मोहिनी एकादशी 23 मई 2021 व्रत कथा
इस उत्तम व्रत में भगवान श्री राम की पूजा होती है। इस व्रत को करने वाला समस्त कष्टों, रोगों एवं अवसाद से मुक्ति पा जाता है। इस व्रत के प्रभाव से सभी बुरे कर्म समाप्त हो जाते हैं तथा मनुष्य की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं इसीलिए इसे मोहिनी एकादशी के नाम से पुकारा जाता है। तो आइये आज जानते हैं मोहिनी एकादशी व्रत और विधि के बारे में-
mohini ekadasi |
व्रत को धारण करने का समय -
- मोहिनी एकादशी का व्रत वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है।
व्रत करने का विधान-
इस व्रत को धारण करने वाले को चाहिए कि ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूर्ण रूप से अपना मन स्वच्छ रखें। भगवान श्री राम की मूर्ति को स्नान आदि से पवित्र कराकर सफेद वस्त्र पहनाने चाहिए। उचित स्थान पर बैठकर धूप दीप से आरती उतारते हुए मीठे फलों से भोग लगाना चाहिए। प्रसाद वितरण के उपरांत यथासंभव पांच ब्राह्मणों को सम्मान पूर्वक भोजन कराना चाहिए। दान दक्षिणा देकर उनके चरण स्पर्श करने चाहिए।यदि हो सके तो श्वेत वस्त्र भी दान करने चाहिए। रात्रि में भगवान का भजन कीर्तन करना चाहिए। कीर्तन समाप्त करके भगवान श्री राम की प्रतिमा के पास ही शमन करना चाहिए। इस उत्तम व्रत के प्रभाव से मनुष्य निन्दित कर्मों से मुक्ति पा जाता है।
वृत्त संबंधी कथा-
मोहिनी एकादशी के विषय में पुराणों में एक कथा उपलब्ध है जो कि निम्न प्रकार है- बहुत समय पूर्व की बात है। किसी राज्य में एक राजा थे। उनके कई पुत्र थे। उनका एक पुत्र बड़ा दुराचारी था। वह व्यभिचार, बड़ों का निरादर करना, दुर्जन संगी आदि दुर्गुणों का पुतला था। उससे अत्यंत परेशान होकर उसके पिता ने उसे घर से निकाल दिया। वह वन में भी लूटमार करता और पशुओं को मारकर खा जाता था। एक दिन वह अपने पूर्व जन्म के संस्कार वश एक ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। ऋषि ने एक ही नजर में उसका सारा रहस्य जान लिया। सत्संगति के कारण राजपुत्र का हृदय परिवर्तित हो गया। अपने पाप कर्मों को स्मरण कर वह पश्चाताप करने लगा
इस पर ऋषि ने उसे वैशाख मास शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने का सुझाव दिया। व्रत के प्रभाव से राजपुत्र की बुद्धि शुद्ध हो गई। इसीलिए यह व्रत आज भी पूर्ण श्रद्धा विश्वास के साथ किया जाता है। इस व्रत को करने वाला हर प्रकार के पापों से मुक्ति प्राप्त कर लेता है। उसके जन्म जन्मांतर के पाप इस व्रत के प्रभाव से शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत को विधि-विधान पूर्वक करने वाला इस लोक में सभी सुखों को भोग कर अंत में वैकुंठ को चला जाता है।
इस पर ऋषि ने उसे वैशाख मास शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने का सुझाव दिया। व्रत के प्रभाव से राजपुत्र की बुद्धि शुद्ध हो गई। इसीलिए यह व्रत आज भी पूर्ण श्रद्धा विश्वास के साथ किया जाता है। इस व्रत को करने वाला हर प्रकार के पापों से मुक्ति प्राप्त कर लेता है। उसके जन्म जन्मांतर के पाप इस व्रत के प्रभाव से शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत को विधि-विधान पूर्वक करने वाला इस लोक में सभी सुखों को भोग कर अंत में वैकुंठ को चला जाता है।
धन्यवाद ।