क्यों होती है यंत्रों की पूजा
पौराणिक साहित्य में यत्र-तत्र यह उल्लेख मिलता ही रहता है कि देवता, यक्ष,किन्नर, दानव, मानव आदि सभी लोग यंत्र -तंत्र का प्रयोग करते थे और उनकी महिमा से भी लाभान्वित होते रहते हैं। इस यंत्र विद्या, तंत्र विद्या के अधिपति देवता भगवान दत्तात्रेय या साक्षात् ब्रह्मा जी हैं। भगवान् ब्रह्मा जी ने ही मानव कल्याण के लिए कई सार्थक यंत्रों की खोज की। जिनकी पूजा, प्रतिष्ठा आज भी पुष्कर राज सहित भारत के विभिन्न पौराणिक स्थलों में होती है। भगवान् दत्तात्रेय द्वारा रचित इंद्रजाल नामक ग्रंथ से ही कुछ लोकोपयोगी यंत्रों की महिमा का यहाँ वर्णन है। इनकी सिद्धि की सफलता सार्थक के श्रम पर निर्भर है परन्तु यह कहना व्यर्थ है कि यंत्रों की महिमा अवैज्ञानिक और अकारण है। यंत्रों की स्थापना दीपावली के महारात्री पर करना विशेष फलदायक है।
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श्री -श्री लक्ष्मी -गणेश महायंत्र-
यह श्री गणेश एवं लक्ष्मी का संयुक्त यंत्र होने से महायंत्र बन गया है। श्री गणेश विघ्नविनाशक, ॠद्धि-सिद्धि के दायक एवं लक्ष्मी जी धनदायी माता हैं। यह यंत्र दीपावली पर विशेष पूजनीय है। दीपावली के दिन उपयुक्त ऋतु, यंत्र को ताम्रपत्र अथवा रजत पत्र पर उत्कीर्ण कर , प्राण-प्रतिष्ठा करवा कर पूजें। उसके बाद इसे आप अपने कैश बॉक्स, गल्ला, तिजोरी या अलमारी अथवा पूजा-स्थल आदि महत्वपूर्ण जगहों पर रखें। इस पर लिखे मूल मंत्र का 1008 बार जप करें। 108 मत्रों का हवन करें और 11मंत्र का तर्पण, मार्जन करें। यह यंत्र सिर्फ शुद्ध सात्विक एवं सदाव्रत रखने वाले परिवार में अधिक फलता है।
श्री यंत्र –
यह सर्वाधिक लोकप्रिय प्रतीक यंत्र है। इसकी अधिष्ठात्री देवी स्वयं श्री विद्या अर्थात् त्रिपुर सुन्दरी से भी अधिक इस यंत्र की मान्यता है। यह बेहद शक्तिशाली, ललिता -देवी का पूरा चक्र है । यह सर्वव्याधिनिवारक, सर्वकष्टनाशक होने के कारण सर्व सिद्धि पद, सर्वार्थसाधक और सर्व सौभाग्यदायक माना जाता है । इसे गंगाजल, दूध से स्वच्छ करके पूजा-स्थान, व्यापारिक स्थान तथा अन्य शुद्ध स्थान पर रखा जाता है । इसकी पूजा पूर्व की ओर मुँह करके की जाती है ।
श्री यंत्र अर्थात लक्ष्मी प्राप्ति का यंत्र –
मध्य भाग में बिन्दु व छोटे-बड़े मुख्य नौ त्रिकोण, इन नौ त्रिकोण से बने 43 त्रिकोण, दो कमल दल भूपुर एक चतुर्रस 43 त्रिकोणों से निर्मित उन्नत श्रृंग के सदृश मेरूपृष्ठीय श्री यंत्र अलौकिक शक्ति व चमत्कारों से परिपूर्ण, गुप्त शक्तियों का प्रजनन केन्द्र बिन्दु कहा गया है ।
जिस प्रकार सभी कवचों में चण्डी कवच श्रेष्ठ है, उसी प्रकार सभी देवी-देवताओं के यंत्रों में श्री देवी का यंत्र सर्वश्रेष्ठ कहा गया है । दीपावली, धनतेरस, बसंत पंचमी अथवा पौष मास की संक्रांति के दिन यदि रविवार हो तो इस यंत्र का निर्माण व पूजन विशेष फलदाई माना गया है।
श्री महालक्ष्मी यंत्र –
श्री महालक्ष्मी यंत्र की अधिष्ठात्री देवी कमला है अर्थात इस यंत्र की पूजा करते समय श्वेत हाथियों द्वारा स्वर्ण कमल से स्नान करती हुई कमलासन पर बैठी लक्ष्मी का ध्यान करना चाहिए । विद्वानों के अनुसार, इस यंत्र नित्य प्रदर्शन व पूजन से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । इस यंत्र की पूजा वेदोक्त न होकर पुराणोक्त है । इसमें बिन्दु षट्कोण वृत्त अष्टदल एवं भूपुर की संरचना की गई है । धनतेरस, दीपावली, बसंत पंचमी, रविपुष्य एवं इसी प्रकार के शुभ योगों में इसकी उपासना का महत्व है । स्वर्ण, रजत व ताम्र से निर्मित इस यंत्र की उपासना से उस घर व स्थान विशेष में लक्ष्मी का स्थायी निवास हो जाता है, ऐसी मान्यता है ।
