आमला एकादशी व्रत कथा
व्रत का महत्व
आंवले के वृक्ष में भगवान का वास होने के कारण ही इसे आमला एकादशी कहते हैं। इस व्रत को करने से इसके प्रभाव से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं एवं इस व्रत को करनेवाला व्यक्ति समस्त सांसारिक सुखों को भोगकर अन्त में मोक्ष को प्राप्त करता है।इस दिन भोजन कराना एवं दान देना यज्ञ के समान श्रेष्ठ है।
aamala ekadasi |
आमला एकादशी व्रत को करने का उत्तम समय
यह परम प्रभावशाली व्रत फाल्गुन मास में ,शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है।आमला एकादशी व्रत करने की विधि
इस व्रत को करने वाले को चाहिए कि ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर साफ सुथरे वस्त्र धारण करे एवं आंवले के वृक्ष को विधि-विधान से स्नान कराये। घूप-दीप, फूल, अक्षत, रोली व चन्दन आदि से पूजन करके, उसी वृक्ष के नीचे ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।
व्रत सम्बन्धी कथा
अत्यंत प्राचीन समय पहले की बात है कि भारत में चित्रसेन नामक राजा राज्य करते थे।उनके राज्य में एकादशी व्रत का बड़ा महत्व था। राजा एवं प्रजा सभी व्रत रखते थे। एक दिन राजा जंगल में शिकार खेलते-काफी दूर निकल गए। उन्हें कुछ जंगली जातियों ने आकर घेर लिया । उन जंगली जाति के लोगों ने राजा के ऊपर अस्त्र-शस्त्र से प्रहार किया , लेकिन राजा पर इसका कोई प्रभाव न हुआ। यह देखकर वे चकित रह गए।
राजा उन जंगली जाति के लोगों से काफी देर तक लड़े एवं लड़ते - लड़ते वह अचेत होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। तभी राजा के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई जो उन सारे जंगली लोगों का वध करके लुप्त हो गई । होश में आने पर राजा ने देखा कि सारे जंगली जाति के लोग मरे पड़े हैं। वे सोच-विचार में पड़ गया ये जंगली जाति के लोग कैसे मर गये। तभी आकाशवाणी हुई, "हे राजन् ! ये सभी जंगली जाति के लोग तुम्हारे आमला एकादशी व्रत के प्रभाव से मर गये हैं।"
यह सुनकर राजा अत्यंत प्रसन्न हुआ। उन्होंने वापिस आकर अपनी प्रजा को 'आमला एकादशी' का महत्व सुनाया। जंगली जाति के लोगों के विनाश से उनके राज्य के सभी नागरिक सुख-चैन से रहने लगे।
धन्यवाद ।
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