चंद्रमा ग्रह शान्ति
जय माता दी | दोस्तों ......
अशुभ ग्रहों की शांति हेतु ऋषि-महर्षियों ने मंत्र का जप, अनुष्ठान, दान, ग्रह दोष शमन यंत्र, रत्न-उपरत्न, ग्रहों से सम्बन्धित जड़, मूल, काष्ठ आदि धारण का विधान बताया है। जिसके करने से अशुभ ग्रहों की पीड़ा शांत होती है।
अशुभ ग्रहों की शांति हेतु ऋषि-महर्षियों ने मंत्र का जप, अनुष्ठान, दान, ग्रह दोष शमन यंत्र, रत्न-उपरत्न, ग्रहों से सम्बन्धित जड़, मूल, काष्ठ आदि धारण का विधान बताया है। जिसके करने से अशुभ ग्रहों की पीड़ा शांत होती है।
chandra grah |
चद्र शांति हेतु उपाय
चन्द्र-
- अग्निकोण में अर्धचन्द्रश्वेत का ध्यान करें।
एकाक्षरी बीज मंत्र-
- ॐ सोंंम सोमाय नम:।
मंत्र जाप संख्या-
- मंत्रों के जाप संख्या कलियुग में एक लाख।
हवन हेतु समिधा-
- पलास
दिन-
- सोमवार
दान समय-
- संध्याकाल।
दान द्रव्य-
- मुक्ता,सोना, चांदी, चावल मिश्री, दही, सफेदवस्त्र, सफेद फूल, शंख ( बजने ) वाला, कपूर, सफेद गाय दूध देने वाली या सफेद बछड़ा, सफेद चंदन, सफेद देशी घी, इत्तर, ( खुशबू वाली )
रत्न-
- सफेद मोती, ब्राह्मण के लिए सीप का मोती, वैश्य के लिए गजमोती,क्षत्रीय के लिए वास का मोती तथा अन्य वर्ण को सामान्य मोती धारण करना चाहिए। सर्प मुक्ता, शंख मुक्ता, शूकर मुक्ता, मीन मुक्ता आकाश मुक्ता, मेघ मुक्ता, आदि दुर्लभ हैं, यदि प्राप्त हो तो कोई भी धारण कर लें, इनके विशेष प्रभाव है।
मोती का वजन-
- मोती 5, 6 रत्ती से लेकर कितने भी भजन का पहने केवल 7 या 8 रत्ती का न पहनेंं। 3 रत्ती से ऊपर वजन का कार्य करता है।
- मोती पहने के दिन से 2 वर्ष के 1 माह 27 दिन तक प्रभावयुक्त रहता है फिर उसे बदल देना चाहिए।या जाग्रत करके फिर से पहनें।
उपरत्न-
- चन्दकान्ता (मून स्टोन) ओपल, सफेद हकीक।
जाड़ी-
- ढ़ाक की लकड़ी,खिरनी का मूल
चंद्र शांति हेतु अन्य उपाय
चंद्रमा जन्मकुंडली या गोचर के अनुसार
प्रथम भाव-
- प्रथम भाव में अनिष्टकारक हो तो कांच के गिलास में दूध, चाय या पानी न पीयें।
- बड़ के वृक्ष की जड़ में कभी-कभी मीठा डालेंं।
- 28 वर्ष से पहले विवाह न करें।
द्वितीय स्थान-
- द्वितीय स्थान में यदि अनिष्टकारी हो तो दीर्घायु के लिए अपने मकान की नींव में चांदी की ईंट दबायेंं।
- चांदी का दान दें, तथा किसी मन्दिर में पानी की टंकी या हैण्ड पम्प लगवायें।
तृतीय स्थान-
- तृतीय स्थान में अनिष्टकारी को तो नित्यप्रति दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
- लड़की के जन्मदिन पर दूध, चावल, चीनी का दान करें। और लड़के के जन्मदिन पर गेहूं, चीनी, घी, का दान करें।
- लड़की या बहन का कन्यादान करें और गरीब लड़की की शादी करें।
चतुर्थ भाव-
- चतुर्थ भाव में यदि अनिष्टकारी हो तो दूध का व्यापार ना करें |
- कोई भी शुभ कार्य करने से पहले दूध का घड़ा भर कर रखें तथा दूध दान करें।
पंचम भाव-
- पंचम भाव में अनिष्टकारी हो तो सोमवार को सफेद कपड़े में चावल, मिश्री कपड़े में बांधकर बहते दरिया में प्रवाह करें।
- प्रत्येक कार्य में बड़ों की सलाह लें।
- अपना गुप्त भेद किसी को ना बतायेंं।
षष्ठ भाव-
- षष्ठ भाव मेंं अनिष्टकारी हो तो 24 वें वर्ष में कुंंआ या हैण्ड पम्प धर्म स्थान में लगवायेंं।
- माता का स्वास्थ्य खराब हो तो घर में खरगोश पालेंं।
सप्तम भाव-
- सप्तम भाव में चंद्रमा अनिष्टकारी हो तो सोमवार को चांदी, दूध व घी का दान करें।
- लड़की की विदा के समय अपने साथ अपने वजन के बराबर चावल लेकर ससुराल जाऐं अथवा ससुराल में चावल, दूध आदि पहले से ही भेज दें, अन्यथा सास-बहू की नहीं बनेगी।
- दूध पानी का व्यापार न करें 24-25 वें वर्ष में शादी न करें नित्य, शंकरजी पर जल वे दूध चढ़ायेंं।
अष्टम भाव-
- अष्टम भाव में अनिष्टकारी हो तो शमशान भूमि में हैण्ड पम्प लगवायें एवं घर में कांच की बोतल न रखें
- पितरों का श्राद्ध अवश्य करें तथा दूध का दान करें।
- माता-पिता के पैर छूकर नित्य आशीर्वाद लेंं।
नवम भाव-
- नवम भाव में चंद्रमा अनिष्टकारी हो तो मजदूरों को दूध पिलावेंं तथा घर में केसर-सोना आदि रखें।
- मछलियों को चावल आदि खिलावें |
दशम भाव-
- दशम भाव में चंद्रमा हानिकारक हो तो रात को दूध का सेवन न करें।
- घर में बृहस्पति को स्थापित करें।
- नदी का पानी या गंगाजल सफेद कांच की बोतल में भरकर रखें।
एकादश भाव-
- एकादश भाव में हानिकारक हो तो भैरों मंदिर में दूध दान करें।
- बच्चे के प्रसव के समय 43 दिन तक दादी नानी बच्चे का मुख ना देखें।
- एक व्यक्ति जितना दूध पीता है, उससे 11 गुना दूध का खोया भूनकर उसके 125 पेड़ा बनाकर ( बिना मीठे के बनावे )नदी में प्रवाह करें।
द्वादश भाव-
- द्वादश भाव में चंद्रमा हानिकारक हो तो वर्षा का पानी कांच के बर्तन में भरकर रखें।
- कानों में सोना पहनेंं अपने सिरहाने सोते समय दूध भरकर बर्तन मेंं रखें।
- प्रातः काल उस दूध को कीकर के पेड़ पर डालें।
नोट -प्रत्येक घर में चंद्रमा की शांति हेतु भगवान शंकर की पूजा-अर्चना रुद्राभिषेक करें।
एक टिप्पणी भेजें