महाशिवरात्रि व्रत कथा 

भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए यह व्रत  किया जाता है। इसे महाशिवरात्रि, कालरात्रि अथवा शिवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से पुण्य फल प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से असंख्य पाप नष्ट हो जाते हैं तथा समस्त प्रकार के रोगों, बंधन व कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। इस व्रत को करने वाला इस संसार में सभी प्रकार के सुखों को भोगता हुआ अन्त में शिवलोक को प्राप्त होता है ।

mahashivratri 2021
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महशिवरात्रि 2021 शुभ मुहूर्त  

यह उत्तम व्रत फाल्गुन मास की त्रयोदशी को किया जाता है
नीशीथ काल पूजा मुहूर्त - 24 :06 :41 से 24 : 55 :14 तक | 
अवधि - 0 घंटे 48 मिनट | 
 महाशिवरात्रि पारणा मुहूर्त - 06 : 36 :06 से 15 :04 : 32 तक | 

पर्व को मनाने का कारण 

प्राचीन हिन्दू ग्रंथों के अनुसार सृष्टि के शुरू में इसी दिन भगवान शंकर का ब्रह्मा से रौद्र के रूप में रात्रि के मध्य अवतरण हुआ था। इसी दिन प्रलय काल में प्रदोष के समय भगवान शंकर तांडव नृत्य करते हुए पूरे ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की अग्नि से भस्म कर देते हैं। इसी कारण यह व्रत महाशिवरात्रि या कालरात्रि के नाम से भी जाना जाता है।

पूजन सामग्री

बेलपत्र
बेर
धतूरे का फल
अमृत  (दूध, शहद, तुलसी, चावल, गुड़ ) यदि इसमे भांग भी मिला ली जाए तो ओर भी उत्तम रहेगा । शंकर जी पर पका हुआ आम चढ़ाने से भी विशेष फल की प्राप्ति होती है ।

पूजन की विधि

उपरोक्त साम्रगी को मंदिर ले जाकर शिवलिंग पर अर्पण करें। पूजन के बाद शिव चालीसा का पाठ करें और भगवान शंकर की आरती करनी चाहिए। रात्रि में भी शिव चालीसा का पाठ करें तथा चार बार आरती करनी चाहिए। रात भर जागरण करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है ।

विशेष सावधानी

शिव लिंग पर चढ़ाए गए पुष्प, जल एवं फल को ग्रहण नही करना चाहिए । फिर भी यदि कोई गलती से खा ले तो उसे दोष लगता है। लेकिन यदि शिव की प्रतिमा के निकट शालिग्राम की प्रतिमा हो,  तो इस प्रसाद को खाने का दोष नहीं लगता है ।

महाशिवरात्रि व्रत कथा

एक समय की बात है एक बहेलिया था जो कि रोज असंख्य निर्दोष जीवों का वध करके अपना व अपने परिवार का भरणपोषण करता था। एक दिन सम्पूर्ण जंगल मे विचरण करने पर कोई भी शावक नहीं मिला तो थक कर तालाब के किनारे वह आराम करने लगा। उस स्थान पर एक बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था। वह शिकारी उस बेल वृक्ष पर चढ़कर अपना आवास बनाने के लिए बेलपत्रों को तोड़कर शिवलिंग को ढ़कने लगा।दिनभर भूख से व्याकुल उस शिकारी का एक प्रकार से व्रत भी पुरा हो गया।
कुछ रात्रि के पश्चात एक हिरणी,जो ग्याभिन थी उसी ओर आई। उसे देखते ही बहेलिया ने निशाना साधा। यह देखकर हिरणी डर गयी ओर विनम्रता पूर्वक बोली। हे बहेलिया ! मै अभी ग्याभिन हूँ, मेरी प्रसव बेला भी निकट है इसलिए मुझे मत मारो, बच्चे को जन्म देने के पश्चात मैं स्वयं ही तुम्हारे पास आ जाउंगी। उसकी बात शिकारी मान गया।
कुछ रात बीत जाने पर एक दूसरी हिरणी वहाँ घूमती हुई आ गई। जैसे ही शिकारी ने निशाना साधा ,हिरणी ने विनम्रता पूर्वक कहा, है शिकारी ! मैं अभी ऋतुक्रिया से निवृत सकामा हूँ मुझे पति-समागम के लिये जाना है, कृपा करके मुझे अभी मत मारिये। मैं उनसे मिलकर स्वयं तुम्हारे पास आ जाऊंगी। शिकारी ने दूसरी हिरणी की विनम्र याचना को भी मान लिया ।
एक तीसरी हिरणी रात्रि को अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर उसी तालाब किनारे पानी पीने आई। शिकारी ने इसे भी देखकर निशाना साधा । यह देखकर हिरणी घबराऐ स्वर में कहने लगी, हे बेहेलिए ! मैं इन बच्चों को हिरण के संरक्षण में कर आऊं, तो तुम मुझे मार डालना। शिकारी ने उसके विनम्र निवेदन को भी स्वीकार कर लिया।
सवेरा होने पर तीनों बलशाली हिरण उसी सरोवर पर आये। शिकारी अपने स्वभावानुसार इन हिरणों पर भी निङशाना साधने लगा। यह देखकर सभी हिरण व्याध से कहने लगे, हे व्याध राज ! हमसे पहले आने वाली तीनों हिरणीयों को यदि तूमने मारा है, तो हमें भी मार डालो,अन्यथा उन पर तरस खाइए । यदि वे आपने छोड़ दी हैं ,तो उनसे मिलकर आने पर ही हमें मारना। हम तीनों उन्हीं के सहचर हैं। हिरणों की करुणामयी वाणी सुनकर शिकारी ने रातभर की बीती बात कह सुनाई तथा उसे भी छोड़ दिया । पूरी रात जागरण, दिन भर उपवास तथा शिव प्रतिमा पर बेल पत्र गिराने के कारण शिकारी में आन्तरिक शंचिता आ गई । उसका मन निर्दयता से कोमलता में ऐसा बदल गया कि हिरण परिवार के लौटने पर भी न मारने का निश्चय कर लिया । उसका मन भगवान शंकर की कृपा से इतना सरल और पवित्र हो गया कि वह पूर्ण रूप से अहिंसावादी हो गया । उधर हिरणियों से मिलने के बाद हिरणों ने शिकारी के पास आकर अपनी सत्यता का परिचय दिया ।
उनके सत्याग्रह से प्रभावित होकर व्याध अहिंसा परमो धर्म का पुजारी बन गया और उसकी आँखो से आँसू छलक आए तथा पूर्वकृत कर्मो पर पश्चाताप करने लगा । इस पर स्वर्ग लोक से देवताओं द्वारा व्याध की सराहना की गई तथा भगवान शंकर ने दो पुष्पक विमान भेजकर शिकारी तथा मृग परिवार को शिवलोक का अधिकारी बनाया ।

धन्यवाद ।

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