मनवांछित फल हेतु पूजा-पाठ
परमात्मा ने सृष्टि के संचालन हेतु विभिन्न देवताओं के कार्य क्षेत्र बांटे हुए हैं। जिस कार्य का जो अधिकारी देवता है उसकी उपासना से ही वह कार्य बहुत जल्दी सिद्ध होता है। यदि यह कहा जाए कि इष्ट देवता की एक मात्र उपासना से सभी कार्य सिद्ध हो जाएंगे, तो ऐसा नहीं है। इष्ट देव जिस कार्य के अधिकारी हैं, उसे तो वह तत्काल स्वयं कर देंगे। जो कार्य उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है, उसके लिए वह उचित अधिकारी देवता से आपका कार्य करने की सिफारिश करेंगे, न कि उस कार्य को स्वयं करेंगे। इस हेतु इष्ट तो होना चाहिए और इष्ट की आराधना श्रेष्ठ है, परन्तु उसके साथ-साथ अन्य देवताओं की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। यदि हम सीधे अपने झगड़े की शिकायत राष्ट्रपति महोदयजी के यहाँ लिखाने जाएं या डाकघर में पोस्टमास्टर से जाकर कहें कि हमें कोई व्यक्ति परेशान कर रहा है, तो वह कदापि हमारी रिपोर्ट नही लिखेंगे और हमसे कहेंगे कि भाई पुलिस थाने में जाओ, वही तुम्हारी रिपोर्ट दर्ज करेंगे। इसी प्रकार से जो उचित अधिकारी है, वही प्रार्थना मंजूर करता है। यही नियम है। त्रिदेव उत्पत्ति, पालन तथा संहारक है। नवग्रह जन्य पीड़ा नवग्रहों के जाप, स्तोत्र, रत्न धारण करने से शान्त होती है। इस हेतु पूजा-पाठ आदि आराधना करें। विद्या, बुद्धि के विकास के लिए देवी सरस्वती की पूजा करें। लक्ष्मी प्राप्ति हेतु महालक्ष्मी की तथा भोग प्राप्ति हेतु भोग लक्ष्मी की उपासना करनी चाहिए। धन-सम्पत्ति की स्थिरता चाहने वालों को गोपाल सहस्त्र नाम का निरन्तर पाठ करना चाहिए।
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सन्तान प्राप्ति के लिए पूजा-
सन्तान चाहने वाला सबसे पहले ब्राह्मणों का पूजन करके अपने पितरों का तर्पण करे। पितरों का तर्पण करने से कुल की वृद्धि होती है। पितरों को प्रसन्न करने के उपरांत गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ कराएं अथवा भगवान शिव का रूद्राष्टाध्यायी पाठ व नमक चमक विधान से, दूध से रुद्राभिषेक कराये और तब तक नित्य करायें जब तक पुत्र उत्पन्न न हो अथवा गोवर्धन महराज जी की नियम से परिक्रमा करें। लेकिन प्रथम अपने पितरों का तर्पण अवश्य कर लें, अन्यथा सिद्धि हाथ नहीं लगेगी। बंध्या, काकबंध्या, मृतवत्सा पुत्र प्राप्ति एवं उसकी चिरंजीवता हेतु भगवान रूद्र का दुध से अभिषेक करायें।
रोग मुक्ति के लिए पूजा-
रोग मुक्ति हेतु रुद्राभिषेक जल तथा कुशोदक से करें। महामृत्युंजय के जाप तथा साथ में पीड़ा देने वाले ग्रह के जाप नित्य करायें। बुद्धि वृद्धि हेतु बृहस्पति की पूजा करें या शर्करा मिश्रित दुध से चालीस दिन तक नित्य रुद्राभिषेक करायें। समस्त देवियों व शक्ति रूपों की आराधना करनी हो तो उनके साथ सम्बन्धित भैरव की पूजा नित्य करें, अन्यथा आपकी आराधना निष्फल होगी।
शत्रु नाश के लिए पूजा-
शत्रु नाश के निमित्त देवी बगलामुखी का अनुष्ठान या माँ दुर्गा की शरण में जाकर सप्तशती या शतचण्डी सिद्ध करें अथवा सरसों के तेल से चालीस दिन तक रुद्राभिषेक करें। शत्रु पर मारण प्रयोग करना हो तो कालरूद्र का आवाहन करें, उनसे सम्बन्धित मन्त्रों द्वारा उनकी उपासना करें या महाकाली की आराधना करें। क्षय रोगी स्वस्थ होने के लिए गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करें। आयु वृद्धि हेतु ब्रह्मा जी की उपासना करें।
वैभव प्राप्ति के लिए पूजा-
संसार में वैभव प्राप्ति हेतु इन्द्र की उपासना करें। वशीकरण, मारण, सम्मोहन, आकर्षण, स्तम्भन, विद्वेषण देवता की आराधना करें। शान्ति कर्म की अधिष्ठात्री देवी रति, वशीकरण हेतु देवी सरस्वती, विद्वेषण की ज्येष्ठा, उच्चाटन हेतु दुर्गा, मारण हेतु भद्रकाली की आराधना करनी चाहिए। अष्टसिद्धि प्राप्ति हेतु ॠद्धि- सिद्धि की उपासना करें।
इच्छित फल के लिए पूजा-
