माणिक्य रत्न
जय माता दी। दोस्तों ....
पौराणिक कथाओं के अनुसार दैत्यराज बलि पर विजय प्राप्त करने के लिए विष्णु भगवान ने वामन अवतार धारण किया और उनके दर्प को चूर्ण किया। इस अवसर पर भगवान के चरण स्पर्श से बलि का सारा शरीर रत्नों का बन गया। तब देवराज इन्द्र ने उस पर वज्र का प्रहार किया। वज्र की चोट से बलि के शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो गए। उन रत्नमय टुकड़ों को भगवान शिव ने अपने त्रिशूल पर धारण कर लिया और उसमें नवग्रहों तथा बारह राशियों के प्रभुत्व का आघात करके पृथ्वी पर फेंक दिया। पृथ्वी पर गिराए गए इन खंडों में से ही विविध रत्नों की खानें पृथ्वी के गर्भ में बन गयी। भगवान शंकर के द्वारा फेंके गए खंडों में से ही 84 प्रकार के रत्न (पत्थरों) माणिक आदि रत्नों के सम्बन्ध में पुराणों में अनेक कथाएं लिखी गयी हैं।
manikya |
माणिक्य के नाम -
- संस्कृत में माणिक्य, पदमराग, कुरविन्द आदि। हिंदी में - माणिक, जमुनिया। उर्दू में - याकूत, अंग्रेजी में - रूबी इत्यादि।
माणिक्य की खानें -
- माणिक्य की खानें (माइन्स) बर्मा, श्याम (थाईलैण्ड), श्रीलंका और काबुल में पाई जाती हैं। दक्षिणी भारत में भी माणिक्य की खानें हैं। यह पत्थर गुमलाल होता है। जामुनीपन आभायुक्त होता है। कुछ-कुछ मैलापन लिये होता है, टुकड़ा अच्छा भी निकल जाता है, यहां का पत्थर पारदर्शी, अर्द्धपारदर्शी तथा गुम भी होता है, कुछ टुकड़े पारदर्शी भी होते हैं, परंतु माणिक सबसे मूल्यवान बर्मा की खानों से प्राप्त होता है।
माणिक्य के रंग -
- माणिक्य सूर्य का रत्न है। नवग्रहों में जैसे सूर्य प्रधान है, वैसे ही नवरत्नों में माणिक्य मुख्य माना जाता है। माणिक्य वर्ण का लाल और जामुनीपन लिए होता है। लाल तुरमली को भी दुकानदार माणिक्य बता कर बेच देते हैं। यह सरासर धोखा है, उससे सावधान रहना चाहिए।
- मुख्य रूप से माणिक्य एल्युमीनियम और ऑक्सीजन का यौगिक है। इसमें लाल रंग लोहे और क्रोमियम के अल्प मिश्रण से उत्पन्न होता है।
खान से निकलने वाला माणिक्य -
- बिना चमक, दूध जैसा, एक नग में दो रंग, रंग में मलीनता धूम्रवर्ण, काला या सफेद दाग आदि।
आयुर्वेद में माणिक्य -
- माणिक्य की पिस्टी और भस्म दोनों खाने के काम में आती हैं। अनुमान भेद से पृथक-पृथक रोगों में उपयोगी होती है। माणिक्य रक्तवर्धक, वायुनाशक और उदर रोगों में लाभकारी होता है।
- माणिक्य दीपक, वीर्य वर्धन, नेत्रों में हितकारी, त्रिदोष एवं क्षयनाशक है। यह त्रिदोष (वात-पित्त-कफ) वमन-विष-कुष्ठक्षय तथा रक्त विकार आदि रोगों को नष्ट करता है। बुद्धिमानों को सेवनीय है।
- औषधि के उपयोग में माणिक्य के उपरोक्त दोष नहीं देखे जाते हैं। रंग का अच्छा तथा पानीदार माणिक्य होना पर्याप्त है।
ज्योतिष में माणिक्य -
- माणिक्य धारण करने से विष का प्रभाव नहीं होता। इसके प्रयोग से मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों का उदय होता है तथा विशिष्ट दैविक भावों का उदय होता है। स्त्रियों को गर्भपात होने से रोकता है। माणिक्य प्रयोग से नेत्र रोग आदि से लाभ होता है। जिस व्यक्तियों के जीवन में अस्थिरता अधिक होती है, आज यहाँ, कल वहाँ, आज यह काम, कल दूसरा काम, माणिक्य रत्न उनके लिए अति उत्तम है। सिंह राशि के लिए राशि स्वामी होने के कारण भाग्य को उन्नत करने में सहायक होता है, जीवन को ऊंचा उठाता है। माणिक्य धारण करने से व्यक्ति तेजस्वी, प्रतापी, प्रभावशाली बनता है। सिंह, मेष, वृश्चिक राशि वालों के लिए अति लाभकारी है।
धारण विधि -
- माणिक्य को कम से कम आठ रत्ती से ग्यारह रत्ती का पहनना चाहिए। इससे अधिक वजन का पहनना और भी उचित होगा। इस रत्न को सोने अथवा अष्टधातु में जड़ित कर लेना चाहिये।जड़ी हुए अंगूठी पूजा स्थल में पूजा के समय रख दें। रविवार के दिन सुबह 8:00 बजे से पहले पूजा से निवृत्त होकर अपने इष्टदेव के चरणों से स्पर्श कर रिंगफिंगर वाली अंगुली में धारण करना चाहिए। सच्चे विश्वास और भाव से पहनने पर अवश्य ही इच्छा की पूर्ति होती है।
धन्यवाद ।
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