रत्न का ज्योतिष में महत्व(ratn ka jyotish mein mahatv)


 जैसा कि आप जानते हैं कि हमारे जीवन में रत्नों का काफी महत्व है इसलिए आज मैं आपको अपने इस ब्लॉग के माध्यम से इसी विषय की जानकारी दे रहा हूं।  
                                
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ratan

 रत्न और ग्रहों का आपसी सम्बन्ध 

प्राचीन काल से ही मानव बहुमूल्य रत्नों के सम्पर्क में रहा है। जल, थल, घाटियों, पर्वतों और दरारों आदि सभी स्थानों से भिन्न-भिन्न प्रकार के रत्न प्राप्त होने लगे। पाषाण ही नही, जीवों के शरीर से भी विभिन्न प्रकार के रत्नों की प्राप्ति हुई । हीरा, पन्ना, माणिक्य, पुखराज, नीलम, गोमेद तथा लहसुनिया आदि पाषाण रत्न हैं, जबकि मोती सीप के अन्दर जैविक पदार्थ से बनता है। तृणमणि जैविक राल से बनता है। मूंगा समुद्र मे रहने वाले पोलिप्स नामक जीव की हड्डियों से निर्मित है । भिन्न-भिन्न प्रकार के रत्नों का प्रभाव धारक पर भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है । रत्नों की चमत्कारी शक्ति का सम्बन्ध आकाशीय ग्रहों से है । प्रत्येक ग्रह में भिन्न-भिन्न प्रकार के प्राकृतिक गुण होते है । अध्ययन से पता चलता है कि ग्रह और रत्न की प्रकृति में  भारी समानता है । यथा सूर्य और माणिक्य, चन्द्र और मोती, मंगल और मूंगा, बुध और पन्ना, गुरु और पुखराज, शुक्र और हीरा, शनि और नीलम, राहु और गोमेद  तथा केतु  और लहसुनिया आदि के गुणों में समानता है । उन ग्रहों से होकर पृथ्वी पर आने वाली किरणों में सम्बन्धित ग्रहों के गुण-दोष निहित होते हैं। स्वाभाविक बात है कि ये किरणें अपनी तरह के गुण वाले रत्नों की तरफ स्वतः ही आकर्षित होती हैं। ये रत्न भी अपने सम्बन्धित ग्रह की किरणों को  अवशोषित कर इस शक्ति को धारक के शरीर में संप्रेषित करने लगते हैं इस प्रकार रत्न के माध्यम से ग्रह के गुण जातक में समाहित होते रहते हैं।

शुभ-अशुभ रत्नों का निर्धारण

शुभ-अशुभ रत्नों का निर्धारण कैसे होता हैं।

जातक के जन्म के समय ग्रहों की स्थिति के आधार पर शुभाशुभ का निर्धारण किया जाता है । बारह विभागों में विभक्त किये गये आकाश के प्रत्येक विभाग में स्थित राशि के प्रतिनिधि ग्रह के अनुसार भाव – स्वामित्व और भाव  स्थिति के आधार पर जातक के ग्रहों के शुभाशुभ का निर्धारण होता है । जिस तरह शिशु के जन्म से माता-पिता, भाई-बहन, चाचा- चाची  आदि सांसारिक सम्बन्ध अपने आप तय हो जाते हैं, उसी तरह जन्म समय की आकाशीय स्थिति के अनुसार ग्रहों और शिशु के आपसी सम्बन्ध भी बन जाते हैं। जैसे कर्मेश, भाग्येश, आयुकारक, मारक, पालक, विद्या, सन्तान,  धन, स्वास्थ्य, लाभ-हानि और सुख-दुख देने वाले ग्रहों की भूमिका निश्चित हो जाती है । इन्ही शुभाशुभ ग्रहों के आधार पर धारणीय रत्नों का निर्धारण होता है । ध्यान रहे,  जो रत्न एक व्यक्ति के लिए अनुकूल हो,  वह दूसरे के लिए प्रतिकूल भी हो सकता है ।

रत्नों के कार्य 

रत्न तीन प्रकार से कार्य करते हैं-
1. शुभ कार्यों में आने वाली बाधाओं को हटाना ।
2. अशुभ ग्रहों के प्रभाव से रक्षा करना ।
3. दुर्बल ग्रहों में अतिरिक्त बल की वृद्धि करना ।

रत्नों को धारण कैसे  करें 

रत्नों में किरणों का विकिरण प्राकृत अवस्था के बजाय तराशे हुए रत्नों में अधिक सरल होता है । अच्छी तराश रत्न के प्रभाव और मूल्य दोनों को कई गुना बढ़ा देती है ।

