पुत्रदा एकादशी 18 अगस्त 2021 व्रत कथा( putrada ekaadashee 18 August 2021 vrat katha 


यह श्रेष्ठ व्रत पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस व्रत को रखने वाले निसंतान व्यक्ति को पुत्र रत्न की उपलब्धि होती है। इसको करने वाला मनुष्य सुशील, शान्ति प्रिय एवं आध्यात्मिक होता है। इस रोज भगवान विष्णु के नाम पर व्रत रखकर पूजा अर्चना की जाती है।
पुत्रदा एकादशी 18 अगस्त 2021 व्रत कथा
Putrada Ekadasi 

पुत्रादा एकादशी व्रत को रखने का समय - putraada ekaadashee vrat ko rakhane ka samay 

पुत्रदा एकादशी का व्रत श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है।

व्रत को करने की विधि - vrat ko karane kee vidhi

इस दिन सांयकाल में पूजा पाठ तथा आरती के उपरान्त वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। दिन भर विष्णु भगवान की चरण वन्दना करनी चाहिए। रात्रिकाल में भगवान विष्णु की प्रतिमा के निकट ही शयन करना चाहिए।

पुत्राद एकादशी व्रत कथा - putraada ekaadashee vrat katha 

किसी समय माहिष्मती नगरी में महीजित नामक राजा राज्य करते थे। वह अत्यन्त धर्मात्मा एवं शान्ति प्रिय थे। वह बड़े दानी थे। फिर भी उनके यहाँ कोई सन्तान नहीं थी। यही उनके दुःखों का एकमात्र कारण था। एक बार राजा ने अपने राज्य के सभी ऋषि-मुनियों को बुलाया तथा सन्तान प्राप्ति का उपाय पूछा। कोई भी ऋषि उनकी समस्या का सही समाधान प्रस्तुत न कर सका। इस पर राजा अपने रथ पर सवार होकर वनों की ओर चल दिया उसे अपने जीवन से घोर निराशा हो चुकी थी।
वनों में एक मुनि का आश्रम देखकर राजा उस आश्रम में प्रवेश कर गया। सामने ही लोमश ऋषि अपने शिष्यों के साथ विराजमान थे। राजा उन्हें प्रणाम करके हताश होकर बैठ गया। उनकी उदासी देखकर लोमेश ऋषि ने पूछा, "हे राजन ! कहिए कैसे हो, सकुशल तो हो ? आपको व आपकी प्रजा को कोई कष्ट तो नहीं हैं ?"
राजा ने विनम्रता पूर्वक हाथ जोड़कर कहा, "भगवान ! आपकी कृपा से सभी प्रजा आनन्द पूर्वक समय व्यतीत कर रही है। लेकिन मेरी एक समस्या है कि हमारे यहाँ अभी तक कोई सन्तान नहीं हुई है, यह चिंता मुझे रात दिन खाए जा रही है। कृपा करके पुत्र प्राप्ति का कोई सरलतम उपाय बताइए।"
यह सुनकर लोमश मुनि ने अपने नेत्र क्षण भर के लिए बन्द किए तथा राजा के पूर्व जन्म का चिन्तन करके बोले,  "हे ब्राह्मणों ! यह राजा पिछले जन्म में बड़ा ही निर्धन था। एक गाँव से दूसरे गाँव भटकता हुए बुरे कामों में लिप्त रहता था। दोपहर के वक्त एक जलाशय पर जल पीने गया। उसी स्थान पर एक उसी समय की ब्याही हुई गाय पानी पी रही थी। इस प्यासी गाय को हटाकर राजा स्वयं जल पीने लगा। इसीलिए राजा को कष्ट भोगने पड़े हैं।"
यह सुनकर राजा ने कहा, "प्रभु ! शास्त्रों में वर्णित है कि पुण्य से पाप नष्ट हो जाते हैं। कृपा करके कोई ऐसा उपाय बताएं ताकि मेरे पूर्व जन्म के सभी पाप नष्ट हो जाएं तथा मुझे पुत्र रत्न की उपलब्धि हो सके।"
ब्राह्मण के मुख से ऐसे विनम्र निवेदन को सुनकर लोमश ऋषि कहने लगे,  "हे राजन ! यदि तुम श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की 'पुत्रदा एकादशी' का व्रत धारण करोगे, तो आपको पुत्र प्राप्ति हो सकती है।"
राजा ने अपनी नगरी में आकर लोमश ऋषि की आज्ञानुसार पुत्रदा एकादशी का व्रत किया तथा पुत्र रत्न की प्राप्ति की।
धन्यवाद ।

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