सूर्य ग्रह शांति 

जय माता दी। दोस्तों ..
अशुभ ग्रहों की शांति हेतु ऋषि-महर्षियों ने मंत्र का जप, अनुष्ठान, दान, ग्रह दोष शमन यंत्र, रत्न-उपरत्न, ग्रहों से सम्बन्धित जड़,  मूल, काष्ठ आदि धारण का विधान बताया है। जिसके करने से अशुभ ग्रहों की पीड़ा शांत होती है।

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सूर्य शांति हेतु उपाय -

एकाक्षरी बीज मंत्र - 

  • ॐ घृणि: सूर्याय नमः।  मंत्र की जाप संख्या- सवा लाख।

हवन हेतु समिधा - 

  • मदार (आक )

दिन - 

  • रविवार

दान द्रव्य -

  • माणिक्य, सोना, तांबा, गेहूं, गुड़, घृत, रक्त वस्त्र, केसर, मूंगा, लाल गाय, लाल चंदन

दान समय -

  • अरुणोदय काल

धारणीय रत्न -

  • माणिक्य, वजन पांच या तीन रत्ती का हो। तीन रत्ती से कम वजन का न हो, जितना ज्यादा बड़ा होगा उतना ही श्रेष्ठ होगा।

उपरत्न -

  • विद्रुम (सूर्यमणि) तामड़ा, चुनड़ी, महसूरी स्टार, लाल हकीक, संगसितारा

नोट - माणिक्य का प्रभाव अंगूठी में जड़वाने के दिन से चार वर्ष तक रहता है।

जड़ी -

  • आक की जड़ रविपुष्य योग में ग्रहण की हुई।

ग्रहों के अनुसार समय-समय पर रत्नों, उपरत्नों तथा जड़ियों का परिवर्तन करते रहना चाहिए।

ग्रह शांति हेतु सामान्य बातें -

गोचर या जन्म कुंडली के अनुसार -

प्रथम भाव -

  • प्रथम भाव में सूर्य अनिष्टकारक हो तो शराब, मीट, मांस-मछली आदि का सेवन न करें। चीनी, सौंफ, छुआरे आदि मेवाओं का दान मन्दिर में करें।

द्वितीय भाव -

  • द्वितीय भाव में अनिष्टकारक हो तो नारियल तेल, बादाम का तेल,  देसी घी, धर्म स्थान में दान दें। किसी से कोई वस्तु बिना पैसे न लें तथा अपने चरित्र का ध्यान रखें।

तृतीय भाव -

  • तृतीय भाव में अनिष्टकारक हो तो यदि सूर्य के शत्रु ग्रह नवम एवं एकादश भाव में हो तो उनका उपाय करें। पाप व बुरे कार्यों से अपने को बचाकर रखें। मन्दिर में चावल व दूध का चालीस दिन तक दान करें।

चतुर्थ भाव -

  • चतुर्थ भाव  में अनिष्टकारी हो तो अपने घर में चार अन्धे पुरुषों को भोजन खिलाएं। शनि से सम्बन्धित कार्य न करें किंतु खानदानी कार्य करते रहें। बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त करते रहें।

पंचम भाव - 

  • पंचम भाव में अनिष्टकारक हो तो लाल मुंह के बन्दर की सेवा करें। बृहस्पति की वस्तुएं बहते पानी में प्रवाह करें। पूर्वजों द्वारा स्थापित रीति-रिवाजों को बंद न करें।

षष्ठ भाव - 

  • षष्ठ भाव में अनिष्टकारक हो तो जंगल में सात तांबे के चौरस टुकड़े रविवार के दिन पृथ्वी में दबाएं। धर्म स्थान में दूसरे व्यक्ति द्वारा दान दी गई वस्तु दान करें और छोटी कन्याओं की सेवा करें।

सप्तम भाव -

  • सप्तम भाव में अनिष्टकारक हो तो पृथ्वी में तांबे के सात चौरस टुकड़े दबाएं। कोई भी कार्य आरंभ करने से पहले मीठा खाकर ऊपर से पानी पियें। काली गाय की सेवा अवश्य करें।

अष्टम भाव -

  • अष्टम भाव में अनिष्टकारक हो तो सूर्य की वस्तु गेहूं, गुड़ आदि का दान दें तथा कुछ द्रव्य बहते पानी में प्रवाह करें। घर जमाई न बने। दक्षिण द्वार वाले मकान में न रहें।

नवम भाव -

  • नवम भाव में अनिष्टकारक हो तो दूध, चावल, चांदी का दान न करें। यदि घर में बड़े-बड़े पीतल के बर्तन हो तो उनको खाली न रहने दें। बुरे कार्यों से बचें।

दशम भाव -

  • दशम भाव में अनिष्टकारक हो तो नंगे सिर न रहें। नशे से दूर रहें। निर्धन के घर में हैंडपंप लगवाएं।

एकादश भाव - 

  • एकादश भाव में अनिष्टकारक हो तो मीट, शराब आदि का सेवन न करें। मूलियों को पत्ते सहित रात्रि को अपने सिरहाने रखकर प्रातः काल उठकर उन्हें धर्म स्थान में दान दे दें। पत्नी के स्वास्थ्य के निमित्त मन्दिर में सूर्य से सम्बन्धित द्रव्यों का दान करें। अपने पापों की मुक्ति के लिए जीवित बकरा जंगल में छोड़े या लाल गाय दान करें। तेंतालीस दिन तक रेत के बिस्तर पर सोएं।

द्वादश भाव - 

  • द्वादश भाव में सूर्य अनिष्टकारक हो तो विवाह के बाद बिजली का सामान मुफ्त में न लें। शनि व राहु से संबंधित व्यापार न करें और आटा पीसने की चक्की घर में रखें।
नोट -

ग्रह शांति हेतु जप, हवन, स्त्रोत पाठ आदि कराएं और मन्दिर में दान दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त करें। सूर्य के अधिष्ठाता देवता भगवान विष्णु हैं। इस हेतु विष्णु सहस्त्रनाम या आदित्य स्तोत्र का पाठ करवाएं। ग्यारह रत्ती का माणिक्य मन्दिर में दान करें। गायों को चारा, खाद्य सामग्री दान करें।

धन्यवाद।

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