रत्न धारक के लिए सुझाव

रत्न असली हो । खरीदते समय अनुभवी रत्न -ज्ञाता की सलाह लेना फायदेमंद है ।
रत्न खण्डित न हो । पहने हुए रत्न के खण्डित हो जाने या बदरंग हो जाने पर उसे बदल देना चाहिए ।
सम्बन्धित मन्त्र के शुद्ध उच्चारण से विधिपूर्वक रत्न को जागृत कर धारण करना अधिक लाभदायक होता है ।
रत्न धारण करके यथाशक्ति दान भी करना चाहिए ।
अनावश्यक रूप से रत्न को बार-बार उतारने से किरणों के विकिरण में बाधा पहुँचती है ।
• विरोधाभासी रत्नों को एक साथ न पहनें।
• प्राकृतिक लहरें,  बादल और बुलबुले आदि रत्न के दोष नही होते ।
• रत्न पूर्ववत् कार्य न कर रहा हो तो पुनः शुद्धिकरण कर लें।
• रत्न को अंगूठी, लाकेट, ब्रेसलेट आदि किसी भी रूप मे पहना जा सकता है ।
• धातु मे जड़ित रत्न के नीचे का हिस्सा खुला रहे। यह त्वचा से स्पर्श होते रहना चाहिए ।
• किसी भी दूसरे व्यक्ति को अपना रत्न प्रयोग न करने दें।
• चोरी किया हुआ, छीना हुआ, कीमत न चुकाया हुआ, रास्ते से प्राप्त और अनजाने व्यक्ति का रत्न हानिकारक हो सकता है ।
• रत्न बहुमूल्य होते हैं। इन्हे खरीदने की क्षमता सभी में नही होती, उपरत्न कम कीमत के होते हैं मगर वह भी अपना कार्य बखूबी करते हैं उपरत्न का असर धीमा होता है ।
• शनि का रत्न नीलम, शुक्र का रत्न हीरा बहुत प्रभाव वाले हैं, सभी को सहन नही होते । अतः परीक्षण के बाद धातु मे जडवाएं।
• सही धातु में पहनने से धातु का लाभ भी मिलता है ।
• रत्न पहनने पर उसमें आस्था जरूर रखें तभी लाभ सम्भव है।
आस्था और विश्वास की आवश्यकता तो प्रत्येक क्षेत्र मे है । सर्वशक्तिमान ईश्वर के स्वरूप को भी लोग अपने विश्वास के अनुसार ही स्वीकार करते हैं।

  ग्रहों  के अनुसार रत्नों का निर्धारण

1-योगकारक ग्रह-जो कुंडली मे शुभ फल देने वाला होता है।वह योगकारक ग्रह होता है।

2-मारक ग्रह-जो कुंडली मे अशुभ फल देने वाला होता है।वह मारक ग्रह होता है।

इस प्रकार योगकारक ग्रह का ही रत्न धारण करें।क्योकि रत्न ग्रह की शक्ति को बढा देता है।यदि आपने मारक ग्रह का रत्न धारण कर लिया तो उस ग्रह की शक्ति बढ जायेगी वो अशुभ फल देगा।

ग्रहों के मित्र एवं शत्रु के अनुसार रत्नों का निर्धारण

मित्र ग्रह

1. गुरु, सूर्य,मंगल, चन्द्रमा ये मित्र ग्रह हैं।

2.शुक्र, शनि, राहू, केतु ये मित्र ग्रह हैं।

3.बुध-गुरु, सूर्य, शुक्र,शनि, राहू, केतु के मित्र हैं।

शत्रु ग्रह

1.गुरु, सूर्य, मंगल, चंद्रमा के शुक्र, शनि, राहू, केतु, शत्रु हैं।

2.बुध के मंगल, चंद्रमा शत्रु हैं।

इस प्रकार शत्रु तथा मित्र ग्रहों का रत्न एक साथ नहीं पहना जाता है।

कौन सी उंगली मे कौन सा रत्न पहने

1-तर्जनी-पुखराज पहना जाता है सोने मे

2-मघ्यमा-नीलम चॉदी या पंचधातु मे हीरा सोने मे

3-अनामिका-माणिक सोने मे मूंगा सोने मे

4-कनिष्ठका- पन्ना मे मोती चांदी मे

स्रियों को बायें हाथ मे तथा पुरषों को दायें हाथ मे रत्न पहनना चाहिए।
आगे भी मैं आपको वैदिक ज्योतिष के माध्यम से रत्नों के बारे में जानकारी देता रहूँगा ।
धन्यवाद।





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