ज्योतिषशास्त्र और अंगविद्या
मानव अंगों के शुभ-अशुभ लक्षण
प्राचीनकाल में समुद्र नामक ऋषि ने मानव-अंगों के शुभ-अशुभ तत्व की विवेचना की एवं अंगविद्या का प्रणयन किया। यह अंगविद्या ज्योतिष में सामुद्रिक शास्त्र के नाम से जानी गयी। इसमें मनुष्य के अंगों को देखकर उनके भविष्य जानने की विधि बतायी गयी है। जो इस प्रकार है-
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स्त्री-अंगों के शुभ-अशुभ लक्षण
पैरों के तलवे-
स्त्रियों के पैरों के तलवे लालिमायुक्त, चिकने, कोमल, मांसल, समतल, उष्ण एवं पसीने से रहित होने पर श्रेष्ठ होते हैं। सूप के आकार के रुक्ष एवं बेडौल तलवे दुर्भाग्यसूचक होते हैं।तलवों में स्वास्तिक, चक्र एवं शंखादि का चिह्न राजयोगकारक होते हैं। चूहे एवं सर्प के समान रेखायें दरिद्रता की सूचक होती हैं।
पैरों के अँगूठे -
स्त्रियों के पैरों के अँगूठे यदि ऊँचे, मांसल एवं गोल हों तो शुभ होते हैं। छोटे, टेढ़े एवं चिपटे हों तो अशुभ होते हैं।
पैरों की अंगुलियाँ -
स्त्रियों के पैरों की अंगुलियाँ कोमल, आपस में सटी हुई, गोल और ऊँची हों तो उत्तम होती हैं। अत्यन्त लम्बी अंगुलियों वाली स्त्री कुलटा होती हैं। कृश अंगुलियों वाली स्त्री निर्धन तथा छोटी अंगुलियों वाली स्त्री अल्पायु होती है।
पैरों के नाखून-
स्त्रियों के पैरों के नाखून गोलाकार, उन्नत, चिकने एवं ताँबे के समान लाल पैर शुभ होते हैं।
भुजाएँ -
जिन स्त्रियों की हड्डियों का जोड़ दिखायी न दे, ऐसी कोमल तथा नाड़ियों और रोमों से रहित स्त्रियों की सीधी भुजाएँ बहुत अच्छी होती हैं। मोटे, रोमों से युक्त भुजा वाली स्त्री विधवा होती हैं। छोटी भुजाओं वाली स्त्री दुर्भाग्यहीन होती हैं।
हाथ की अंगुलियाँ-
स्त्रियों की सुन्दर पववाली, बड़े पोरों से युक्त, गोल हथेली से नख की तरफ क्रमशः पतली अंगुलियाँ शुभ होती हैं। अत्यन्त छोटी, पतली, टेढ़ी, छिद्रयुक्त, अत्यंत मोटी एवं अगले भाग में रोमों से युक्त अंगुलियाँ अशुभ होती हैं।
मुख-
जिस स्त्री का मुख गोल, सुन्दर, समान, मांसल, स्निग्ध, सुगन्धयुक्त एवं पिता के मुख के समान होता है। वह स्त्री बहुत शुभ लक्षणों वाली होती है।
नेत्र-
स्त्री के लाल कोनों वाले एवं काली पुतलियों वाले नेत्र बहुत अच्छे कहें गये हैं। पुतलियों के अतिरिक्त नेत्र के शेष भाग गोदुग्ध के समान सफेद विशाल एवं सुन्दर हों तथा काली बरौनियों से युक्त हों तो ऐसी स्त्रियाँ मंगलकारी होती हैं।
भौंहें-
स्त्रियों की काली, स्निग्ध, आपस में न सटी हुईं, कोमल रोमों से युक्त, धनुष के समान झुकी हुई भौंहें श्रेष्ठ होती हैं।
केश-
भ्रमर के समान काले, पतले, चिकने, कोमल एवं कुण्डल के समान अग्रभाग वाले सिर के बाल उत्तम कहे गये हैं।
सीमन्त-सिन्दूर लगाने का स्थान-
सीधा एवं उन्नत सीमन्त श्रेष्ठ होता है। हाथी के मस्तक के समान उन्नत मस्तक सौभाग्य एवं ऐश्वर्यसूचक होता है।
पुरूषों के अंगों के शुभ-अशुभ लक्षण
लम्बाई-
अपने हाथ की अँगुलियों की नाप से 108 अंगुल लम्बा पुरूष गुणों एवं ऐश्वर्या आदि मे उत्तम होता है। 96 अंगुल लम्बा मध्यम तथा 84 अंगुल लम्बा पुरूष हीन होता है।
स्वर-
हाथी, बैल, रथसमूह, मृदंग, सिंह एवं मेघों के समान गम्भीर स्वर वाले पुरुष श्रेष्ठ होते हैं। गदहे के समान स्वर वाले क्षीण, रुक्ष या कठोर स्वरवाले पुरूष धन वे सुख से वंचित रहते हैं।
