अपरा (अचला) एकादशी का व्रत 18 मई 2020 

जय माता दी। दोस्तों ......
यह व्रत अचला व अपरा एकादशी के दो नामों से जाना जाता है। इसके करने से ब्रह्म हत्या, परनिन्दा, भूत योनि जैसे निकृष्ट कर्मों से छुटकारा प्राप्त होता है। इस उत्तम व्रत के करने से पुण्य, धन व यश की वृद्धि होती है।
इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। किसी-किसी स्थान पर बलराम जी दाऊ जी की पूजा का प्रचलन है।
अपरा (अचला) एकादशी का व्रत कथा 6 जून  2021
  apra achla ekadasi vrat katha bhajan

व्रत को धारण करने का समय -

  • यह श्रेष्ठ व्रत ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा  जाता है। इस की पूजा के लिए उत्तम समय सूर्यास्त  के पूर्व ही माना जाता है।

व्रत को करने की विधि -

  • इस व्रत के सम्पन्न होने के समय तुलसी, कपूर, चन्दन और गंगाजल से भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करनी चाहिए। प्रतिमा पर माल्यार्पण करके धूप दीप जलाकर विष्णु पुराण का पाठ करना विशेष रूप से शुभ फल दायी है। इस व्रत की पूजा एकांत स्थान पर ही की जानी चाहिए।

व्रत सम्बन्धी कथा -

बहुत समय पूर्व की बात है कि किसी राज्य में महीध्वज नामक एक राजा राज्य करता था। वह बड़े धर्मात्मा थे। उनका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अन्यायी एवं अधर्मी था। उसके मन में अपने भाई के प्रति बड़ी ईष्या थी। वह सदैव उसकी हत्या करने के चक्कर में लगा रहता था। एक दिन इस पापी ने अपने निर्दोष भाई की हत्या कर दी। हत्या करने के बाद अपने भाई की लाश को उसने एक पीपल के वृक्ष के नीचे गाड़ दिया। मरणोपरांत उसका भाई (राजा) प्रेत योनि में पहुंच गया। अब यह प्रेत योनि को प्राप्त राजा पीपल से अनेक उत्पात मचाने लगा।
एक रोज अकस्मात् धौभ्य ऋषि उधर से गुजरे। उन्होंने अपने तपोबल से प्रेत के उत्पात मचाने का कारण तथा उसका जीवन वृतांत समझ लिया। ऋषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के वृक्ष से नीचे उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया। अंत में इस प्रेत योनि से मुक्त होने के लिए उससे अचला (अपरा) एकादशी का व्रत करने को कहा।
"मुनिवार! मुझे यह प्रेत योनि क्यों भोगनी पड़ रही है ?" महीध्वज (प्रेत) ने हाथ जोड़कर कहा। "तुम्हारे पूर्व जन्म के कर्मों का ही यह फल है जो तुम्हें भोगना पड़ रहा है। पिछले जन्म के अपराधों की सजा भुगतने के लिए ही तुम्हारी निर्मम हत्या हुई तथा यह प्रेत योनि मिली है।" मुनि ने प्रेत पर दया करके कहा।
"हे मुनिवर! यह अचला एकादशी का व्रत कब व कैसे करूं?" प्रेत ने पूछा।
"तुम्हें यह व्रत ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी को करना होगा विष्णु भगवान की पूजा अर्चना करनी होगी इसके प्रभाव से तुम प्रेत योनि से हो जाओगे।" मुनि ने प्रेत से कहा।
"आपका बहुत-बहुत धन्यवाद मुनिवर! आपने मुझ पापी पर कृपा की।" प्रेत (महीध्वज) ने सिर झुकाकर कहा।
इसके पश्चात प्रेत (महीध्वज) ने धौभ्य ऋषि की बात मानकर अचला एकादशी का व्रत किया और प्रेत योनि को त्यागकर दिव्य शरीर पा गया। आत्मशुद्धि होने के कारण तथा सत्कर्मों को करके वह बैकुंठ को प्राप्त हुआ।

भजन

कभी भूले से दर्शन आपका सरकार हो जाता।
मैं चरणों में लिपट जाता, गले का हार हो जाता।।
किए हैं पाप बहुतेरे, मगर इतना समझता हूँ।
तुम्हारी एक ठोकर से, मेरा उद्धार हो जाता।।
छुपे हो व्यर्थ ह्रदय में, निकलकर सामने आओ।
तुम्हारा पर्दा हट जाता, मुझे दीदार हो जाता।।
जला देने के काबिल है,  तुम्हारी स्वार्थी दुनिया।
तुम्हारी एक करूणा से, मैं भव से पार हो जाता।।
है मेरा बस यही कहना, बढ़ा तू प्रेम सत्संग से।
जो अब तक मिल न पाया था, दरश इस बार हो जाता।।

धन्यवाद।

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