सौभाग्यवर्धक दक्षिणावर्ती शंख

जय माता दी | दोस्तों......

हम जितने भी शंख देखते हैं भले ही वे किसी भी आकृति में हो, प्राय: वामावर्ती होते हैं। अतः उनका पेट बायीं ओर को खुला होता है। उनके मुंह से पेट की ओर चलने वाली परतें बायीं ओर को घूमी रहती है। वामावर्त का अर्थ ही है बायीं ओर की भंवर या घुमाव, अर्थात जिसकी भंवर बायीं और खूब घूमी हो, वह वामावर्त है। तंत्र शास्त्रों में वामावर्ती शंख की अपेक्षा दक्षिणावर्ती शंख को विशेष महत्व दिया गया है। तो आइये आज जानते हैं विशेष महत्व वाले सौभाग्यवर्धक दक्षिणावर्ती शंख के बारे में-

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दक्षिणावर्ती शंख की पहचान -

 यह शंख सामान्य शंखों से भिन्न दिशा में, अर्थात दायीं को घुमा रहता है। इसके मुख से पेट की ओर चलने पर भंवर का घुमाव दायी ओर पड़ता है। दायीं ओर की भंवर वाला शंख दक्षिणावर्ती कहलाता है। मान्यता है कि यह शंख बहुत ही शुभ, श्री -समृद्धि दायक और अनेक प्रकार से वैभवकारी होता है। दक्षिणावर्ती शंख सरलता से नहीं मिलता है। यह संसार के बहुत कम स्थानों में पाया जाता है। दुर्लभ होने के कारण इसका मूल्य भी अधिक होता है। यह आकार में गेहूं के दाने से लेकर नारियल के फल के बराबर तक पाया जाता है। भारत के दक्षिणी समुद्र तट पर रामेश्वरम और कन्याकुमारी के आसपास यह  शंख प्राप्त होते हैं। सामान्यतः यह श्वेत वर्ण का होता है परंतु गौर से देखें तो इस पर लाल-पीली या काली आभा या धारियां भी पाई जाती हैं। शुद्ध श्वेत, दूधिया वर्ण का जिस पर दूसरे रंग की झलक ना हो ऐसा शंख सर्वोत्तम माना जाता है परंतु यह कदाचित ही कहीं दिखाई पड़ता है। छोटे आकार वाले शंख बहुधा काले होते हैं। उनमें कोई कोई कुछ लंबी आकृति के होते हैं इनके भीतर शून्य स्थान नहीं होते हैं। इनमें पत्थर जैसा पदार्थ जम जाने से यह जीवाणु बन जाते हैं यह इनकी प्राचीनता का सूचक होता है।

दक्षिणावर्ती शंख निम्न प्रकार के होते हैं -

यवाकार शंख -

यह शंख छोटा, गेहूं के दाने जैसा, प्राय स्लेटी रंग में कभी-कभी लालिमा युक्त प्राप्त होता है। जीवाश्म बन जाने के कारण इसका भार कुछ बढ़ जाता है। यह सर्वांग सिर से पूंछ तक ठोस होता है। अपनी आकृति के कारण ही यह यवाकार कहलाता है।

एलाकार शंख -

बड़ी इलायची के बराबर सुपारी के समान यह दक्षिणावर्ती शंख प्राय तालाबों में पाई जाने वाले सफेद घोंघे जैसा होता है। इलायची के समान होने से यह एलाकार कहलाता है। यह शंख इलायची से भी बड़े देखे जाते हैं। शुद्ध हीरा शंख यही है। यह शंख जितना ही बड़ा हो और इसके क्रिस्टल्स जितने अधिक स्वच्छ, पारदर्शी और आभार युक्त हो, यह उतना ही श्रेष्ठ माना जाता है। हीरा शंख का मूल्य दक्षिणावर्ती शंख में सबसे अधिक होता है।

मोती शंख -

यह सर्वांग, सप्तवर्णी आभा बिखेरता है। इसकी आकृति सामान्य शंखों से भिन्न होती है। यह मुंह की ओर अति संकीर्ण  और पेट- पूंछ की ओर गोलाई में विस्तृत होकर छत्राकार बना होता है। इसका खोल मोटा, मजबूत और भारयुक्त होता है।सुंदरता में यह शंख सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।  यह शंख बजता भी है और गोल होने के कारण बड़ी सरलता से अपने पास जेब में भी रखा जा सकता है परंतु देखने पर सहज ही पता नहीं चलने पर भी यह दक्षिणावर्ती ना होकर वामावर्ती होता है।

