द्वादश भाव के  दशा फल

जय माता दी। दोस्तों. ....

dwadsh bhav ke dasha fal
dwadsh bhav ke dasha fal
.

लग्नेश -

  • लग्नेश के दशाकाल में शारीरिक सुख, धन तथा सम्पदा की प्राप्ति के साथ-साथ स्त्री को कष्ट प्राप्त होता है।

धनेश -

  • धनेश के दशाकाल के समय धन लाभ तथा शारीरिक कष्ट होता है, परन्तु यदि धनेश पाप ग्रह, नीच, शत्रुक्षेत्री होकर शनि से सम्बन्ध रखता हो तो धनेश के दशाकाल में मृत्यु हो जाती है, क्योंकि धनेश मारकेश भी माना जाता है। यदि धनेश सौम्य ग्रह, स्वगृही, मित्रक्षेत्री, उच्च या मूलत्रिकोणस्थ हो तथा धनभाव या धनेश पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो दशाकाल में जातक को करोड़पति भी बना देता है।

तृतीय -

  • तृतीय घर के स्वामी के दशाकाल में पराक्रम व पुरुषार्थ से अल्प धन लाभ, चिन्ता तथा कष्ट प्राप्त होता है। तृतीयेश श्रेष्ठ स्थिति में हो तो भाई-बान्धव व मित्रों से लाभ प्राप्ति तथा जातक का पुरुषार्थ बढ़ता है।

चतुर्थेश -

  • चतुर्थेश घर के स्वामी के दशाकाल में भूमि, भवन, वाहन, माता व मित्रों का लाभ तथा जातक को स्वास्थ्य प्राप्त होता है। विद्या में वृद्धि, यश-कीर्ति के साथ-साथ पिता को कष्ट होता है। यदि चतुर्थेश नीच, निर्बल या अस्तंगत हो तो दुर्घटना में वाहन की क्षति तथा माता की मृत्यु होती है।

पंचमेश -

  • पंचम भावेश के दशाकाल में विद्या, सन्तान, धन, सम्मान तथा बुद्धि में वृद्धि होती है।

षष्ठेश -

  • छठे स्थान में स्वामी के दशाकाल में रोग तथा शत्रुओं से कष्ट तथा सन्तान को पीड़ा होती है।

सप्तमेश -

  • सप्तम भावेश के दशाकाल में शारीरिक कष्ट, आर्थिक अवनति, विवाह,  स्त्रीसुख प्राप्ति तथा व्यापार में वृद्धि होती है। परन्तु यदि सप्तमेश पाप ग्रह,  नीच या निर्बल हो तो सुखनाश, स्त्री को रोग तथा शत्रुओं की वृद्धि होती है।

अष्टमेश -

  • आठवें भाव के स्वामी के दशाकाल में रोग, ऋण, चिन्ता, मृत्यु और स्त्री की मृत्यु आदि का भय रहता है। यदि अष्टमेश पाप ग्रह होकर  नीच, निर्बल या अस्तंगत होकर द्वितीय स्थान में बैठा हो तो इसके दशाकाल में निश्चय ही मृत्यु होती है।
नोट - 
  • द्वितीयेश,षष्ठेश, सप्तमेश, अष्टमेश एवं द्वादशेश में ये मारक कहे गये हैं, यदि इनके स्वामी की स्थिति ठीक न हो तो निश्चित रूप से ही इन भावेशों की दशा, अन्तरर्दशा तथा प्रत्यन्तरर्दशा में मृत्यु हो जाती है।

नवमेश -

  • नवम भाव के स्वामी की दशा में तीर्थों में भ्रमण, विद्या, धर्म, कर्म तथा भाग्य में वृद्धि, राजा से लाभ तथा किसी महान कार्य में सफलता प्राप्त होती है। जातक की रूचि दान-पुण्य की तरफ प्रेरित करती है।

दशमेश -

  • दशम भावेश के दशाकाल में धन, सम्मान व सुख में वृद्धि, राज्य पक्ष से पद एवं सुख प्राप्त होता है परन्तु माता को कष्ट होता है।

एकादशेश -

  • एकादश भाव के स्वामी के दशाकाल में व्यापार में अच्छी तरक्की, धन, यश, कीर्ति, लाभ व आय में वृद्धि तथा शुभ फलदायक होती है। परन्तु यदि एकादशेश पर किसी पाप ग्रह की दृष्टि हो तो जातक का स्वास्थ्य खराब हो जाता है, तथा पिता की मृत्यु हो जाती है।

द्वादशेश -

  • व्ययेश के दशाकाल में व्याधियाँ, शरीर में कष्ट तथा चिन्ताएं उत्पन्न होती हैं। कुटुम्बियों को कष्ट सहना पड़ता है तथा धन हानि होती है। परन्तु यदि द्वादशेश शुभ ग्रह अच्छी स्थिति में हो तो बाहरी क्षेत्रों (रहने के स्थान से दूर स्थान) से धन लाभ होता है।

स्वगृही दशाफल -

  • जो ग्रह अपने घर में बैठा हो, उसकी दशा में नाना प्रकार के लाभ होते हैं।

उच्चगृही दशा फल -

  • उच्च ग्रह की दशा में विशेष उन्नति तथा विशेष लाभ होता है। मित्रगृह दशा फल -जो ग्रह मित्र राशि में बैठा हो, उसकी दशा में हानि नहीं होती है।

वक्री ग्रह दशा फल -

  • वक्री ग्रह के दशा काल में धन, यश, सुख तथा स्थान का नाश होता है। जातक अपने स्थान को छोड़कर परदेश में घूमता है और परेशान होता है।

मार्गी ग्रह दशा फल -

  • मार्गी ग्रह के दशाकाल में सम्मान, सुख, यश, कीर्ति,  धन तथा उद्योग में वृद्धि होती है। 

नीचस्थ व शत्रुगृही दशा फल -

  • नीच तथा शत्रुगृही की दशा में शत्रुओं की वृद्धि, कर्ज, व्यापार में हानि, वियोग, परदेशवास, रोग, विवाद तथा नाना प्रकार के कष्ट  उत्पन्न होते हैं और जातक बहुत परेशान रहता है।
सभी ग्रहों की दशा का फल सम्पूर्ण दशाकाल में एक सा नहीं रहता है। चाहे वह महादशा का फल हो अथवा अन्तर-प्रत्यन्तर दशा का फल, यदि ग्रह प्रथम द्रेष्कोण में हो तो दशा का फल दशा के प्रारम्भ काल में, द्वितीय द्रेष्कोण में हो तो दशा के मध्यम समय में फल प्राप्त होता है, और यदि ग्रह तृतीय द्रेष्कोण में हो तो दशा का फल दशा के अन्त समय में प्राप्त होता है। यदि जन्म समय कोई ग्रह वक्री हो तो उसका फल उपर्युक्त के बिल्कुल विपरीत प्राप्त होता है। अर्थात् ग्रह तृतीय द्रेष्कोण में हो तो दशा के प्रारम्भ काल में फल प्राप्त होता है,  द्वितीय द्रेष्कोण में हो तो दशा के मध्यकाल में तथा ग्रह यदि प्रथम द्रेष्कोण में हो तो दशा का फल दशा के अन्तकाल में प्राप्त होता है।
धन्यवाद।

Post a Comment

और नया पुराने