मोती रत्न 

जय माता दी। दोस्तों ......

मोती को संस्कृत में मुक्ता, चन्द्ररत्न, मोत्तिक,  शुक्ति, हिंदी में मोती, उर्दू में मुरवारीद, अंग्रेजी में पर्ल कहते हैं।
मोती चन्द्रमा का रत्न है। चन्द्रग्रह का घोतक रत्न मुक्ता समुद्र के अंदर तलहटी में सीप के अन्दर निर्मित जलीय रत्न है। मोती का जन्म समुद्र में पैदा हुए एक कीट ( घोंघा ) के अंदर होता है। मोती जल के कीड़े के अन्दर पैदा होने के कारण जलीय रत्न है। घोंघा मुसेल जाति का जल में उत्पन्न होने वाला जीव है। इसमें मोटे धागों के समान कुछ अंग होते हैं जिनके द्वारा यह चट्टानों या अन्य जलीय स्थानों में अपने आप को चिपका सकता है।
घोंघा दो मांस के आवरणों के अंदर होता है। इन आवरणों से एक लसलसा पदार्थ निकलता है। यह पदार्थ जमकर धीरे-धीरे सीप का रूप धारण कर लेता है। यह सीपियां एक ही आकृति की दो भागों में होती हैं और एक ओर से जुड़ी होती है। घोंघा इसी के बीच में अपने को सुरक्षित मानकर रहता है। सीपी जहां से खुली होती है, उसी तरफ से आवश्यकतानुसार मुंह खोलकर अपना भोजन प्राप्त करता है।

moti ratn
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प्राचीन मत के अनुसार स्वाति नक्षत्र के उदय रहते हुए वर्षा की बूंद जब सीप के अन्दर खुले मुख में समाती है तब यह मोती बन जाती है। केले के अन्दर पड़ने से कपूर, सर्प के मुँह में पड़ने से मोती बन जाता है | बांस में पड़ने से बंसलोचन बन जाता है |  

मोती का रंग -

  • नीला, सफेद, गुलाबी, मैला, काला, हरियाली लिऐ चमकदार, तांबे के समान रंग वाला मोती समुद्र की खाड़ी,  पहाड़ी स्रोत एवं पर्वतीय तालाबों में भी मिल जाता है।

प्राकृतिक मोती में निम्न प्रकार के मोती पाए जाते हैं -

  • मोती के ऊपर फटापन होना, बारीक होना, मस्से के समान उभार, चेचक के जैसे दाग होना, धब्बा, अन्दर मिट्टी का होना, श्यामवर्ण मोती भी होता है।

मोती कीअसली नकली की परीक्षा- 

  • चावल में डालकर रगड़ने से असली की चमक समाप्त नहीं होती और नकली की चमक समाप्त हो जाती है। असली मोती की ऊपरी सतह नकली मोती से कोमल होती है।
  • मोती को रूई में लपेटकर नहीं रखना चाहिए। रुई की गर्मी से मोती में धारियां (लहर) पड़ जाती हैं। नमी वाली जगह में भी रखने से मोती खराब हो जाता है।

आयुर्वेद में मोती -

  • कैल्शियम की कमी के कारण उत्पन्न होने वाले रोगों में यह बहुत लाभकारी होता है। केवड़े या गुलाब के साथ खरल में घोटकर पिस्टी बनाई जाती है। मुक्ता की अग्नि से भस्म बनाई जाती है। मुक्ता-शीतल, मधुर, शान्तिवर्धक, नेत्र ज्योतिवर्धक, अग्निदीपक, वीर्यवर्धक, विषनाशक है। कफ, पित्त, श्वास आदि रोगों में अति लाभकारी होता है। हृदय को शक्ति देता है। इसका प्रयोग विभिन्न रोगों में विभिन्न अनुमानों के साथ किया जाता है।

ज्योतिष में मोती -

  • ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार जिन लोगों को क्रोध जल्दी आता है, उन्हें मोती धारण करने से लाभ मिलता है। यह मानसिक शान्ति प्रदान करने के साथ ही एकाग्रता बढ़ाने में भी कामयाब होता है। संतानहीनता व्यक्तियों को मोती धारण करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार यह मान-प्रतिष्ठा एवं धन व वैभव दायक होता है। मोती रोग शमन करने की क्षमता रखता है। बुखार में मोती धारण करना लाभप्रद रहता है। यह हृदय गति को सामान्य बनाए रखता है। आत्रशोध, अल्सर एवं पेट सम्बन्धी कई अन्य बीमारियों में काफी असरकारी होता है। मोती के संदर्भ में ऐसी मान्यता भी है कि जो व्यक्ति शुद्ध मोती धारण करते हैं, उन पर देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है, अर्थात व्यक्ति धनवान होता है। पति-पत्नी के बीच दूरी बढ़ रही हो तो मोती धारण करने से सम्बन्ध में सुधार होता है। मोती अलग-अलग रंगों में पाया जाता है और उन सबकी अपनी विशेषता होती है। पीली आभा युक्त मोती धारण करने से धन लाभ होता है। लाल रंग का मोती बौद्धिक क्षमता को बढ़ाता है। सफेद मोती प्रसिद्धि दायक होता है और नीली आभा युक्त मोती ईश्वरीय कृपा प्रदान करने वाला होता है।

धारण विधि -

  • बहुत से व्यक्ति दो मोतियों की माला ही धारण करते हैं जो कि काफी वजनदार और मूल्यवान होती है। मोती कम से कम आठ रत्ती का पहनना चाहिए। इससे अधिक हो तो और भी अच्छा है। मोती को चांदी, पंचधातु की अंगूठी में जड़वा लेना चाहिए। सोमवार के दिन सांयकाल स्वच्छ जल का लोटा लें, उसमें थोड़ा कच्चा दूध डालें, उस लोटे में अंगूठी को छोड़ दें। जल को भगवान शिव की पिण्डी पर चढ़ा दें। अपनी मनोकामना प्रकट करते हुए अंगूठी को भगवान शिव से स्पर्श करके कनकी अंगुली या उसके साथ वाली अंगुली में पहन लेना चाहिए। इसको धारण करने के बाद किसी प्रकार का परहेज नहीं है। कल्पनाशील, भावुक व्यक्तियों के लिए मोती अधिक गुणकारी है।
धन्यवाद।

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