श्री कृष्ण जन्माष्टमी

जय माता दी
दोस्तों.....

शुभ मुहूर्त

इस बार 11 अगस्त को जन्माष्टमी तिथि सुबह लग जाएगी, जो 12 अगस्त को सुबह 11 बजे रहेगी, वहीं रोहिणी नक्षत्र 13 अगस्त को लग रहा है। 11 अगस्त को पूजा औऱ व्रत करें या फिर 12 को। जब उदया तिथि हो यानी जिस तिथि में सूर्योदय हो रहा हो, उस तिथि को ही जन्माष्टमी मनाई जाती है। इसलिए इस बार जन्माष्टमी का दान 11 अगस्त को और 12 अगस्त को पूजा और व्रत रखा जा सकता है।
12 अगस्त को पूजा का शुभ समय रात 12 बजकर 5 मिनट से लेकर 12 बजकर 47 मिनट तक है। पूजा की अवधि 43 मिनट तक रहेगी। जन्माष्टमी पर इस बार वृद्धि संयोग बन रहा है, जो अति उत्तम हैं।

Shri Krishna Janamashtmi evam shobha muhurat 11-12 August 2020
Shri Krishna Janamashtmi


ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण सोलह  कलाओं के अवतार थे। वह पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर थे। भगवान श्री कृष्ण ने भादो कृष्ण पक्ष की अष्टमी को ही अवतार लिया था। अवतारवाद के सिद्धान्त को तो सभी धर्मशास्त्र मान्यता प्रदान करते हैं।
पृथ्वी पर जब-जब धर्म की हानि होती है, पाप बढते हैं, दुराचार की वृद्धि होती है तो भगवान स्वंय  अवतार लेते हैं। भगवान श्री कृष्ण ने भी अपने मामा पापी कंस के साथ-साथ पृथ्वी पर बढ़ते पाप के मार्ग पर चलने वाले असुरों  के संहार के लिए अवतार लिया था।
भगवान श्री कृष्ण ने जिस समय अवतार लिया था, उस समय कंस के  राज्य में जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। श्री कृष्ण को मरवाने के लिए कंस ने अनेक उपाय किए, लेकिन वह सफल न हो सका।
भगवान श्री कृष्ण का सम्पूर्ण जीवन  लोकोपकार में व्यतीत हुआ। ऐसे श्री कृष्ण का हर वर्ष स्मरण करना हमारी आत्मा को पवित्र करता है कृष्ण  जैसे लोकनायक की मनोहारिणी लीलायं जन-जन के मन में बस गई हैं। सगुणोपासक श्रद्धालु उनका स्मरण कर आनन्दित हो उठते हैं।
भगवान श्री कृष्ण ने कभी भी अनीति व अधर्म का साथ नहीं दिया। सदैव सज्जनों की रक्षा हेतु कटिबद्ध रहे। शकटासुर, अधासुर, बकासुर, चाकूर, कंस आदि का वध उनकी लीलाओं के अन्तर्गत ही आता है।

पर्व को मनाने का समय-

यह पावन पर्व भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। छठें रोज भगवान श्री कृष्ण की छठी मनाई जाती है।

पर्व को मनाने की विधि-

इस तिथि को रोहिणी नक्षत्र का विशेष महत्व है। इस दिन देश भर के मन्दिरों को सजाया जाता है। देव प्रतिमाओं का श्रृंगार किया जाता है। नर-नारी व बच्चे अर्द्ध रात्रि तक व्रत रखते हैं। रात को 12:00 बजे चन्द्रदेव के दर्शन होने पर शंख व घंटो की ध्वनि से भगवान श्रीकृष्ण के अवतार की सूचना चारों दिशाओं में गूंजने लगती है। मन्दिरों में आरती के पश्चात भक्तों में प्रशाद वितरित होता है।
मन्दिरों में श्री कृष्ण लीला से सम्बन्धित झांकियाँ प्रस्तुत की जाती है। रात भर कतन्दरों में गाने बजाने व हरि कीर्तन की आवाजें गूंजती रहती हैं। अगले रोज प्रातः ही इस उपलक्ष में नन्द महोत्सव मनाया जाता है। भगवान के ऊपर कपूर, हल्दी, घी, दही, केसर आदि छिड़ककर आनन्द  से उन्हें पालने में झुलाया जाता है। धर्मशास्त्रों में पलंग पर देवकी सहित भगवान श्री कृष्ण के पूजन का विधान बताया जाता है।
जन्माष्टमी का व्रत स्त्री-पुरुष किशोर कोई भी कर सकता है। जहाँ तक सम्भव हो सके, यह व्रत निर्जला ही रखा जाना चाहिए। सत्य एवं मधुर भाषा का प्रयोग करें। दोपहर के पश्चात पुनः स्नान करके फलों का भोग भगवान को लगाकर फल ग्रहण किया जा सकता है। धूप दीप से भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करनी चाहिए। अर्द्ध रात्रि के पश्चात ही श्री कृष्ण का जन्म माना गया है। धूप-दीप, फल-पुष्प चढ़ाने के बाद मक्खन व दही का भोग एवं चरणामृत तैयार करना चाहिए। कुुट्टू या सिंघाड़े को भूनकर सूखा मेेवा मिलाकर पंजीरी बनानी चाहिए। सम्भव हो सके तो फलों का भी प्रशाद बनाना चाहिए। ईश्वर का प्रशाद ग्रहण करके ही व्रत खोलना चाहिए।

