सावन मास में शिव भक्ति का महत्व

जय माता दी। दोस्तों .......

सावन का महीना भारतीय कैलेंडर के अनुसार वर्ष का पांचवां महीना होता है। वर्षा ऋतु के चारों मास में सावन का विशिष्ट महत्व माना जाता है। इस माह की पूर्णिमा को श्रावण नक्षत्र के लगने के कारण ही इसे श्रावण या सावन मास का नाम दिया गया है।

saavan maas mein shiv bhakti ka mahatv
lord shiva

माह का महत्व - 

इस माह का महत्व है कि इसे वर्ष का सबसे पवित्र मास माना जाता है और यह शिव भक्ति को समर्पित होता है महीने भर शिव की पूजा हर घर व हर मन्दिर में की जाती है, इसीलिए इस महीने का हर सोमवार शिव पूजा के लिए विशिष्ट महत्व रखता है, जिसे सावन के सोमवार के नाम से जाना जाता है। सावन भर शिव पूजा और उपवास का विशिष्ठ फल माना जाता है।

प्रचलित कथा-

सावन को शिव भगवान के साथ जोड़कर देखने के पीछे जो कथा प्रचलित है, उसमें समुद्र मंथन का संदर्भ दिया जाता है। कथा के अनुसार, समुद्र मंथन सावन के महीने में ही हुआ था। मंथन से निकले रत्नों और अनेक बहुमूल्य पदार्थों में से हलाहल विष की भयंकरता के कारण उसे कहीं भी रखा जाना संभव प्रतीत नहीं हो रहा था। ऐसे में शिव ने उसे पीकर अपने कंठ में रख लिया और सभी की रक्षा की। हलाहल के कारण ही उन्हें नीलकंठ का नाम भी दिया गया। यह भी कहा जाता है कि इस विष की भयंकरता को कम करने के लिए ही उन्होंने चंद्रमा को धारण किया और देवताओं ने गंगाजल अर्पित किया। चूंकि यह घटना सावन माह में हुई थी, इसलिए शिव भक्त आज भी इस महीने में गंगाजल, दूध और ऐसे ही शीतल पदार्थों से शिव का अभिषेक कर विधि-विधान से शिव पूजा करते हैं।

पूजा फल -

सावन माह में शिव पूजा का अपना विशिष्ट महत्व है। इस माह शिव भगवान की पूजा करने वाले को शिव सौभाग्य की प्राप्ति और कामना की पूर्ति का वरदान मिलता है। भगवान शिव व्रत करने वाले को इस लोक के बाद शिवलोक की प्राप्ति का भी वरदान देते हैं। पुत्र कामना के लिए भी इस माह पूजा-अर्चना की जाती है। ज्योतिष के अनुसार, यदि विवाह कामना से सावन माह में पूजा करनी है,  तो फिर शिव के संग गौरी की भी पूजा करनी चाहिए।

विधि -

सावन के सोमवार में भी शिव पूजा की वही विधि होती है,जो सामान्यतः शिव पूजा की होती है। सोलह, छह, पांच, तीन और एक सभी सोमवार में शिव की पूजा की एक ही विधि का पालन किया जाता है। शिव पूजा के लिए सबसे पहले शिव को क्रमशः शहद, दूध और गंगाजल से स्नान कराना चाहिए,
फिर बेलपत्र और अन्य पदार्थों को अर्पित कर उनकी पूजा करनी चाहिए। इस माह के प्रथम सोमवार को भगवान शिव को इस विधि से स्नान कराना आवश्यक है। इसके बाद पड़ने वाले सोमवारों को पानी में दूध मिलाकर भगवान शिव को स्नान करा सकते हैं। इस माह प्रतिदिन पंच अक्षरीय मंत्र ओम नमः शिवाय का 108 बार जाप भी करना चाहिए।

व्रत में आहार -

सावन के सोमवार में फलाहार का ही विधान होता है। इन सोमवार में उपवास में एक ही समय आहार लेना चाहिए, वह भी फलाहार। पसाई के चावल, सेंधा नमक खा सकते हैं।

धन्यवाद।

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