें। इस दिन व्रत रखकर शालिग्राम की पूजा करनी चाहिए। शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराकर सुन्दर वस्त्र पहनायें, भोग लगाकर आरती करनी चाहिए। पंचामृत वितरण कर ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए।इस दिन शालीग्राम पर तुलसी दल चढ़ाने से परम पुण्य की प्राप्ति होती है।  

व्रत संबंधी कथा -

अत्यन्त प्राचीन काल की बात है माहिष्मती नगरी में इन्द्रसेन नामक एक राजा राज्य करते थे। उनके माता-पिता दिवंगत हो चुके थे। एक दिन स्वप्न में उन्हें नारद जी ने कहा, "मैं यमलोक गया था, वहां तुम्हारे माता-पिता बड़े दुखी हैं। तुम उनकी गति के लिए अश्विन मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करो।" नींद खुलने पर राजा को विशेष चिन्ता हुई। दरबार में अगले दिन राजा ने मन्त्रियों से सलाह  की। मन्त्रियों ने अनेक विद्वानों को बुलाकर स्वप्न फल का विचार करते हुए बताया, "हे राजन्!  यदि आप सपरिवार इन्दिरा एकादशी का व्रत विधि विधान से करें तो आपके पितरों को मुक्ति मिल जाएगी। उस रोज आप 11 ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा प्रदान करें। शालीग्राम का पूजन कर तुलसी दल चढ़ाएं। रात्रि में शालीग्राम की प्रतिमा के पास ही शयन करें। इससे आपके माता पिता स्वर्ग लोक को प्राप्त करेंगे।" राजा ने ब्राह्मणों के परामर्शानुसार इन्दिरा एकादशी का व्रत किया। जब वह रात्रि में शालीग्राम की प्रतिमा के पास हो रहा था, तो भगवान ने उसे स्वप्न में कहा, "हे राजन् ! तुम्हारे व्रत के प्रभाव से तुम्हारे सभी पितर स्वर्ग पहुंच गए हैं।" उसी दिन से इस व्रत का महत्व बढ़ गया।
धन्यवाद 




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