श्री बगलामुखी यंत्र –
‘बगला’ दस महाविद्याओं में से एक है। इसकी उपासना से शत्रु का नाश होता है। शत्रु की जिह्वा हाथ से खींचती, दूसरे हाथ में मुगदर लेकर शत्रु के मस्तक पर प्रहार करती हुई बगलादेवी का ध्यान करते हुए, शत्रु के सर्वनाश की कल्पना की जाती है। पूरी साधना के अनुसार कार्य करने पर वांछित शत्रु का नाश होता है । इस यंत्र के विशेष प्रयोग से प्रेत-बाधा व यक्षिणी बाधा का भी नाश होता है। इसे सुवर्ण व रजतमय छोटे आकार की अंगूठी व पैंडल बनाकर करें।
श्री महाकाली यंत्र –
श्मशान साधना में काली की उपासना का बड़ा भारी महत्व है। इसी संदर्भ में महाकाली यंत्र का प्रयोग शत्रु नाश, मोहन,उच्चाटन आदि कार्यों में होता है। मध्य में बिन्दु, पांच उल्टे त्रिकोण, तीन वृत्त अष्टदल, वृत्त एवं भूपुर से आवृत होकर महाकाली का यंत्र तैयार किया जाता है। इस यंत्र का पूजन करते समय शव पर आरूढ़, मुण्डमाला धारण किए, खड्ग, त्रिशूल, खप्पर व एक हाथ में नरमुण्ड धारण किए, रक्त जिह्वा लपलपाती भयंकर स्वरूप वाली महाकाली का ध्यान किया जाता है। जब अन्य विद्याएं विफल हो जाती हैं, तब इस यंत्र का सहारा लिया जाता है। महाकाली की उपासना अमोघ मानी गई है। इस यंत्र के नित्य पूजन से अरिष्ट व बाधाओं का स्वतः ही नाश और शत्रुओं का पराभव होता है। चैत्र, आषाढ़,आश्विन एवं माघ मास की अष्टमी इसकी साधना हेतु सर्वश्रेष्ठ काल माना गया है।
श्री महामृत्युंजय यंत्र –
इस यंत्र के माध्यम से मृत्यु को जीतने वाले भगवान् शिव की स्तुति की गई है। भगवान शिव की साधना अमोघ व शीघ्र फलदायी मानी गई है। मारक दशाओं के लगने के पूर्व इसके प्रयोग से व्यक्ति भावी दुर्घटना से बाल-बाल बच जाता है। ज्योतिषी अरिष्ट ग्रहों के निवारणार्थ, आयु वर्द्धन हेतु अपघात, किंवा अपमृत्यु व अकाल मौत से बचने के लिए महामृत्युंजय यंत्र की सिद्धि कराते हैं।
शिवार्चन स्तुति के अनुसार पंचकोण, षट्कोण, अष्टदल एवं भूपुर से युक्त मूल मंत्र के बीच से सुशोभित होता है महामृत्युंजय मंत्र। असाध्य रोग की निवृत्ति के लिए एवं दीर्घायु की कामना के लिए इस यंत्र का प्रयोग सर्वाधिक सफल माना गया है। इस यंत्र का नित्य पूजन कर इसका चरणामृत पीने से व्यक्ति निरोग रहता है। इसका अभिषिक्त किया हुआ जल घर मे छिड़कने से घर पर रोग व ऊपरी हवाओं का आक्रमण नहीं होता।
श्री कनकधारा यंत्र –
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए एक अत्यन्त दुर्लभ और रामबाण प्रयोग है। इस यंत्र के पूजन से दरिद्रता का नाश होता है। पूर्व में आदि शंकराचार्य ने इसी यंत्र के प्रभाव से स्वर्ण के आंवलों की वर्षा कराई थी। यह यंत्र रंक को राजा बनाने की समर्थ्य रखता है। यह यंत्र अष्टसिद्धि व नव निधियों को देने वाला कहा गया है। इसमें बिन्दु, त्रिकोण एवं बृहद् त्रिकोण वृत्त अष्टदल वृत्त षोडशदल एवं तीन भूपुर होते हैं। यह यंत्र स्वर्ण व रजत पत्रों पर भी बनाया जाता है। इस यंत्र पर कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना अनिवार्य माना गया है।
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