वास्तु के अनुसार घर का मुख्य द्वार
जय माता दी दोस्तों.......
भवन के निर्माण में वास्तु के अनुसार मुख्य द्वार की स्थिति का बहुत महत्व है। वास्तु देवता की संरचना के आधार पर वास्तु चक्र के चौमुखी दिशाओं में कुल 32 तरह के देवता माने गए हैं। जिस का शुभ अशुभ फल होता है। तो आइये आज जानते हैं वास्तु के अनुसार भवन के निर्माण में मुख्य द्वार की स्थिति का शुभ- अशुभ प्रभाव
भवन के निर्माण में वास्तु के अनुसार मुख्य द्वार की स्थिति का बहुत महत्व है। वास्तु देवता की संरचना के आधार पर वास्तु चक्र के चौमुखी दिशाओं में कुल 32 तरह के देवता माने गए हैं। जिस का शुभ अशुभ फल होता है। तो आइये आज जानते हैं वास्तु के अनुसार भवन के निर्माण में मुख्य द्वार की स्थिति का शुभ- अशुभ प्रभाव
vastu devta |
शिखि यानि सिर -
- यह अंग वास्तु देवता के ईशान कोण (पूर्व दिशा) पर आता है।इस स्थान पर मुख्य द्वार बनाने से अत्यंत दुख तथा हानि और घर में आग लगने की संभावना होती है।
पर्जन्य यानि नेत्र -
- यह अंग वास्तु देवता के ईशान कोण (पूर्व दिशा) पर आता है।
- इस स्थान पर मुख्य द्वार बनाने से वह परिवार में कन्याओं की बुद्धि शोक तथा निर्धनता का संकेत देता है।
जयन्त यानि कान -
- यह स्थान वास्तु देवता के पूर्व दिशा में व्याप्त है।
- इस स्थान पर मुख्य द्वार बनाना अत्यंत शुभ एवं अपार धन की प्राप्ति होती है।
इंद्र यानि कंधा -
- वास्तु पुरुष का यह अंग भी मुख्य द्वार के लिए अत्यंत शुभ फल देने वाला तथा राज सम्मान की प्राप्ति कराने वाला होता है।
सूर्य यानि भुजा-
- वास्तु देवता का यह अंग भी पूर्व दिशा को संबोधित करता है।
- जहाँ धन लाभ माना गया है, लेकिन यह अंग दोनों तरफ से मध्यांतर का है।
- इसके साथ-साथ क्रोध की भी अधिकता रहती है।
सत्य यानि भुजा -
- यह अंग भी वास्तु देवता के पूर्व दिशा में ही स्थित है।
- लेकिन यहां मुख्य द्वार अत्यन्त निषेध माना गया है क्योंकि यहां मुख्य द्वार होने से घर में चोरी का भय अत्यधिक कन्याओं का जन्म तथा असत्य भाषण की अधिकता रहती है।
भृश यानि भुजा-
- यह वास्तु देवता का अंग मुख्य द्वार के लिए अत्यंत क्रूरता प्रदान करता है तथा क्रोध में वृद्धि करता है और ग्रह स्वामी के ग्रह नक्षत्र ठीक न होने के कारण कभी-कभी अपुत्रता की संभावना होती है।
अंतरिक्ष यानि भुजा -
- यह वास्तु देवता का अंग मुख्य द्वार के लिए चोरी का भय तथा हानि का संकेत देता है।
अनिल यानि भुजा-
- यह वास्तु देवता का अंग के आग्नेय कोण में दिखता है।
- यहाँ मुख्य द्वार संतान की कमी तथा मृत तुल्य कष्ट का संकेत देता है।
पुषा यानि मणिबंध -
- यह अंग वास्तु देवता के दक्षिण दिशा में आता है।
- इस स्थान पर मुख्य द्वार होने से गृह स्वामी को कारागार का भय रहता है तथा वह दास रुपी जीवन जीने को विवश हो जाता है।
वितथ यानि बगल -
- वास्तु देवता का यह अंग मुख्य द्वार के लिए निचता तथा भय की प्राप्ति करता है।
वृहत्क्षत यानि बगल-
- वास्तु देवता का यह अंग अत्यंत शुभ, धन लाभ तथा पुत्र की प्राप्ति कराता है।
यम यानि अरू -
- वास्तु देवता का यह अंग दक्षिण दिशा का मध्यांतर स्थान है।
- यह स्थान गृहस्वामी के लिए भयंकर रूप को जन्म देती है। बिल्कुल मध्यांतर दिशा शुभ नहीं होती।
गंधर्व यानि घुटना-
- यह अंग वास्तु देवता के घुटनों को संबोधित करता है
