वास्तु के अनुसार घर में पूजा स्थल

यूं तो ईश्वर निराकार एवं सर्वव्यापी है लेकिन मानव मन को ध्यान लगाने और पूजा करने के लिए घर में एक उत्तम स्थान की आवश्यकता होती है इसलिए घर में पूजा स्थल बनवाते समय वास्तु के कुछ नियमों का ध्यान रखा जाना चाहिए जिससे पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास के साथ पूजा की जा सके और उसका उत्तम फल भी प्राप्त हो।

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पूजा का स्थान-

पूजा-स्थान के लिए मकान का उत्तर-पूर्व कोना सबसे उत्तम होता है, पूजा स्थल की भूमि उत्तर-पूर्व की ओर झुकी हुई और दक्षिण -पश्चिम से ऊंची होनी चाहिए, आकार में गोल एवं चौकोर हो तो सबसे अच्छी मानी जाती है।
मंदिर के चारों तरफ द्वार शुभ होते हैं।

मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा-

मंदिर में किसी भी मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा उस देवी या देवता के प्रमुख दिन ही करें या जब चन्द्रमा पूरा हो अर्थात् पंचमी, दशमी एवं पूर्णिमा तिथि को मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करनी चाहिए।

शयनकक्ष में पूजा का स्थान-

शयनकक्ष में पूजा स्थल नहीं होना चाहिए, लेकिन जगह की कमी के कारण यदि मंदिर शयनकक्ष में बनाना हो, तो मंदिर के चारों ओर पर्दे लगा दें एवं शयनकक्ष में उत्तर-पूर्व की दिशा में पूजा का स्थान होना चाहिए।

पूजा-स्थल में मूर्तियों का मुख-

पूजा स्थल में भगवान की मूर्ति का मुख पूर्व, पश्चिम एवं दक्षिण की तरफ़ होना चाहिए। मूर्ति का मुख उत्तर दिशा की ओर नहीं होना चाहिए, क्योंकि ऐसी स्थिति में उपासना करने वाला दक्षिणामुख होकर पूजा करेगा , जो अशुभ होता है।

पूजा में वर्जित-

  • पूजा-घर के आस-पास, ऊपर-नीचे शौचालय नहीं होना चाहिए। पूजा-घर में और इसके आसपास पूर्णतः स्वच्छता तथा शुद्धता होनी चाहिए।
  • रसोईघर, शौचालय, पूजा-घर एक-दूसरे के पास में नहीं बनवाना चाहिए। घर में सीढियों के नीचे पूजा घर नहीं होना चाहिए।
  • पूजा -घर में मृतात्माओं का चित्र वर्जित है। किसी भी देवी-देवता की टूटी-फूटी मूर्ति या तस्वीरों एवं सौंदर्य प्रसाधन का सामान, झाड़ू व अनावश्यक सामान पूजा-घर में न रखें।

पूजा-घर में बैठने का स्थान-

पूजा-घर में पूजा के दौरान  मूर्ति के सामने कभी नहीं बैठना चाहिए, बल्कि सदैव दाएं कोण में बैठना उत्तम होता है।

पूजा-घर का द्वार-

पूजा-घर के द्वार पर दहलीज़ ज़रूर बनवानी चाहिए। द्वार पर दरवाज़ा लकड़ी से बने दो पल्लोंवाला हो तो उत्तम है।

घर में मूर्तियों का मुख-

भगवान ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य एवं कार्तिकेय की मूर्तियों का मुख पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए। भगवान गणेश, कुबेर, दुर्गा एवं भैरव का मुख दक्षिण दिशा की तरफ़ होना चाहिए। हनुमानजी का मुख नैऋत्य दिशा की तरफ़ होना चाहिए।

घर में वर्जित देवी-देवता-

उग्र देवी-देवता जैसे- काली,भैरव, शनि, राहू-केतु, तांडव करते हुए शिव भगवान आदि उग्र देवी-देवता की स्थापना घर में न करें एवं घर में संगमरमर की मूर्ति न रखें।

ध्यान रखने योग्य बातें-

  • दो शिवलिंग, दो शालीग्राम, दो शंख, तीन दुर्गा और तीन गणेश भगवान की पूजा वर्जित है।
  • मंदिर के लिए पिरामिडनुमा छत सर्वोत्तम होती है, मंदिर के ऊपर कलश व ध्वजा नकारात्मक ऊर्जा का शोषण करती हैं।
  • पितरों को मंदिर में स्थान ना दें | 
  • दीया एवं धूप दक्षिण में रखें। सुबह को घी तथा शाम को तेल का दीपक जलाना चाहिए।
  • पूजा करने के पश्चात् उसी स्थान पर खड़े होकर तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए।
  • आरती करते समय थाली 7 बार घुमानी चाहिए। 3 बार घुटनों के सामने, 2 बार नाभि, 1 बार ह्रदय, 1 बार मस्तक और अंत में पूरी प्रतिमा के आगे आरती की थाली घुमानी चाहिए।
  • पूजा में अक्षत खंडित नहीं होने चाहिए एवं उनमें सिंदूर, हल्दी, कुमकुम एवं थोड़ा सा घी भी मिला दें, इससे लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं।
  • भगवान जी को फूलों की पंखुड़ियां तोड़कर नहीं चढ़ाई जाती हैं।
धन्यवाद ।

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