शनि देव का डर 

शनि ग्रह को लोग बिना वजह नुकसान पहुँचाने वाला ग्रह समझते हैं एवं शनि ग्रह के नाम से भी ड़रते हैं जबकि शनि ग्रह किसी को भी बिना वजह परेशान नही करते हैं। जब शनि देव  ने भगवान शिव की उपासना की थी। तब भगवान शिव ने शनि को दण्डनायक ग्रह घोषित करके नवग्रहों में स्थान प्रदान किया। शनि देव  का दण्डविधान जगजाहिर है। यदि अपराध या गलती की है तो फिर देव हो या मनुष्य, पशु हो या पक्षी, माता हो या पिता शनि भगवान के लिए सभी समान हैं।
shani dev
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यदि किसी व्यक्ति ने पूर्वजन्म में अच्छे कर्म किये हो तो शनि देव  उस व्यक्ति की जन्मपत्री में अपनी उच्च राशि या स्व राशि पर प्रतिष्ठापित होकर उसे भरपूर लाभ पहुचाते हैं । यह शनि देव की प्रवृत्ति है।

शनि देव का परिचय-

शनि ग्रह को लोग मन्द, शनैश्चर, सूर्यसेन, सूर्यज, अर्कपुत्र, नील, भास्करी, असित, छायात्मज आदि कहकर भी सम्बोधित करते हैं। शनि देव का आधिपत्य मकर एवं कुम्भ राशि तथा पुष्प, अनुराधा एवं उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र पर है। शनि ग्रह अस्त होने के 38 दिन के अनन्तर पर उदय होते हैं। इनकी उच्च राशि तुला एवं नीच राशि मेष है। जन्मकुंडली के 12 भावों में 8 वें, 10 वें, एवं 12 वें भाव के कारक हैं। जब यह तुला, कुम्भ एवं मकर राशि पर विचरण करते हैं, यदि उस अवधि में किसी का जन्म हो तो यह रंक से राजा बनाने में भी देर नहीं करते।
हस्तरेखाशास्त्र में मध्यमा अँगुली के नीचे इनका स्थान है एवं अंकज्योतिष के अनुसार प्रत्येक माह 8, 17, 26, तारीख के स्वामी हैं। शनि ग्रह 30 वर्षो में समस्त राशियों का भ्रमण कर लेते हैं। एक बार साढ़ेसाती आने के पश्चात् 30 वर्षों के बाद ही व्यक्ति इनके प्रभाव में आता है। अपवाद को छोड़ कर व्यक्ति अपने जीवन में तीन बार साढ़ेसाती का साक्षात्कार करता है।

 शनि देव के दण्ड का प्रवधान-

जब कर्मो के अनुसार शनि देव को किसी व्यक्ति को दण्ड देना होता है। तो सबसे पहले ये व्यक्ति की बुद्धि पर आक्रमण करते हैं। तथा किसी अन्य व्यक्ति की बुद्धि का नाश करके दण्ड देने का कारण बना देते हैं। शनि देव की अदालत में पूर्व में किये गये अपराध का दण्ड पहले मिलता है। यदि कोई व्यक्ति अपने आचरण एवं चाल-चलन में सुधार कर लेता है तो शनि देव अपनी दशा अर्थात सजा की अवधि के पश्चात अपार धन-दौलत एवं वैभव प्रदान करते हैं।

शनि देव के सजा देने योग्य अपराध-

भ्रष्टाचार, झूठी गवाही, विकलांगो को सताना, भिखारियों को अपमानित करना, चोरी, रिश्वत, चालाकी से धन हड़पना, जुआ खेलना, अपने माता-पिता एवं सेवक का अपमान करना, चींटी-कुत्ते या कौए को मारना आदि इन अपराधों की सजा शनि देव की अदालत में अवश्य मिलती है।

शनि देव की वेशभूषा -

न्याय क्षेत्र में काले रंग को विशेष स्थान प्राप्त है । इसी कारण शनि देव की वेशभूषा काली है। इसलिए न्याय की देवी की आँखों पर भी काली पट्टी बँधी हुई है ।

शनि देव का मंदिर-

शनिदेव की पूजा अनेक स्थानों पर श्रद्धापूर्वक  की जाती है। लेकिन शनिदेव की पूजा के कुछ  प्रसिद्ध मंदिर है । महाराष्ट्र के नासिक जिले में शिरडी से कुछ किलोमीटर की दूरी पर शनिदेव का मंदिर है । वहाँ पर शनिदेव की प्रतिमा विधमान है। इस प्रतिमा का कोई आकार नहीं है । क्योंकि यह पाषाण खंड के आकार में शनि ग्रह से उल्कापिंड के रूप में प्रकट हुई हैं। यहाँ शनिदेव की निश्चित परिधि में कोई भी व्यक्ति चोरी या अन्य अपराध नहीं कर सकता । यदि भूलवश कर भी ले तो उसे इतना भारी कठोर दण्ड मिलता है कि उसकी सात पीढ़ियां भी भूल नहीं सकतीं । यही कारण है कि यहाँ पर कोई मकान या दुकान का ताला नहीं लगता है। क्योंकि यहां मकानों में किवाड़ तक नहीं है।

शनिदेव की दशा में किस तरह लोग कष्ट उठाते हैं

शनिदेव की दशा के पौराणिक प्रभाव -

पाण्डवों को वनवास -

जब पाण्डवों की जन्म-पत्री में शनिदेव की दशा आयी तो द्रौपदी की बुद्वि भ्रमित करके कड़वे वचन कहलाये, परिणामस्वरूप पाण्डवों को वनवास मिला ।

रावण की दुर्गति-

छः शास्त्र और अठारह पुराणों के प्रकाण्ड पण्डित रावण का पराक्रम तीनों लोकों में फैला हुआ था । शनिदेव की दशा में रावण घबरा गया। अपने बचाव के लिए रावण ने शिवजी से प्राप्त त्रिशूल से शनिदेव को घायल करके अपने बंदीगृह में उल्टा लटका दिया। लंका को जलाते समय हनुमानजी ने देखा कि शनिदेव को उल्टा लटका रखा है। हनुमानजी ने शनिदेव को छुटकारा दिलाया। शनिदेव ने हनुमानजी से अपने योग्य सेवा बताने का अनुरोध किया तो हनुमानजी ने कहा कि तुम मेरे भक्तों को कष्ट मत देना। शनिदेव ने तुरंत अपनी सहमति दे दी। अन्त में राम-रावण युद्ध में शनिदेव ने रावण को परिवार सहित नष्ट करने में अपनी कुदृष्टि का भरपूर प्रयोग किया। परिणामस्वरूप श्री रामचन्द्रजी की विजय हुई।
धन्यवाद ।

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