व्रत से सम्बन्धित कथा-

द्वापर युग में जब पृथ्वी पाप तथा अत्याचारों के भार से दबने लगी, तो पृथ्वी गाय का रूप धारण करके सृष्टि कर्ता विधाता के पास गई। बह्मा जी ने सभी देवों के सम्मुख पृथ्वी की दु:खद कथा सुनाई। सभी देवों ने इसका उपाय जानने के लिए विष्णु भगवान के पास जाने का आग्रह किया। इसके पश्चात सभी लोग पृथ्वी को साथ लेकर क्षीर सागर जा पहुंचे जहाँ विष्णु भगवान अनन्त शैया पर शयन कर रहे थे।
स्तुति करने पर विष्णु भगवान की निद्रा भंग हुई तथा सबसे आने का कारण पूछा। इस पर विनम्रता पूर्वक पृथ्वी ने कहा, "भगवान ! मेरे ऊपर बड़े-बड़े अत्याचार हो रहे हैं। कृपया करके शीघ्र ही इनका निवारण कीजिए।"
यह सुनकर विष्णु भगवान बोले, "मैं  ब्रजमण्डल में वासुदेव गोप की भार्या  कंस की बहन देवकी के गर्भ से  जन्म लूंगा। आप लोग ब्रजभूमि में पहुंचकर यादव कुल में अपना शरीर धारण करो। इतना कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए। वही देवता एवं पृथ्वी ब्रज में आकर यदुकुल में नन्द यशोदा और गोपियों के रूप में पैदा हुए।
कुछ दिन व्यतीत हुए वासुदेव नवविवाहित देवकी और अपने साले कंस के साथ गोकुल जा रहे थे। ठीक तभी आकाशवाणी हुई, "हे कंस ! अपनी जिस बहन को तू इतने प्यार से ले जा रहा है, उसी के गर्भ का आठवां पुत्र तेरा काल होगा।" कंस यह बात सुनते ही तलवार निकालकर देवकी को मारने के लिए दौड़ा।
इस पर वासुदेव ने हाथ जोड़कर कहा, "राजन ! यह बेचारी तो निर्दोष है, फिर इसके खून से क्यों अपने हाथ रंगना चाहते हो, इसे आपका मारना ठीक नहीं है। पैदा होते ही मैं आपको इसकी प्रत्येक सन्तान दे दिया करूंगा, फिर आपको भला कौन मार सकता है?"
कंस अपने बहनोई की बात मान गया तथा उन्हें अपने कारागार में डाल दिया। वसुदेव अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार सात बालक कंस को देते चले गए तथा पापी कंस उन्हें मारता चला गया। जब कंस को देवकी के आठवें गर्भ की बात ज्ञात हुई, तो उन्हें विशेष कारागार में डालकर सख्त पहरा लगा दिया। भादों की भयावनी रात के समय जब शंख, चक्र, गदा और पद्मधारी भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ तो चारों और दिव्य प्रकाश फैल गया।
वसुदेव व देवकी लीलाधारी भगवान की यह लीला देखकर उनके चरण कमलों में गिर पड़े। भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप में होकर स्वयं को गोकुल में नन्द के घर पहुँचाने और वहाँ से कन्या लाकर कंस को सौंपने का आदेश दिया। जब वसुदेव कृष्ण को गोकुल ले जाने को तैयार हुए, तभी उनके हाथों की हथकड़ियाँ तड़तड़ करके टूट गई। जेल के द्वार अपने आप खुल गए। पहरेदार गहरी नींद में सो गए।
वसुदेव ने जब नवजात शिशु श्रीकृष्ण को सूप में रखकर यमुना में प्रवेश किया, तो यमुना का जलस्तर बढ़ने लगा। यहाँ तक कि वसुदेव के गले तक आ गया। भगवान श्री कृष्ण के चरण कमल छूने को लालायित यमुना श्री कृष्ण द्वारा पैर लटका दिए जाने पर बिल्कुल घट गई।
