कामदा एकादशी- 23 अप्रैल सन् 2021

गृहस्थ जीवन में रहने वालो के मनोवांछित फल देने वाली कामदा एकादशी का व्रत अति उत्तम माना जाता है। इस व्रत को जो भी व्यक्ति करता है। वह सभी मनोकामनाओं को प्राप्त कर लेता है। कामदा एकादशी व्रत का उल्लेख वराह पुराण में भी मिलता है ।
कामदा एकादशी व्रत एवं कथा 23 अप्रैल  सन् 2021
kamda ekadasi vart katha 


व्रत रखने का समय -

कामदा एकादशी का व्रत चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है।

कामदा एकादशी व्रत की विधि -

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इस व्रत में स्वच्छता अत्यावश्यक मानी जाती है। व्रत के दिन किसी बाहरी व्यक्ति को स्पर्श भी नहीं करना चाहिए। धूप - दीप, धूप बत्ती एवं कपूर आदि से विराट रूप भगवान की प्रतिमा की उपासना करनी चाहिए। पूजन करने के पश्चात् व्रत की कथा सुनानी चाहिए एवं आरती करके भक्तों को प्रसाद वितरण करना चाहिए।

व्रत करने में सावधानियां -

एकादशी व्रत के विषय में विशेष रूप से ध्यान रखने योग्य बात यह है कि व्रत में चावल एवं अन्न भूलकर भी नहीं खाना चाहिए। एकादशी व्रत के दिन चावल खाना अशुभ एवं अनिष्टकारी माना जाता है ।

कामदा एकादशी व्रत सम्बन्धी कथा -

कामदा एकादशी की व्रत कथा बतलाती है कि एक छोटी सी भूल भी बहुत बड़े दुःख का कारण बन जाती है लेकिन मनुष्य यदि धैर्य से काम ले, तो वह विषम परिस्थितियों पर भी विजय प्राप्त कर सकता है।
एक समय की बात है कि नागलोक में राजा पुण्डरीक राज्य करता था। वह अत्यंत ऐश्वर्यशाली तथा कोमल स्वभाव का विलासी राजा था। नृत्य एवं संगीत का वह बड़ा प्रेमी था। उसकी सभा में अप्सरा, किन्नर, गंधर्व आदि नृत्य किया करते थे। एक बार उनके दरबार में ललित नामक गंधर्व नृत्य गान प्रस्तुत कर रहा था। अचानक गाते-गाते ललित को अपनी सुन्दरी की याद आ गई। वह उसकी कल्पना में खो गया। इस कारण उसके नृत्य - गीत तथा लय वादिता में अरोचकता आ गई। इस त्रुटि को ललित के शत्रु कर्कट नामक नाग ने पकड़ लिया तथा इस त्रुटि की राजा से शिकायत की।
यह सुनकर राजा को ललित पर अत्यन्त क्रोध आया। उसने ललित को तुरन्त राक्षस होने का श्राप दे दिया। राजा से मिले श्राप के कारण ललित राक्षस होकर इधर- उधर घूमने लगा। गंधर्व को ऐसी हालत में देखकर उसकी पत्नी को गहरा आघात पहुँचा।
एक दिन वे दोनों दम्पति विन्ध्याचल पर्वत के शिखर पर स्थित ऋण्यमूक नामक ऋषि से मिले। उन दोनों की करूणाजनक खराब स्थिति को देखकर मुनि को दया आ गई। मुनि ने उनसे पूछा, " कहो नाग ललित ! यह तुमने क्या स्थिति बना रखी है।?"
राक्षस योनि में बने ललित ने आग्रह पूर्वक कहा," भगवान! मेरी ये दुर्दशा राजा पुण्डरीक से मिले श्राप  के कारण हुई है। मेरा कसूर मात्र इतना ही था कि राज्य दरबार में म़ै अपनी प्राणेश्वरी की याद में व्यस्त हो गया था। अपनी पत्नी को याद करना कोई पाप तो नहीं हैं मुनिवर ?
इस पर ऋण्यमूक मुनि ने कहा, " यह मैं मानता हूँ कि यह पाप नहीं है, लेकिन तुमने अपने कत्तर्व्य और राजा की आज्ञा का उल्लंघन तो किया है न ?"
ललित गंधर्व गिड़गिड़ाने लगा मेरे इस छोटे से अपराध के लिये इतना कठोर श्राप एकदम नाग योनि से राक्षस योनि का श्राप दे डाला। ऋण्यमूक ऋषि ने ललित पर दया करते हुए कहा, "एक उपाय तुम्हें राक्षस योनि से मुक्ति दिला सकता है, मानोगे?"
"मुनिवर ! मैं आपका सदा आभारी रहूँगा। जो आज्ञा करेंगे , शिरोधार्य करूँगा।" ललित ने हाथ जोड़कर कहा।
" तुम दोनों पति- पत्नी चैत्र शुक्ल पक्ष की 'कामदा' एकादशी का व्रत रखोगे, तो निश्चित ही श्राप से मुक्ति पा जाओगे।" मुनि ने ललित से कहा।
पति - पत्नी दोनों ने मुनि ऋण्यमूक की बात मानकर कामदा एकादशी का व्रत धारण किया और नियम पूर्वक व्रत को निभाया। ऐसा करने से उनके जन्म - जन्मांतर के सभी पाप नष्ट हो गए। ललित गंधर्व राक्षस योनि से पुनः नाग योनि को प्राप्त करके प्रसन्न हुआ। इस व्रत को करके उसका उद्वार हुआ, इसलिए इसे 'कामदा' एकादशी का नाम मिला। यह एकादशी गृहस्थ जीवन में रहने वाले मनुष्यों के लिए अति उत्तम है ।
धन्यवाद ।
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