श्राद्ध की आवश्यकता 

श्राद्ध से जगत् की तृप्ति –

आज श्राद्ध कर्म पर श्रद्धा कम होती जा रही है। कारण यह है कि शास्त्र से जनता का सम्पर्क कम होता जा रहा है। आज आस्तिक जनता भी प्रायः इतना ही समझ पाती है कि श्राद्ध करने वाला व्यक्ति अपने मृत माता-पिता आदि सम्बन्धियों को अन्न-जल देकर तृप्त कर रहा है । यह कम लोग जानते हैं कि वे अकेले अपने सगे-सम्बन्धियों को ही नही,  अपितु सम्पूर्ण संसार को तृप्त कर रहे हैं।

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श्राद्ध से पूजा भी हो जाती है –

व्यक्ति द्वारा किए गए इस श्राद्ध कर्म से जगत् के पूज्यों की पूजा भी हो जाती है। तीनों लोक,  तीनों अग्नि,  तीनों देव, चारों वेद , चारों आश्रम,  चारों वर्ण,  चारों पुरूषार्थ,  चारों दिशाएं ,चारों युग और वासुदेव,  संकर्षण, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध चतुर्व्यूह भी पूजित हो जाते हैं।

श्राद्ध करने वाले को लाभ-

जो श्राद्ध सम्पूर्ण जगत को तृप्त कर सकता है, वह अपने अनुष्ठाता की उपेक्षा कैसे कर सकता है। वह अनुष्ठाता की आयु को बढ़ा देता है, पुत्र प्रदान कर वंश परम्परा को अक्षुण्य रखता है, धन-धान्य का अम्बार लगा देता है, शरीर में बल पुरूष का संचार करता है, पुष्टि प्रदान करता है और यश का विस्तार करता है । जो श्राद्ध करने की सलाह देता है और जो श्राद्ध का अनुमोदन करता है, उन सभी को श्राद्ध का फल मिल जाता है।

श्राद्ध न करने से मृत प्राणी को कष्ट –

मृत व्यक्ति का अपने पुत्र आदि सगे-सम्बन्धियों से इतना गहरा लगाव होता है कि इनके दिये बिना उसे न तो अन्न मिल सकता है और न जल। जब मृत व्यक्ति इस महायात्रा में अपना स्थूल शरीर भी नहीं ले जा सकता, तो अन्न और जल कैसे ले जा सकेगा? इस समय उसके सगे-सम्बन्धी उसे जो कुछ देते हैं, वही उसे मिलता है। इसलिए शास्त्र ने मरने के बाद पिण्ड -पानी के रूप में खाने-पीनेकी व्यवस्था कर दी है । यह तो मृत व्यक्ति की इस महायात्रा में रास्ते के भोजन पानी की व्यवस्था हुई । परलोक पहुँचने पर भी उसके लिए वहाँ न अन्न होता है और न ही जल। यदि सगे-सम्बन्धी उसे न दे,  तो भूख-प्यास से उसे वहाँ बहुत ही दुखः होता है।

श्राद्ध न करने से हानि

श्राद्ध न करने वाले को पग-पग पर कष्ट का सामना करना पड़ता है । मृतप्राणी बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे-सम्बन्धियों का रक्त चूसने लगता है। साथ ही साथ वह श्राप भी देता है । फिर इस अभिशप्त परिवार को जीवन भर कष्ट झेलना पड़ता है । उस परिवार में पुत्र उत्पन्न नहीं होता , कोई निरोग नहीं रहता, लम्बी आयु नहीं होती, किसी भी तरह का कोई कल्याण नही होता और मृत्यु के बाद नरक जाना पड़ता है । श्राद्ध न करने वाले अकर्मण्यता से सारा का सारा संसार ही तृप्ति के सुख से वंचित हो जाता है ।

पितरों को श्रद्धान्त मिलता कैसे है-

व्यक्ति के कर्म भिन्न-भिन्न होते हैं और तदनुसार मरने के बाद गतियां भी भिन्न-भिन्न होती हैं। विश्वनियन्ता ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है, जिसके अनुसार श्राद्ध की सामग्री उनके अनुरूप होकर उनके पास पहुंच जाती है । गोत्र और नाम के उच्चारण के साथ जो अन्न-जल साम्रग्री पितरों को दी जाती है, उसकी अनुरूप समुचित व्यवस्था की गई है । यदि पितर देवता बन गए हैं, तो श्राद्ध का अन्न उन्हें अमृत के रूप में परिणत होकर मिलता है और यदि पशु बन गए हैं तो तृण के रूप में मिलेगा ।

वार्षिक श्राद्ध विधि -

सामान्यतया कम से कम वर्ष में दो बार श्राद्ध करना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त अमावस्या, व्यतीपात, संक्रांति आदि पर्व की तिथियों में भी श्राद्ध कर सकते हैं।

क्षयाह तिथि -

जिस दिन व्यक्ति की मृत्यु होती है, उस तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए । इस दिन केवल मृत व्यक्ति के निमित्त एक पिण्ड का दान तथा कम से कम एक ब्राह्मण को और अधिक से अधिक तीन ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए ।

पितृपक्ष -

पितृपक्ष में मृत व्यक्ति की जो तिथि आए, उस तिथि पर मुख्य रूप से पार्वण श्राद्ध करने का विधान है। पार्वण श्राद्ध में नौ ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। यदि कम कराना हो तो तीन ब्राह्मणों को ही भोजन कराया जा सकता है। यदि यह भी सम्भव न हो तो एक सात्विक ब्राह्मण को भोजन अवश्य कराना चाहिए।

ब्राह्मण भोजन से श्राद्ध की सम्पन्नता -

किसी कारणवश यदि दोनों श्राद्ध में से कोई न कर सके तो कम से कम संकल्प करके केवल ब्राह्मण को भोजन करा देने से श्राद्ध सम्पन्न हो जाता है।

यदि कोई सुपात्र ब्राह्मण प्राप्त न हो तो दो ग्रास निकालकर गौ को इस निमित्त खिला देना चाहिए।

धन्यवाद ।

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