वसुदेव यमुना पार करके गोकुल जा पहुँचे। वहाँ खुले दरवाजे तक सोई हुई यशोदा को पाकर वसुदेव ने बालक कृष्ण को वहीं सुला दिया तथा सोई हुई उनकी कन्या को लेकर चले आए। जब वसुदेव कन्या को लेकर आ गए तो जेल के द्वार फिर से बन्द हो गए।
वसुदेव एवं देवकी के हाथों में हथकड़ियाँ पड़ गई तथा कन्या जोर-जोर से रोने लगी। जगे हुए प्रहरियों ने कन्या का रूदन सुनकर फौरन कंस को खबर पहुंचाई। यह सुनते ही कंस ने आकर कन्या को अपनी बहन की गोद से छीन लिया। जैसे ही इस कन्या के पैर पकड़कर पत्थर पर पटकना चाहा, वह कंस  के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई तथा अंतरिक्ष में पहुंचते ही साक्षात् देवी के रूप में प्रकट होकर कहने लगी, "हे कंस ! तुझे मारने वाला तो गोकुल में बहुत पहले ही पहुंच चुका है। यही भगवान श्रीकृष्ण  बड़े होकर पूतना एवं क्रूर कंस जैसे दैत्यों का वध करके पृथ्वी एवं भक्तों की रक्षा करेंगे।"
यह सुनकर कंस सन्नाटे में खड़ा रह गया। पहली बार उसके चेहरे पर भय की परछाइयां दिखाई पड़ी थीं। इसके पश्चात कंस वेकसुर, पूतना आदि मायावी राक्षसों की मदद से उस दिन जन्में सभी बच्चों को मार डालने का उपाय करने लगा। भगवान श्री कृष्ण ने अपनी आसुरी माया का विस्तार करके सारे दैत्यों का बारी-बारी से संहार कर दिया। उन्होंने अनेक अलौकिक लीलाएं दिखा-दिखाकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया। बड़े होने पर कंस को मारने के लिए श्रीकृष्ण उसके दरबार में पहुंचे। कंस के अत्याचार व अनाचार के विरुद्ध आवाज उठाई तथा भरे दरबार में कंस के केश पकड़कर उसका वध कर डाला था। कंस के पिता राजा उग्रसेन को फिर से राजगद्दी पर बैठा दिया जिनसे की कंस ने पहले राज्य छीन लिया था। इसी उपलक्ष्य में जन्माष्टमी का पर्व सम्पूर्ण भारत में विशेष हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
एक किंवदन्ती के अनुसार इस रात को सम्पूर्ण जागरण करने वाला किसी भी जन्म में निपुत्री नहीं होता है।

आरती श्री कृष्ण जी की

आरती श्री कृष्ण कन्हैया की।।
 मथुरा कारागृह अवतारी,
 गोकुल जसुदा गोद बिहारी।
 नन्दलाल नटवर गिरधारी,
 वासुदेव हलदर भैया की।। आरती श्री.....
 मोर मुकुट पीताम्बर साझे,
कटि कानि, कर मुरली बिराजे।
पूर्ण शरद राशि मुख लखि लाजै,
काम कोटि छवि जितवैया की।। आरती श्री ....
गोपी जन रस-रात-विलासी,
कौरव कालिय कंस विनासी।
हिमकर भानु कृशानु प्रकासी,
पूर्वभूत हिय बसवैया की।। आरती श्री .....
कहु रन चढ़े, भागि कहु जावे,
कहु नृप कर, कहु गाय चरावै।
कहु जोगेस, वेद जस गावै,
जग नचाय ब्रज नचवैया की।। आरती श्री .....
अगुन सगुण लीला वपुधारी,
अनुपम गीता ज्ञान प्रचारी।
दामोदर सब विधि बलिहारी,
विप्र सुर रखनैया की।। आरती श्री ...

धन्यवाद 

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