- अतः यहां मुख्य द्वार यश की प्राप्ति तथा निर्भयता का संकेत देता है।
भृंगराज यानि जंघा -
- वास्तु देवता का यह अंग मुख्य द्वार के लिए अत्यंत निषेध माना गया है।
- यह द्वार निर्धनता, चोर, भय को आमंत्रित करता है।
मृग यानि नितंब -
- वास्तु पुरुष का यह अंग भी मुख्य द्वार के लिए पुत्र के बल का नाश करने वाला तथा निर्बलता, रोग, भय का संकेत देता है।
पिता यानि पैर -
- वास्तु देवता का यह अंग पश्चिम दिशा को संबोधित करता है और यह पुत्र आदि के लिए अच्छा नहीं माना गया। मुख्य द्वार का यह स्थान शत्रुओं में वृद्धि करता है।
दौवारिक यानि नितंब -
- वास्तु देवता का इस अंग पर मुख्य द्वार परिवार में स्त्रियों के लिए कष्टकारी माना गया है।
सुग्रीव यानि जंघा -
- वास्तु देवता का यह अंग मुख्य द्वार के लिए अत्यंत शुभ, पुत्र रत्न की प्राप्ति तथा धन धान्य करने वाला होता है।
पुष्पदंत यानि घुटना-
- वास्तु देवता का यह अंग भी अत्यंत शुभ पुत्र रत्न की प्राप्ति तथा धन-धान्य करने वाला होता है।
वरूण यानि अरू -
- वास्तु देवता का यह अंग मुख्य द्वार के लिए अत्यंत सौभाग्यवर्धक माना गया है।
- यह धन तथा सौभाग्य का कारक अंग है।
असुर यानि बगल-
- वास्तु देवता का यह अंग मुख्य द्वार के राजभय तथा दुर्भाग्य को निमंत्रण देता है।
शेष यानी बगल-
- वास्तु देवता का यह अंग धन का नाश करने वाला तथा दुखों में वृद्धि करता है।
पापयक्षमा यानि मणिबंध -
- वास्तु देवता का यह अंग मुख्य द्वार के लिए शोक एवं रोग में वृद्धि करता है।
- अतः शास्त्र में यह द्वार निषेध है।
रोग यानी भुजा -
- वास्तु देवता का यह अंग वायत्य कोण को प्रदर्शित करता है।
- यहां बना मुख्य द्वार मृत्यु, बंधन, स्त्री हानि, निर्धनता तथा शत्रु में वृद्धि करता है।
नाग यानि भुजा -
- वास्तु देव का यह अंग भी मुख्य द्वार के लिए निषेध माना गया है।
- यहां द्वार होने से शत्रुओं में वृद्धि, निर्बलता तथा स्त्री दोष होता है।
मुख्य यानि भुजा -
- वास्तु देवता का यह अंग शास्त्र के अनुसार निषेध माना जाता है। यह लाभप्रद नहीं होता।
भलांट यानि भुजा-
- वास्तु देवता का यह अंग उत्तर दिशा को संबोधित करता है और यह मुख्य द्वार के लिए अत्यंत शुभकारक, धनकारक तथा संपत्तिकारक होता है।
सोम यानि भुजा -
- वास्तु देवता का यह अंग अत्यंत सुख की प्राप्ति कराता है।
- ऐसे पुरुष पुत्र एवं धन की प्राप्ति करता है।
भुजंग यानी कंधा-
- वास्तु देवता का यह अंग मुख्य द्वार के लिए वर्जित माना जाता है।
- यह मुख्य द्वार पिता-पुत्र शत्रुता तथा दुख को निमंत्रण देता है।
अदिति यानि कान -
- यह अंग वास्तु देवता के कान को संबोधित करता है |
- अर्थात मुख्य द्वार के लिए परिवार में स्त्रियों में सामंजस्य नहीं रहता तथा हमेशा शत्रुओं से बाधा उत्पन्न होती रहती है।
दिति यानि नेत्र -
- वास्तु देवता का यह अंग नेत्र है अर्थात मुख्य द्वार के लिए यह स्थान अत्यंत निर्धनता, बाधा तथा रोग दोष को उत्पन्न करता है ।
नोट -
- जिस दिशा में मुख्य द्वार बनाना हो, उस भवन की लंबाई को 9 भागों में बराबर बराबर बांट कर 5 भाग दायें और 3 भाग बायें छोड़कर शेष भाग में द्वार बनाना चाहिए।
- घर से निकलते समय जो भाग दाहिने हाथ की दिशा में दाहिना भाग तथा बाएं हाथ की दिशा में बायां भाग होता है। इस तरह आपको अनुमान लगाने में आसानी होगी।
धन्यवाद ।
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