धन दायक श्री यंत्र उपासना
जय माता दी। दोस्तों .......
मानव जीवन का संचालन धन के बिना संभव नहीं है मनुष्य को अपनी आवश्यकता पूर्ति हेतु पग पग पर धन की आवश्यकता पड़ती है। दरिद्रता को सबसे बड़ा अभिशाप माना गया है। यदि धन न हो तो जीवन नरक तुल्य बन जाता है। ऐसे व्यक्ति को भाई-बंधु, मित्र, रिश्तेदार सब छोड़ देते हैं। व्यक्ति को कितना धन मिलेगा, वह कैसा जीवन जियेगा यह सब उसके पूर्व जन्म कर्मानुसार मां के गर्भ में ही तय हो जाता है-
आयु कर्म वित च विद्या निधनमेव च।
प चैतानि स जयन्ते गर्भस्थयैव देहिनः।।
shri yantra |
पूर्वजन्मदुष्कर्मानुसार ही व्यक्ति की कुंडली में केमद्रुम, हृद रोग का प्रयोग दरिद्र योग होता सनियो गृह कार्य संकट योग योग, काक योग, दरिद्र योग, हुताशन योग, रेका योग, शकट योग, ऋण योग, मति योग, दुर्योग, निर्भाग्य योग, नि:स्व योग एवं ऋण ग्रस्त योग आदि अशुभ योग आते हैं। ये योग व्यक्ति के जीवन को धन एवं ऐश्वर्यहीन बनाते हैं। इन कुयोगों को दूर करने हेतु हमें जप, पूजा, अनुष्ठान एवं यंत्र-मंत्र-तंत्रादि का सहारा लेना पड़ता है। इन कुयोगों को दूर कर व्यक्ति को धन ऐश्वर्य देने वाले यंत्र राज श्री यंत्र की महत्ता प्रस्तुत है। यंत्र मंत्र मय हैं जिस प्रकार आत्मा और शरीर में भेद नहीं होता उसी प्रकार यंत्र एवं देवता में कोई भेद नहीं होता है। यंत्र देवता का निवास स्थान माना गया है-
यन्त्रमन्त्रमयं प्रोक्तं मंत्रात्मा देवतैवहि।
देहात्मनोर्यथा भेदो यन्त्र देवयोस्तथा।।
यंत्र और मंत्र मिलकर शीघ्र फलदायी होते हैं। मंत्रों में शक्ति शब्दों में निहित होती है वहीं यह शक्ति यंत्रों के रेखा एवं बिंदुओं में रहती है। श्री यंत्र में लक्ष्मी का निवास रहता है। इस यंत्र की रचना के बारे में कहा गया है-
बिंदुत्रिकोण वसुकोण दशारयुग्म, मन्वस्व नागदल षोडसपंचयुक्तम्।
व त्तत्रयं च धरणी सदनत्रयं च, श्री चक्रमेतदुदितं परदेवतायाः।।
अर्थात् श्री यंत्र बिंदु, त्रिकोण, वसुकोण, दशारयुग्म, चतुर्दशार, अष्टदल, षोडसार, तीनव तथा भूपुर से निर्मित है। इसमें चार ऊपर मुख वाले त्रिकोण, शिव त्रिकोण, पाँच नीचे मुख वाले शक्ति त्रिकोण होते हैं। इस तरह त्रिकोण, अष्टकोण, दो दशार, पाँच शक्ति तथा बिंदु, अष्टकमल षोडस दल कमल तथा चतुरस्र हैं। ये इसकी कृपा से व्यक्ति को अष्टसिद्धि एवं नौ विधियों की कृपा प्राप्त होती है। इस यंत्र के पूजन अनुष्ठान से व्यक्ति को दश महाविद्याओं की भी कृपा प्राप्त होती है-
काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी, भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या घुमावती तथा।
मातंगी सिद्ध विद्या च कथिता बगलामुखी, एतादश महाविद्या सर्वतत्रेषु गोपिता।।
काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, मातंगी, कमला और बगलामुखी ये दश महाविद्यायें हैं।
श्री यंत्र का निर्माण
