कामिका (पवित्रा) एकादशी - kaamika (pavitra) ekaadashee 4 August vrat katha
कामिका एकादशी का व्रत पवित्रा एकादशी के नाम से जाना जाता है उसकी कथा का श्रवण करने से वाजपेय
कामिका एकादशी व्रत को करने का समय - kaamika ekaadashee vrat ko karane ka samay
यह प्रभावशाली व्रत श्रावण मास कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है।
कामिका एकादशी व्रत करने का विधान - kaamika ekaadashee vrat karane ka vidhaan
इस व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत में स्नान कराकर भोग लगाना चाहिए। आजमन के उपरान्त धूप, दीप, रोली, चन्दन आदि सुगन्धित पदार्थों से भगवान विष्णु की आरती उतारनी चाहिए। सुपात्र ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करने से मनुष्य के जन्म जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं।
कामिका एकादशी व्रत कथा - kaamika ekaadashee vrat katha
प्राचीन काल में किसी गांव में एक ठाकुर रहते थे। एक दिन क्रोधी ठाकुर का एक ब्राह्मण से टकराव हो गया। उसी के परिणाम स्वरूप ब्राह्मण मारा गया। इस पर उन्होंने उसकी तेरहवी करनी चाही। उन्होंने सभी ब्राह्मणों से निवेदन किया, "भगवान ! मेरा पाप कैसे दूर हो सकता है ?"
इस विनम्र याचना पर उन सबने उसे कामिका एकादशी का व्रत रखने की आज्ञा दी। ठाकुर ने वैसा ही किया। रात्रि में भगवान की प्रतिमा के पास जब वह शयन कर रहा था तभी उसे स्वप्न आया। भगवान ने स्वप्न में कहा," हे ठाकुर ! तेरा पाप सब दूर हो गया। अब तू ब्राह्मण की तेरहवी कर सकता है। तेरे घर का सूतक नष्ट हो गया।"
भगवान की आज्ञा का पालन करके ठाकुर ने तेरहवी की तथा ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होकर विष्णुलोक को चला गया।
आरती
ओउम जय जगदीश हरे, प्रभु जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट क्षण में दूर करें।। ओउम जय।।
जो ध्यावे फल पावे, दुख विनशे मन का। प्रभु .....
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का।। ओउम जय ।।
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी। प्रभु ......
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी।। ओउम जय ।।तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी। प्रभु ......
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी।। ओउम जय ।।
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता। प्रभु ....
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता।। ओउम जय ।।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। प्रभु ......
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति।। ओउम जय।। दीन बन्धु दुख हर्ता, तुम ठाकुर मेरे। प्रभु ......
अपने हाथ उठाओ, शरण पडा मैं तेरे ।।ओउम जय।।
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा। प्रभु .....
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा।। ओउम जय।।
तन मन धन यह जीवन, है सब कुछ तेरा। प्रभु .....
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा।। ओउम जय।।
श्री जगदीश की आरती, जो कोई नर गावे, प्रभु प्रेम सहित गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मन वांछित फल पावे।। ओउम जय।।
धन्यवाद ।
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