प्रबोधिनी (अजा) एकादशी-prabodhinee (aja) ekaadashee 3 September 2021 vrat, katha

इस महा प्रभावशाली व्रत को 'जया', 'अजा' तथा 'कामिका' एकादशी भी कहते हैं। यह व्रत बहुत प्रसिद्ध है। इस उत्तम व्रत को धारण करने से मनुष्य सभी दु:खों से मुक्ति प्राप्त करता है। उसके जन्म जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत को धारण करने वाला इस लोक में प्रत्येक प्रकार के सुखों को भोगकर अन्त में बैकुण्ठ को चला जाता है।
प्रबोधिनी (अजा) एकादशी 3 सितंबर 2021 व्रत कथा
Prabodhini (Aja) Ekadasi

व्रत करने का समय -

यह व्रत भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी में रखा जाता है।

व्रत को करने की विधि-

इस दिन व्रत रखने वाले को चाहिए कि वह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इस दिन विष्णु भगवान की पूजा का विधान है। इस व्रत के दिन अल्पाहार ही रहना चाहिए। व्रत की रात्रि में जागरण करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। विष्णु भगवान की प्रतिमा को पंचामृत में स्नान कराकर भोग लगाना चाहिए। आचमन के बाद धूप दीप, रोली, चन्दन आदि सुगन्धित पदार्थों से प्रभु की आरती उतारें। सुपात्र ब्राह्मण को भोजन कराकर दान दक्षिणा देनी चाहिए।
इस व्रत को अपनाने से आत्म शुद्धि एवं आध्यात्मिकता का मार्ग प्रशस्त होता है। व्रतों के मर्म को जानने की सामर्थ्य प्राप्त हो जाती है।

व्रत सम्बन्धी कथा-

इस व्रत की मुख्य कथा महाराजा हरिश्चन्द्र की सत्यवादिता ही है। इनकी कथा से सभी भली-भाँति परिचित हैं। किसी ने ठीक ही लिखा है -
 "चन्द्र टरै, सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार।
 पर राजा हरिश्चन्द्र को टरै न सत्य विचार।।"
महाराजा हरिश्चन्द्र ने सत्य को अपनाने के लिए स्वयं को बेच दिया। अपने पुत्र की मृत्यु पर पत्नी से भी कर के रूप में कफन मांगा। जिस दिन उनके पुत्र रोहिताश्व की मृत्यु हुई, उस दिन एकादशी का ही व्रत था तथा राजा ने सारे दिन उपवास किया था।
जब ऋषि विश्वामित्र को सब कुछ दान करने के उपरान्त वे शमशान घाट में चाण्डाल की नौकरी करने लगे तो एक दिन उनका साक्षात्कार गौतम ऋषि से हुआ। राजा से सारा वृत्तान्त सुनकर ऋषि ने उन्हें जया एकादशी का व्रत करने की सलाह दी थी। हरिश्चन्द्र तभी से यह व्रत रखते थे। हरिश्चन्द्र के द्वारा कर मांगने पर उनकी पत्नी ने उन्हें लाश के कफन का टुकड़ा अपनी साड़ी से फाड़कर जैसे ही दिया, सत्य व व्रत के प्रभाव से भगवान ने प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया तथा उनके पुत्र को जीवन प्रदान किया।
भगवान के आदेश से विश्वामित्र जी ने दान में प्राप्त सारा राज्य भी उन्हें लौटा दिया। इस प्रकार तीनों प्राणी चिरकाल तक सुख भोगते हुए अन्त में बैकुण्ठ को प्राप्त हुए। इस व्रत में विष्णु भगवान की ही आरती होती है।

आरती

जय श्री विष्णु जगत के पालक भक्तन हितकारी।
ध्यावत गण गंधर्व सर्वदा सुर नर नारी।।
इच्छा से त्रैलोक्य रचा है माया विस्तारी।
पावत न कछु भेद आपका, सुर मुनि तप धारी।।
व्यापक सब में आप चराचर, है शक्ति भारी।
ज्योति महान तुम्हारी छाई, चुहुं दिश उजियारी।। जय श्री विष्णु .....
पालन कर्त्ता जगत को स्वामी,  तुम अति उपकारी।
कहत निगम कर जोड़ विनय के, धन धन अनुरारि।।
जय श्री विष्णु जगत के पालक भक्तन हितकारी।।

धन्यवाद ।



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