सबका स्वामी बनने हेतु ब्रह्मा की, यश की इच्छा वाला यज्ञ पुरुष की, खजाने का इच्छुक वरूण की, विद्या, पुत्र, आयु वृद्धि, रोग नष्ट करने हेतु भगवान शंकर की, पति-पत्नी में परस्पर प्रेम रखने की इच्छा हो तो उमाभगवती की उपासना करें। जो ब्रह्म तेज का इच्छुक हो उसे बृहस्पति की, जिसे इन्द्रियों की विशेष शक्ति की कामना हो तो इन्द्र की, ज्यादा पुत्रों की अभिलाषा हो तो प्रजापति की, तेज हेतु अग्नि या सूर्य की, अखण्ड धन हेतु वसुओं की, वीरता हेतु रूद्रों की तथा अन्न हेतु अदिति की उपासना करनी चाहिए।
उच्चाटन हेतु दुर्गा जी की, राज्य में पदोन्नति हेतु मनु की, वीर्य वृद्धि हेतु चन्द्र तथा शुक्र की, सतीत्व वृद्धि हेतु सती सावित्री व रानी अनुसूइया की, मर्यादा रक्षा हेतु भगवान श्री रामचन्द्रजी की, सुख आनन्द प्राप्ति हेतु भगवान कृष्ण व गोवर्धन महाराज की, सट्टे में सफलतार्थ या स्वप्न में आगामी बातों की जानकारी हेतु स्वप्नेश्वरी देवी की तथा रोग नाश, पितर तृप्ति हेतु गंगा जी की उपासना करनी चाहिए। कामजन्य विषयक व्यक्ति श्री कामाक्षी देवी की तथा भण्डार या भोजन में अन्न वृद्धि हेतु देवी अन्नपूर्णा जी की तथा अणिमा लघुमा, महिमा, प्रभुत्वादि अष्ट सिद्धि एवं नौ निधियों की सिद्धि प्राप्त करने हेतु रूद्र रूप हनुमानजी को उपासना करनी चाहिए।
उत्तम पति प्राप्ति के लिए पूजा-
कन्या उत्तम पति प्राप्ति हेतु पार्वती जी की उपासना करें।
धन के लिए पूजा-
धनोपार्जन के साधन चाहने वाला भगवान विष्णु के सहित लक्ष्मी जी की उपासना करें।भूत-प्रेत से बचने के लिए पूजा-
नाना प्रकार की बाधाओं से बचने हेतु यक्षों की तथा बलवान बनने हेतु मरूदगणों की आराधना करनी चाहिए। भूत-प्रेत जन्य कष्टों से निवारण हेतु उड्डयन नरेश, हनुमानजी या भगवान शंकर की उपासना करनी चाहिए ।
उच्चपद पाने के लिए पूजा-
उच्च पद चाहने वालों को दुर्गा व विश्वदेवों की, जिसको प्रजा अपने अनुकूल बनाने की इच्छा हो तो कुल देवता या सरस्वती देवी की आराधना करनी चाहिए ।
लम्बी आयु के लिए पूजा-
आयु की इच्छा से अश्विनी कुमारों की, पुष्टि की इच्छा से पृथ्वी की तथा प्रतिष्ठा चाहने वाले को पृथ्वी तथा आकाश की उपासना करनी चाहिए।उत्तम पत्नी के लिए पूजा-
सौन्दर्य चाहने वाला गंधर्वों की तथा उत्तम पत्नी चाहने वाले उर्वशी अप्सरा की आराधना करें।
ग्राम व स्थान में कल्याण के निमित्त ग्राम देव व स्थान देव और सभी आराधनाओं की सिद्धि हेतु ब्राह्मण की पूजा करनी चाहिए।
सभी आराधनाओं को आरम्भ करने से पहले गणेश जी का पूजन करना चाहिए। किसी का झगड़ा कराना हो तो नारदजी की उपासना करनी चाहिए।
नौकरी के लिए पूजा-
राज्य की इच्छा के लिए मन्वन्तरों के अधिपति देवों की, अभिचार के लिए निर्ॠति की, भोगों के लिए चन्द्रमा की और निष्कामता प्राप्त करने के लिए परमपुरूष नारायण की आराधना करनी चाहिए। प्रशस्त प्रज्ञासम्पन्न व्यक्ति चाहे अकाम हो या सकाम अथवा मोक्षकाम, उसे तीव्र भक्ति योग के द्वारा परमपुरूष परमात्मा की ही आराधना करनी चाहिए।
राजनीति में नेतृत्व के लिए पूजा-
नेता छोटा हो या बड़ा उसे चाहिए कि वह शक्ति की उपासना करे, क्योंकि बिना शक्ति के वह न तो पद का नेतृत्व कर सकता है और न ही जन समूह को अपने वशीभूत करके वोट लेने में सक्षम हो सकता है । नेता को दुर्गा सप्तशती का पाठ, स्तोत्र, हवन इत्यादि नित्य स्वयं करके या ब्राह्मण द्वारा पाठ कराकर शक्ति ग्रहण करनी चाहिए ।
मनवांछित फल के लिए पूजा-
यश, कीर्ति, लाभ, वंश वृद्धि तथा इष्ट साधना हेतु माता-पिता की सेवा तथा पूजा निरन्तर करनी चाहिए । भगवान बांके बिहारी जी वृंदावन की आराधना करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है। यही फल गोवर्धन जी का है । गोवर्धन की परिक्रमा में रूद्र रूप हनुमान के नाम से प्रतिष्ठित हैं। उनके यहाँ हाजिरी लगाने मात्र से ही कलयुग में मनवांछित फल मिलता है । अचानक उत्पात दृष्टि हो तो वेदोक्त शान्ति पाठ व स्वस्तिवाचन का पाठ करने से लाभ हो जाता है ।
धन्यवाद ।
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