श्री यंत्र का निर्माण स्वर्ण, चांदी स्फटिक, भोजपत्र आदि पर किया जाता है। भोजपत्र पर निर्मित यंत्र साधारण फलदायी रहता है। यह ताम्रपत्र पर श्रेष्ठ, चांदी पर श्रेष्ठता तथा स्वर्ण पर निर्मित होने पर श्रेष्ठतम फल देता है। स्फटिक एवं मणि आदि पर निर्मित श्री यंत्र भी अत्यंत शुभ फलदायी रहता है। विभिन्न प्रसिद्ध तीर्थस्थलों पर स्थापित इन यंत्रों की महिमा सर्वविदित है। तिरुपति के बालाजी मंदिर में स्थापित श्रीयंत्र (षोडश यंत्र), जगन्नाथ जी के मंदिर में भैरवी चक्र तथा श्री राम मंदिर में सुदर्शन चक्र स्थापित है जो यंत्रों की महत्ता का श्रेष्ठ उदाहरण हैं। इन तीर्थ स्थलों पर अपार संपत्ति है विभिन्न तांत्रिक ग्रंथों में श्रीयंत्र की महिमा को अपार बताया गया है। इसमें सभी देवी देवताओं का निवास बताया गया है। यंत्र का निर्माण शुभ मुहूर्त जैसे - सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण, रविपुष्य, गुरु पुष्य योग, चारों नवरात्र, दीपावली, शिवरात्रि आदि दिनों में किया जाना चाहिए या कराया जाना चाहिए। यह कार्य जटिल एवं श्रमसाध्य है। हर कोई इस कार्य को नहीं कर सकता है। कर्मकांड जानने वाले विद्वान पंडितों से यंत्र निर्माण अर्थात प्राण प्रतिष्ठा करवा लेना चाहिए। प्राण प्रतिष्ठा युक्त यंत्र शीघ्र फलदायी होते हैं। यदि ऐसा कराया जाना संभव न हो तो किसी विश्वसनीय प्रतिष्ठान, संस्थान से प्राण प्रतिष्ठा युक्त यंत्र प्राप्त कर अपनी पूजा में शुभ मुहूर्त में किसी पंडित से अनुष्ठानपूर्वक स्थापित करा लेना चाहिए। फिर प्रतिदिन पवित्र होकर इस यंत्र की पूजा करनी चाहिए, पवित्रता का ध्यान रखना अत्यावश्यक है।
यथा-देवोभूत्वा यजे देवं ना देवो देवमर्चयेत्।
देवार्चा योग्यता प्राप्त्यैभूतिशुद्धि समाचरेत्।।
श्री यंत्र पूजा
इस यंत्र की प्रतिदिन पूजा करें तथा श्री सूक्त के 12 पाठ करें एवं निम्नलिखित लक्ष्मी मंत्रों में से किसी एक मंत्र का नियमित एक माला जप करने मात्र से ही धन संकट दूर होता है। व्यक्ति संपन्न एवं ऐश्वर्यशाली बन जाता है। जप के लिए माला कमल गट्टे की श्रेष्ठ है। रुद्राक्ष की माला का भी उपयोग किया जा सकता है। इस साधना से लक्ष्मी जी के साथ सभी देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है। लेकिन व्यक्ति को सदाचरण नहीं छोड़ना चाहिए। चरित्र बल बनाये रखना एवं मास मदिरा से दूर रहना चाहिए। यंत्र, मंत्र, तंत्र, देवी, देवता, यज्ञ, औषधि, तीर्थ एवं गुरु में श्रद्धा अनिवार्य शर्त है तभी ये चीजें फलदायी होती हैं। श्री यंत्र में तो इतना आकर्षण है कि इसका दर्शन मात्र ही हमें लाभ दे देता है।
मंत्र -
- ऊं श्रीं हीं श्रीं कमले कमलालेय प्रसीद प्रसीद श्रीं हीं ऊं महालक्ष्मयै नमः।
- ऊं हीं श्रीं लक्ष्मीं महालक्ष्मी सर्वकामप्रदे सर्व-सौभाग्यदायिनी अभिमत् प्रयच्छ सर्वसर्वगत सुरूपे सर्वदुर्जयविमोचनी ह्यीं सः स्वाहा।
- ऊं महालक्ष्मर्य च विदमहे विष्णु पत्नीम् च धीमहि तन्नों लक्ष्मी प्रचोदयात्।
- ऊं श्रीं हीं क्लीं श्रीं लक्ष्मी रागच्छागच्छमममन्दिरे तिष्ठ स्वाहा।
- ऊं श्रीं हीं श्रीं नमः।
- ऊं हीं श्रीं लक्ष्मी दुर्भाग्यनाशिनी सौभाग्यप्रदायिनी श्रीं हीं ऊं।
- ऐं हीं श्रीं क्लीं सौं जगत्प्रसूत्यै नमः।
- ऊं नमः कमलवासिन्यै स्वाहा।
- ऊं श्रीं हीं जयलक्ष्मी प्रियाय नित्यप्रदितचेत से लक्ष्मी सिद्धां देहाय श्रीं हीं नमः।
उपरोक्त मंत्रों में से किसी भी एक मंत्र का जप करें।
धन्यवाद।
एक टिप्पणी भेजें