दक्षिणावर्ती शंख की पूजन विधि -

  • दक्षिणावर्ती शंख को घर लाएं और घर में देव प्रतिमाओं के पास रख दें। 
  • जब शुभ मुहूर्त आए उसकी पूजा करें। 
  • शुभ मुहूर्त के लिए सामान्यतः रामनवमी, विजयादशमी, दीपावली, कार्तिक पूर्णिमा, रक्षाबंधन, गंगा दशहरा आदि दिन शुभ होते हैं। 
  • गुरु पुष्य योग अथवा रवि पुष्य योग सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त होता है। किसी सर्वसिद्धि योग में भी ले सकते हैं।
  • शुभ मुहूर्त में अपने दैनिक पूजा से निवृत्त  होकर  शुद्ध लकड़ी की पीठ पर चांदी की तश्तरी रखें। यह ना हो सके तो कोई भी धातु का पात्र लें। उस पर कमल पुष्प दल बिछाए, ना मिले तो लाल कपड़ा बिछा दे।
  • शंख को थाली में रखकर गौ- दूध, गंगाजल से भलीभांति स्नान कराएं। स्वच्छ नवीन वस्त्र से पोंछकर, उसी तश्तरी पर रखें। 
  • सफेद चंदन, पुष्प, अक्षत, धूप-दीप से पूजा करके मेवा मिठाई का नैवेद्य अर्पित करें और चांदी का सिक्का चढ़ाएं। 
  • पूजन के उपरांत परम श्रद्धा भाव से मंत्र का जाप करें। 
  • जाप की संख्या अपने सामर्थ्य के अनुसार पहले से निश्चित कर लें और 108 दानों की माला पर उतनी संख्या में जाप पूरा करें। 
  • जाप पूरा हो चुकने पर सामान्य हवन सामग्री में घी, शक्कर, जौ, तिल, अक्षत मिलाकर उसी मंत्र से 21 या 51 बार आहुति देते हुए हवन करें। 
  • तदुपरांत किसी भी एक या अधिक ब्राह्मण को भोजन और दक्षिणा दें। 
  • यह समस्त क्रिया संपन्न हो चुकने पर शंख को तश्तरी सहित उठाकर देव प्रतिमाओं के पास रख दें।

पूजन मंत्र -

  • दक्षिणावर्ती शंख की पूजा के लिए निम्न में से कोई भी एक मंत्र लिया जा सकता है। 
  • पूजा में आदि से अंत तक उसी का जाप करना चाहिए। 
  • शंख पर चढ़ाया गया जल अपने ऊपर ले जाकर घर में छिड़क देना चाहिए।  
  • इसे इधर-उधर ना फेंके। 
  • शास्त्र में लिखा है कि दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर उसे जिसके ऊपर छिड़क दिया जाए, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।

मंत्र -

  • ॐ श्री लक्ष्मी सहोदराय नमः।
  • ॐ श्री पयोनिधि जाताय नमः।
  • ॐ श्री दक्षिणावर्त शंखाय नमः।
  • ॐ ह्मी क्लीं श्रीधर करस्थाय, पयोनिधि जाताय, लक्ष्मी सहोदराय, दक्षिणावर्त  शंखाय नमः।

प्रभाव -

  • यदि शंख निर्दोष है, विधिवत्  लाकर, पूजन द्वारा घर में स्थापित किया गया है तो वह निश्चित रूप से यह प्रभाव दिखाएगा।
  • दक्षिणावर्ती शंख जहां भी रहता है, दरिद्रता वहां से पलायन कर जाती है।
  • अन्न भंडार में अन्न, धन भंडार में धन, वस्त्र भंडार में वस्त्र, अध्ययन कक्ष में ज्ञान तथा शयनकक्ष में रखने से शांति की वृद्धि होती है।
  • इसमें शुद्ध जल भरकर व्यक्ति, वस्तु, स्थान पर छिड़कने से  दुर्भाग्य, अभिशाप, अभिचार और ग्रहों के दुष्प्रभाव समाप्त हो जाते हैं।
  •  ब्रह्म -हत्या, गौ -हत्या, बाल -हत्या जैसे पातकों से मुक्ति पाने के लिए दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर संबंधित व्यक्ति पर छिड़कने से वह दोष मुक्त हो जाता है।
  • जादू, टोना, नजर, चलाव जैसे अभिचार- कृत्यों का दुष्प्रभाव भी इससे शांत हो जाता है।
  •  निर्धनता निवारण के लिए  भी यह सर्वश्रेष्ठ वस्तु है।
धन्यवाद ।

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