योगिनी एकादशी
जय माता दी। दोस्तों......
यह उत्तम व्रत योगिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसके करने से जन्म-जन्मांतर के सभी पाप व दोष नष्ट हो जाते हैं। यह एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। इस कल्याणकारी व्रत को करने से पीपल वृक्ष को काटने का पाप समूल नष्ट हो जाता है। मनुष्य इस लोक में सभी प्रकार के सुखों को भोग कर अंत में स्वर्ग लोक को प्राप्त करता है।
व्रत को करने का समय - vrat ko karane ka samay
यह प्रभावशाली व्रत आषाढ़ मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है।
व्रत को करने की विधि - vrat ko karane kee vidhi
इस रोज व्रत रखकर भगवान नारायण की प्रतिमा को स्नान कराकर भोग लगाना चाहिए। धूप -दीप ,फल -फूल आदि से प्रभु की आरती उतारनी चाहिए। इस दिन निर्धन ब्राह्मणों को दान देना सर्वोत्तम माना गया है। यथासंभव वस्त्र आदि का दान भी किया जा सकता है।
व्रत सम्बन्धी कथा - vrat sambandhee katha
एक समय की बात है कि भगवान श्रीकृष्ण से धर्मराज युधिष्ठिर ने पूछा, "प्रभु ! कृपा करके मुझे योगिनी एकादशी की व्रत कथा सुनाइए। इसका क्या महत्व है जानने को मेरे मन में प्रबल उत्कण्ठा है।"
युधिष्ठिर की जिज्ञासा को जानकर श्री कृष्ण भगवान बोले, "हे! राजन , आषाढ़ माह की कृष्ण एकादशी का नाम ही योगिनी एकादशी है। इस उत्तम व्रत को करने से ही सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। मैं तुम्हें पुराणों में वर्णित कथा सुनाता हूं। मन लगाकर सुनिए।"
अत्यंत प्राचीन काल की बात है अलकापुरी में धन कुबेर के यहां एक हेम नामक माली रहा करता था। वह नित्य प्रति भगवान शिव के पूजन हेतु मानसरोवर से पुष्प लाया करता था। उसकी विशालाक्षी नामक एक अत्यन्त सुन्दर पत्नी थी। एक दिन वह कामोन्मत हो अपनी स्त्री के साथ स्वच्छ विहार करने के कारण पुष्प लाने में आलस्य कर बैठा।
जब वह दोपहर तक कुबेर के दरबार में उपस्थित न हुआ तो उन्होंने अत्यन्त कुपित होते हुए अपने सेवकों को हेम माली का पता लगाने का हुक्म दिया। सेवकों ने फौरन कुबेर की आज्ञा का पालन किया व पता करके बताया कि वह माली अभी तक अपनी विशालाक्षी नामक पत्नी के साथ भोग विलास में आसक्त है।
सेवकों से ऐसा उत्तर पाकर कुबेर ने हेम माली को बुलाने का उपदेश दिया। कुबेर के सामने हेम माली भय से काँपता हुआ हाजिर हुआ। उसे देखते ही कुबेर के क्रोध का ठिकाना न रहा। वे उसे श्राप देते हुए बोले, "हे दुष्ट! तूने देवाधिदेव परम पूज्य शंकर भगवान का अपमान किया है। मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तू पत्नी वियोग सहेगा और मृत्यु लोक में जाकर कोढ़ी होगा।
हेममाली तत्काल ही कुबेर जी के श्राप से कोढ़ी हो गया। वह भटकता हुआ एक रोज मार्कंडेय ऋषि के आश्रम में जा पहुँचा। हेममाली को अत्यन्त दुखी देखकर मार्कंडेय ऋषि बोले, "हेममाली ! तुम्हारी यह दशा कैसे हो गई। मैंने अभी अपने तपोबल से पता लगाया है कि तुम्हारी काया तो बेहद खूबसूरत थी।"
हेम माली ने विनम्रता पूर्वक हाथ जोड़कर कहा, हे मुनिराज ! मैं यक्षराज कुबेर का निजी सेवक था। मेरा नाम हेममाली है। मैं नित्य प्रति राजा की शिव पूजा हेतु कुछ पुष्प लाया करता था। एक रोज मुझे अपनी पत्नी रमणी के साथ रमण करते-करते काफी देर हो गई तथा मैं दोपहर तक आलस्य के कारण पुष्प लेकर न जा सका।"
उन्होंने कुपित होकर मुझे विलम्ब से पहुँचने पर श्राप दिया कि तू अपनी पत्नी का वियोग भोगेगा तथा मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा। उनका श्राप मिलते ही मैं कोढ़ी हो गया और तभी से इस पीड़ा को भोग रहा हूं। आप मुझ दीन-हीन पर कृपा करके कोई ऐसा सरल उपाय बताइए ताकि मेरी मुक्ति हो सके।
हेमामाली के मुख से ऐसे वचनों को सुनकर मार्कंडेय ऋषि ने कहा, "मैं तुम्हारे सत्य भाषण से अत्यन्त प्रसन्न हूँ। तुम्हारे उद्धार हेतु मैं एक उत्तम एवं सरल उपाय बताता हूं अगर तुम आषाढ़ माह के कृष्णपक्ष की योगिनी एकादशी का व्रत विधि विधान से करोगे तो तुम्हारे जन्म-जन्मांतर के सभी पाप शीघ्र अतिशीघ्र विनष्ट हो जाएंगे। तुम्हारे शरीर से यह कोढ़ का रोग समाप्त हो जाएगा तथा पूर्ववत कांतिमय शरीर वाले हो जाओगे।"
मार्कंडेय मुनि से व्रत की विधि सुनकर हेममाली ने योगिनी एकादशी का विधि-विधान पूर्वक व्रत किया। इस उत्तम व्रत के प्रभाव से वह अगले रोज ही कांति युक्त व ओजस्वी हो गया।
आरती - aaratee
भज मन नारायण नारायण नारायण।
श्रीमन नारायण नारायण नारायण।।
आदित्य नारायण नारायण नारायण।
भास्कर नारायण नारायण नारायण।।
सत्य नारायण नारायण नारायण।
श्री हरि नारायण नारायण नारायण।।
धन्यवाद ।