पैर-
ऐसे पुरूष जिनके पैर रूधिर के समान लाल एवं सुकोमल तलुओं वाले, चिकने, मांसल, उष्ण, पसीने तथा शिराओं से रहित हों एवं जिनके पैरों के ऊपरी भाग कछुए की पीठ जैसा ऊँचा होता है तथा अंगुलियाँ आपस में मिली हुई हों, तो वे राजा या बड़े अधिकारी होते हैं। सूपके समान चौड़े अग्रभागवाले, अत्यंत छोटे, रूखे, भूरे नाखूनों वाले, टेढ़े व नाड़ी युक्त पैर दरिद्रता सूचक होते हैं।
जंघा एवं जानु-
हाथी की सूँड़ के समान आकार वाले एवं दूर-दूर और छोटे रोमों युक्त जंघा वाले पुरूष श्रेष्ठ होते हैं। दोनों जांघो पर मांस समान हों तो राजयोगकारक होते हैं। कुत्ते एवं सियार के समान पतली एवं लम्बी जंघाओं वाले पुरुष धन-धान्य से रहित होते हैं।
ह्रदय-
ऊँचा, मोटा, कम्पनरहित एवं मांसल ह्रदय राजाओं (श्रेष्ठ पुरुषों) का होता है। मांसरहित, रूक्ष, शुष्क, रोमयुक्त एवं उभरी हुई नाड़ियों से युक्त ह्रदय वाला व्यक्ति निर्धन होते हैं।
वक्ष-
समान वक्षःस्थल धनी व्यक्ति के , स्थूल एवं पुष्ट वक्षःस्थल शूरवीर के तथा छोटे वक्षःस्थल धनहीन के होता है। विषम वक्षःस्थल निर्धन के होते हैं एवं वे शस्त्र से मारे जाते हैं।
कन्धा-
समान भुजाओं से युक्त, मांसल एवं पुष्प कन्धे सुखी एवं पराक्रमी पुरूषों के होते हैं । छोटे, मांसरहित एवं रोमयुक्त कन्धे निर्धनों के होते हैं।
भुजा-
हाथी की सूँड़ के समान पुष्ट, मोटी एवं गोल भुजाएँ जो आपस में समान हों एवं जानुओं को छू लेने वाली लम्बी हों तो वे राजतुल्य सुख भोगता है। रोमयुक्त एवं छोटी भुजाएं निर्धनों की होती हैं।
मुख -
शान्त, सम, सौम्य, गोल, निर्मल एवं सुन्दर मुखवाले पुरूष राजा होते हैं । इसके विपरीत मुखवाले पुरूष दुःखी होते हैं।स्त्रियों के समान मुखवाले पुरूष सन्तानरहित, गोल मुखवाले पुरूष शठ, लम्बे मुख वाले पुरूष निर्धन तथा भयभीत मुख वाले पुरूष पापी होते हैं ।
कर्ण –
बड़े कानों वाले धनी, छोटे कान वाले कृपण, शंकु के समान कान वाले सेनानायक, रोमों से युक्त कान वाले दीर्घायु,लम्बे एवं मांसल कान वाले सुखी एवं भोगी होते हैं।
नाक -
सीधी एवं छोटे छिद्रों वाली तथा सुन्दर नासापुटों वाली नाक सुन्दर भाग्यशाली पुरूषों की होती है । तोते के समान नाक वाला पुरूष सुखों को भोगने वाला होता है। लम्बी नाक वाला पुरुष भाग्यशाली तथा शुष्क नाक वाला पुरुष दीर्घायु होता है। आंकुचित नाक वाला पुरुष चोर, नाककटा पुरुष अगम्या गमन करने वाला, चपटी नाक वाला पुरुष स्त्रीघाती होता है अर्थात उसकी स्त्री मर जाती है।
ललाट –
ऊँचे एवं विस्तीर्ण ललाट वाले पुरुष धनी, आधे चन्द्रमा के समान ललाट वाले पुरुष धनवान एवं राजा, सीपी के समान ललाट वाले पुरुष आचार्य नीची ललाट वाले पुरुष पुत्र एवं धन से हीन, शिरायुक्त ललाट वाले पुरुष अधर्मी तथा गोल माथे वाले पुरुष अत्यंत कृपण होते हैं।
केश-
जिस पुरुष के सिर में एक रोमकूप में एक ही बाल हो, बाल स्निग्ध और कोमल हों, बालों के अग्रभाग काले हों तथा वह घुंघराले हों,बालों के अग्रभाग फटे हुए न हों और बाल अधिक घने न हों तो वह पुरुष सुखी एवं राजा होता है। इसके विपरीत लक्षणों वाले पुरुष दुखी होते हैं।
धन्यवाद ।
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